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इंशान को...

इंशान को जकड दे जंजीरों में , वो धर्म नहीं है। जिसे करने से पहले ही रूह कांप उठे, कर्म नहीं है। जो मिलकर न बैठे एक जगह समाज नहीं है। जहां सुनी नहीं जाती मजलूमों की, राज नहीं है ।

By S R Daemrot (उल्लास भरतपुरी)
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