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ठिठुरती ठंड...

ठिठुरती ठंड में मैंने भारत को, अख़बार ओढ़ सोते देखा। इस कमर तोड़ महंगाई में, मैंने भारत को रोते देखा । ग्रीष्म ऋतुमें लू के थपेड़े , भारत को सहलाते हैं । वर्षा ऋतु में कितने ही घर भारत के बह जाते हैं।

By S R Daemrot (उल्लास भरतपुरी)
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