I'm Vaibhav and I love to read StoryMirror contents.
Share with friendsसंदेह के गहरे अंधकार में कहीं उजीता ढूंढ रहा मोह-माया के ग्रन्थालय में देखो गीता ढूंढ रहा निज अंतर्मन जब मैला है तुम पर दोष मढूं कैसे मैं राम नहीं बन पाया फिर क्यों तुममें सीता ढूंढ रहा
चलो माना कि हाथों से भी सागर छूट जाते हैं जिन्हें पीने कि ख्वाहिश है वो आकर लूट जाते हैं कभी देखा है क्या गिरता हुआ झरना पहाड़ों से लगे जब चोट पानी की तो पत्थर टूट जाते हैं
पुनः है दासता स्वीकार या स्वच्छंद बनना है शत्रुओं के लिए विष धार या मकरन्द बनना है कुटिल, कपटी करेंगे ही भ्रमित निर्णय तुम्हें लेना विवेकानंद बनना है या फिर जयचंद बनना है
खौफ़ में मैं हूँ ये पंगा अच्छा खासा हो गया मेरा ही हमदर्द मेरी जां का प्यासा हो गया झूठी जो तारीफें उसकी मैंने की वो खुश रहा बात सच कह दी तो महफ़िल में तमाशा हो गया
पक्के मकानों की छत पर बेमौसम बरसात का मजा लेते हुए लोगों को ओलों की चमक चांदी के सिक्कों सी प्रतीत भले ही हो,मगर यही ओले किसी किसान के सपने,उम्मीदें और घर में रखे चन्द सिक्कों की खनक भी ख़त्म कर देतेे हैं और सांसे भी।
आज नहीं कर पाये जो वो कल भी तो हो सकता है जो मरुथल में लगे छलावा जल भी तो हो सकता है नर हो निराश नहीं मन करना पुनः प्रयास करो मन से लाख बड़ी हो मुश्किल उसका हल भी तो हो सकता है
था परेशां गोद में सर रक्खा तब हिम्मत मिली माँ के कदमों में झुका जब तब मुझे जन्नत मिली मुश्किलें सारी उड़न छू हो गईं दो लफ्ज़ सुन जब कहा माँ ने मेरा बेटा मुझे ताकत मिली