"ऐ जिन्दगी! फिर स्वयं में, स्वयं की तलाश है।" मैं वाराणसी निवासी हूं। मुझ में बसी हिन्दी एहसास की भाषा है । जो रगो प्रवाहित होती है, इस भाषा के पठन-पाठन के सौभाग्य के साथ-साथ विचारों की अभिव्यक्ति का आधार भी मुझे मिला है।
समय के कपाल पर अब कर्म से प्रहार कर, पहचान बन शौर्य का एक नया प्रकाश भर। समय के कपाल पर अब कर्म से प्रहार कर, पहचान बन शौर्य का एक नया प्रकाश भर।
मां तेरा उपकार बहुत है जो जन्म यहां है पाएं। मां तेरा उपकार बहुत है जो जन्म यहां है पाएं।