"ऐ जिन्दगी! फिर स्वयं में, स्वयं की तलाश है।" मैं वाराणसी निवासी हूं। मुझ में बसी हिन्दी एहसास की भाषा है । जो रगो प्रवाहित होती है, इस भाषा के पठन-पाठन के सौभाग्य के साथ-साथ विचारों की अभिव्यक्ति का आधार भी मुझे मिला है।
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