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तो देखा, कैसे तीन सौ पैंसठ दिन, होती हम पर रंगों की बौछार। तो देखा, कैसे तीन सौ पैंसठ दिन, होती हम पर रंगों की बौछार।
मत करो खिलवाड़ प्रकृति से, जो दिया है उसने, कृतज्ञता से ग्रहण करो। मत करो खिलवाड़ प्रकृति से, जो दिया है उसने, कृतज्ञता से ग्रहण करो।