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सोच के हर दायरे में उलझनों के तार हैं। सोच के हर दायरे में उलझनों के तार हैं।
गुजरी उम्र न पल भर सोये। लिखकर गीत रात भर रोये। गुजरी उम्र न पल भर सोये। लिखकर गीत रात भर रोये।