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नेपथ्य में बैठे कवि को, विवश पिता की तरह, रुला जातीं, विदा होती बेटियों जैसी, ये कविताएँ ! नेपथ्य में बैठे कवि को, विवश पिता की तरह, रुला जातीं, विदा होती बेटियों जैसी, ...
फुस्स साइकिल सा हो जाता है जीवन आस बिना, इसी लिए, सिरे खुले है दोनों राहों के, और निगाहों के, ... फुस्स साइकिल सा हो जाता है जीवन आस बिना, इसी लिए, सिरे खुले है दोनों राहों क...
वो लिखे, तो बेझिझक छाप देना ! वो लिखे, तो बेझिझक छाप देना !