खुद को कैसे लिखते है, इस हुनर से हम अनजान रहे, चिट्ठी जो भेजी जीवन को, अनसुने वही पैगाम रहे!
मैं तेरी-मेरी बातों के, अल्फ़ाज़ ही वापस लेती हूँ। थक आज गयी हूँ मैं इतना, कि थकान भी वापस लेती हूँ... मैं तेरी-मेरी बातों के, अल्फ़ाज़ ही वापस लेती हूँ। थक आज गयी हूँ मैं इतना, कि थ...
मैं खून बोलता हूँ, वाहवाही मिली नही मुझको अबतक। मैं खून बोलता हूँ, के मुझसे सना हुआ गंगा का तट। मैं खून बोलता हूँ, वाहवाही मिली नही मुझको अबतक। मैं खून बोलता हूँ, के मुझसे स...