Fanindra Bhardwaj, born on October 20, 2000, is a highly acclaimed music composer and writer from Ayodhya, India. From a young age, Fanindra displayed a deep passion for music, which led him to pursue his dreams in the industry. His musical journey began with the release of his debut album,... Read more
Share with friendsना जाने क्यों मैं ये हर दफ़ा कर रहा हूँ इस जमाने की ख़ातिर खुदको ख़फ़ा कर रहा हूँ उजाड़ रहा हूँ मैं खुदकी ख़ुशियाँ और खुदकी ही ख़्वाहिशों को तबाह कर रहा हूँ अजीब सा सर्फ़िरा हूँ मैं यार जो ये सब बेवजह कर रहा हूँ
इस दिल को चाहे अब वो ख़फ़ा कर जाये या वो सताये इसे, इसके साथ में वो जफ़ा कर जाये मगर फिर भी ये दिल उसी की अमानत है चाहे वो इसके कई टुकड़े कई दफ़ा कर जाये
मंजिलें इश्क़ में भी आसान होती हैं बस बदनाफ़ी भरी सड़क होती है और जोखिम में जान होती है कुछ ख़्वाब अधूरे रह जाते हैं और कुछ नींदें भी नीलाम होती हैं इसी तरह और भी कुछ तकलीफ़ें इश्क़ में आम होतीं हैं जैसे तनहाइयों में तड़पता है दिल और ख्वाहिशें कमबख़्त बेलगाम होती हैं मिलना मुमकिन नहीं होता सदियों तक मगर तलब सुबह-ओ-शाम होती है लोग कतराते हैं इश्क़ से अक्सर क्योंकि इश्क़ में रुसवाइयाँ ही तमाम होती हैं
आंखें भर आयीं थी मेरी एक रोज़ वो बात सोच कर किस कदर बिखर गये थे मेरे हालात सोच कर ग़म तो आँखों ने छुपा लिए अश्क़ों की बरसात समेटकर मगर ये वक्त ही कमबख़्त था जो गुजर गया मेरे जज़्बात खरोंचकर
तारीफ़ें चुभती हैं मुझे इसलिए तुम मेरी कमी बताया करो जो मुझे भी ना पता हो कभी वो मेरी ग़लतफ़हमी बताया करो
कड़कती धूप में छाँव की ठंडी नमीं हो तुम मैं बंजर वीरान हूँ मगर मेरी सरज़मीं हो तुम तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद ही नहीं मेरी हर कमीं को लाज़मी हो तुम
टूट कर जर्जर हो चुका हूँ मैं तेरी यादों में फिर भी कमबख़्त ये दिल से निकाली नहीं जा रही हैं टाल देता हूँ मैं अब तो ख़ुद की हर ख्वाहिश मगर तेरी कोई बात टाली नहीं जा रही है दिन तो सुकून से गुज़ार लेता हूँ मैं मगर ये कमबख़्त रातें ही मुझसे सँभाली नहीं जा रहीं है fanindra bhardwaj
लिखना चाहूँ तो सारे ग़म लिख दूँ अपनी कलम से अपने ज़ख़्म लिख दूँ फ़िलहाल तो लिखता हूँ मैं उसकी हमदर्दी मगर लिखने पर आऊँ तो उसके सितम लिख दूँ