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ख़ामख़ा...
ख़ामख़ा ही तुम...
ख़ामख़ा ही...
“
ख़ामख़ा ही तुम वो पल ढूँढ रहे हो
मेरी खामोशियों का कोई हल ढूँढ रहे हो
बड़े ही नादान हो यार तुम की
इन तूफ़ानों में रेत का कोई महल ढूँढ रहे हो
”
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