“
मंजिलें इश्क़ में भी आसान होती हैं
बस बदनाफ़ी भरी सड़क होती है
और जोखिम में जान होती है
कुछ ख़्वाब अधूरे रह जाते हैं
और कुछ नींदें भी नीलाम होती हैं
इसी तरह और भी कुछ
तकलीफ़ें इश्क़ में आम होतीं हैं
जैसे तनहाइयों में तड़पता है दिल
और ख्वाहिशें कमबख़्त बेलगाम होती हैं
मिलना मुमकिन नहीं होता सदियों तक
मगर तलब सुबह-ओ-शाम होती है
लोग कतराते हैं इश्क़ से अक्सर
क्योंकि इश्क़ में रुसवाइयाँ ही तमाम होती हैं
”