मशालों पर क्यूँ है निर्भर..इमरोज़ खुद को जला, र
किसका करे है इंतज़ार तू किस पर करे है ऐतबार तू य
मंजिलों की तमन्ना छोड़ बिना जिद्द के खुद को खुद