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Kushagra Vora

Others

3  

Kushagra Vora

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बचपन का प्यार

बचपन का प्यार

77 mins
672


उपन्यास   

बचपन का प्यार  

पहला अध्याय     


रा...... धा      

रा...... धा    

रा............ धा

का शोर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ समूचे हाॅल में गूंज उठा

और थमने का नाम ही नहीं ले रहा था।

शहर के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित रंगारंग कार्यक्रम में जैसे ही उद्घोषक ने लक्ष्य महा विद्यालय की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले समूह नृत्य की घोषणा की कि पूरा हाॅल तालियों की गड़गड़ाहट से ऐसा गूंजा , नृत्य में भाग लेने वाली अन्य छात्राओं के नाम राधा राधा के शोर में जैसे विलीन से हो गये।

"सर ...सर " की आवाज़ सुनकर सेठ सगुन सर्वाणी ऐसे हड़बड़ाये जैसे किसी तन्द्रा में से जागे हों।

उन्हें सहसा एहसास हुआ कि वे बन्दरगाह के मुख्य एरिया के बाहर, पेसैन्जर जेटी और रेलवे स्टेशन की बाउन्डरी के बीच बने, रंगबिरंगी वन्दनवार से सजे पंडाल में बैठे हैं और आसपास लोग तालियां बजा रहे है ।

“सर “ उनके कम्पनी सेक्रेटरी ने कहा “ सर ! सब तैयार ह। पोर्ट कन्ट्रोल से भी ‘गो अहेड’ क्लियरन्स मिल गया है। अब सिर्फ आप के द्वारा इस रिमोट कन्ट्रोल का हरा बटन दबाने की सब उत्सुकता से राह देख रहे हैं।" कहते हुए सेक्रेटरी ने रिमोट कन्ट्रोल सेठ सगुन सर्वाणी के हाथों मे रख दिया।

सेठ सगुन सर्वाणी ने हसरत भरी निगाहों से रिमोट बटन को देखा तो उन्हें उसमें टीवी स्क्रीन-सा दिखा...

...... और दिखा अपना ही अक्स....

किशोर उम्र सगुन के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थीं ,जब वो स्कूल प्रिन्सि के चेम्बर से बाहर आया। कुछ सोचे किस तरफ जाउं, उसका सहपाठी उससे टकरा गया। एक पल तो सगुन गुस्साया मगर जैसे ही टकराने वाले पर नज़र पड़ी, ठंडा हो गया। ये निभु था। मन्दबुद्धि निभु।

निभु ने सगुन को देखते ही सवाल दागा

“अरे दुर्गुणे ! तुझे तो प्रिन्सि ने बुलाया था ना? ?क्या हुआ?”

झल्लाये सगुन ने कहा,” क्यों रे घनचक्कर ,तुझे मेरा नाम मालूम नहीं है क्या?”

“ तो मेरा नाम भी घनचक्कर नहीं निभु है, निभु। ”

“हां हां पता है। अकल तो टके की भी नहीं है तेरे में,पता नहीं एस। एस। सी। तक कैसे पहूंच गया। ”

फिर कुछ सोचकर सगुन ने बात बदली, "चल ठेले पर गुलाब जामुन खाते है। ”

सुनते ही निभु उछल पड़ा। ”गुलाब जामुन? हां हां चल …। लेकिन वो। । मेरे पास तो सिर्फ दस पैसे ही हैं। ”

“कोई बात नहीं तू चल तो। ”

दोनों स्कूल की फेन्सिंग से सट कर बनी लकड़ी की छोटी केबिन के पास आये।सगुन ने दो गुलाब जामुन लेकर निभु को दिये और बोला

“तू आराम से खा।”

“और तू?... ”

“मैं तो तुझसे छुटकारा पाने तुझे यहां लाया था।” सगुन ने अपनी भोंहें नचाते हुए कहा।

“मगर ये तो बताता जा प्रिन्सी ने तुझे कहा क्या?"

सगुन ने बेफिक्री से हवा में हाथ उछालते हुए कहा,”हफ्ते के लिये क्लास से तड़ीपार कर दिया और क्या। ”

सात जन्म से भूखे किसी भुक्खड़ की तरह पूरा गुलाब जामुन मुंह में ठूंसते निभु के मुंह से सहसा निकला,”बेटा दुर्गुण! तू अगर ऐसे ही क्लास की लड़कियों पे फब्तियाँ कसता रहा तो ज़िन्दगीभर दूध ही बेचता रहेगा। बच्चू ! वो भी साईकिल पर दूध के डिब्बे बांध कर घर घर के चक्कर काटता रहेगा। ”

निभु का ये अन्तिम वाक्य सेठ सगुन सर्वाणी के कानों में बरसों बरस गूंजता रहता है।

उन्हों ने जैसे ही हरा बटन दबाया एक बार फिर चारों ओर तालियों की गर्ज गूंज उठी।

जेटी नम्बर 1, जहां सामान्यत: बड़े जलपोत बर्थ किये जाते थे ,आज वहां मध्यम क्षमता का एकदम नया जलपोत एमवी (Marine Vessel) जल निलम मौजूद था। निलम शिपिंग का, जिसके सर्वेसर्वा सेठ सगुन सर्वाणी आज अपने पहले जलपोत की पहली व्यावसायिक सफर पर प्रस्थान एवं उद्घाटन समारोह के लिये स्वयं उपस्थित हुए थे।

उनके बटन दबाते ही चारों ओर खुशी की लहर दौड़ गई। पास की जेटी पर ‘हारिया हारिया’ की आवाज़ें थम गईं और सब की निगाहें टिकटिकी बांधे एमवी जल निलम पर हो रही गतिविधि देखने लगीं।

बन्दरगाह के मुख्य प्रवेश द्वार पर हरी बत्ती होते ही जल निलम के कप्तान ने अपने वोकीटोकी पर पोर्ट कन्ट्रोल से सम्पर्क किया,”हैलो कन्ट्रोल! जल निलम is all set to undock। '

“ Permission granted। Start undocking। ” कन्ट्रोल ने कहा “Pl। follow instructions from pilot boat number 1 waiting to guide you till high sea thru channel no। 1 upto buoy no। 1 at the harbour entrance। Any doubt?”

कप्तान ने जवाब दिया ,”Ok thank you। ”

जलपोत जल निलम के कप्तान ने चारों ओर नज़र दौड़ाई। और हाथ से इशारा किया जेटी पर खड़े दो खलासियों को जेटी मूरिंग पर लिपटे मोटे रस्सों को खोलने के लिये और साथ ही ल॔गर उठाने का आदेश दिया और स्वयं जहाज के सबसे ऊपरी डेक पर बने नेविगेशन रूम में बड़े नेविगेशन व्हिल पर बैठे,और चलने की निशानी रूप departure hooter बजा दिया।

हूटर बजते ही जेटी मूरिंग से लिपटे रस्से खोल दिये गये। जेटी का बन्धन छूटते ही जहाज थोड़ा खिसका और एक बार फिर से तालियों की ज़ोरदार गड़गड़ाहट ने वातावरण को हर्षोल्लास से भर दिया। एमवी जल निलम ने पानी काटना शुरू कर दिया था अपने पहले गन्तव्य अल राशेद पोर्ट , दुबई की ओर।

सेठ सगुन सर्वाणी के चेहरे पर प्रसन्नता स्पष्ट झलक रही थी,आज उन्हों ने जहाजरानी उद्योग का एक और पड़ाव जो हासिल कर लिया था।

जलपोत एमवी जल निलम को अपनी आंखों से ओझल होते हुए देख रहे सेठ सगुन सर्वाणी का ध्यान भंग किया एक नारी स्वर ने,”एक्सक्यूज़ मी सर”

सगुन ने अपना सिर घुमा के देखा उसकी पर्सनल सेक्रेटरी मिस राधा कह रही थी,

“ सर अब हमें चलना चाहिये। दो बजे की मुम्बई की फ्लाइट पकड़नी है वहां शाम 6 बजे कम्पनी के डिपार्टमेन्ट हेड्स के साथ मिटिंग फिर देर रात दो बजे की भोरिशियस की फ्लाइट पकड़ने रात ग्यारह बजे एयरपोर्ट पहुंचना है। ”

“ क्यों?" सगुन चौंका,"मोरिशियस क्यों जाना हे?”

“सर लास्ट मन्थ आप ही ने कहा था आपकी वहां के शिपिंग मिनिस्टर के साथ एपोइन्टमेन्ट फिक्स हुई है। ” मिस राधा ने उसको याद दिलाया।

“ओहो…” अपने बचे खुचे दो चार बाल वाले सिर पर हथेली फेरते हुए सगुन बोला,” चलो फिर... और वो फर्नान्डीस को बोल दो यहां का बाकी काम वो सम्भाल ले। और रात आठ बजे मुझे रिपोर्ट करे।

मुंबई अन्तर्राष्ट्रिय हवाई अड्डे के डिपार्चर विंग के प्रवेश द्वार न॔। 2 के पास रात सवा ग्यारह बजे जैसे ही सगुन की कार रुकी, एक कुली उसके पास दौड़ कर आया और बोला ,

”सर जी सामान अन्दर ले चलूं?सिर्फ 50 रुपये। ”

सगुन कार से बाहर आया और जैसे ही कूली के चेहरे पर उसकी नज़र पड़ी उसे वो चेहरा जाना पहचाना सा लगा।

“तेरा नाम निभु है?”

“हां सर जी, इस एरिया में मैं बहुत फेमस हूं। सिर्फ पचास रुपये में सारा सामान अन्दर ठेठ सिक्यूरिटी स्केनर तक पहुंचा दूंगा, साब जी। ”

“तूने मुझे नहीं पहचाना?”

“वो तो दिख ही रहा है सर जी। सूट बूट टई वाई बड़े लोग हैं। ”

अब तक कार के बाहर आ चुकी मिस राधा ये सारी बातें सुनकर कुढ़ रही थी। वो कुछ कहने के लिये मुंह खोले कि सगुन ने निभु से कहा,

“अबे चक्रम्! मैं तेरा दुर्गुण ,सगुन। "

“क्याआआआ?” निभु की आवाज़ जैसे फट गई,”दुर…। सगुन? तूऊऊऊऊ?”

“राधा एक कार्ड दो। ”सगुन ने मिस राधा से कहा

राधा सुनते ही निभु बोल उठा,”राधा? मगर ये राधा जैसी दिखती तो नहीं है!”

"व्हा। । ट्ट?"मिस राधा तमतमाई।

सगुन ने उसे शान्त रहने का इशारा करते हुए उस के हाथ से कार्ड लिया और निभु को देते हुए कहा,

”ये वो नहीं है जिसकी तूने सैन्डल खाई थी। वो तो बड़ी डोक्टर बन गई है और त्रिवेन्द्रम में है। और ये कार्ड रख इसमें दिये फोन नम्बर पर मुझे दस दिन बाद फोन करना। ”

थोड़ा रुककर उसने मिस राधा से कहा,” दस हज़ार दो ।”

मिस राधा ने अपने पर्स में से दो दो हज़ार के पांच नोट निकाल कर सगुन के हाथ में रखे और सगुन वो रुपये निभु को देते हुए बोला,

”तुझे कुली गिरी करते शर्म नहीं आती? कुछ नये कपड़े ले लेना। ”

इतना कहकर सगुन थोड़ी दूर कतारबन्द पड़ी हुई लगेज ट्रोली की ओर बढ़ गया।

निभु ठगा-सा उसे जाते हुए देखता रहा।

रात पौने दो बजे विमान में प्रवासी बैठना शुरू हुए। सगुन ने फर्स्ट क्लास में अपनी स्लिपरेट संभाली। मिस राधा समेत उसके साथ आये स्टाफ ने इकोनोमी क्लास में अपनी अपनी सीट सम्भाली। विमान के दरवाज़े बन्द हुए कि अनाउन्समेन्ट हुआ;

"Air Mauritius in association with Air India welcomes you aboard this all women operated international flight to Mauritius and Johannesburg। । Please fasten your seat belts। Thank you। "

थोड़ी देर बाद फिर अनाउन्समेन्ट हुआ

"I am your flight captain Radha Iyer with co-pilot Mangala Sharma। Soon we are moving। Maximum altitude for this aircraft is 40,000 feet and flying speed 700 km per hour। Approximate flying time is six hours and thirty minutes for Mauritius,depending on weather। Enjoy your flight। "

टेक्सी वे (Taxi-way) से दाहिने मुड़कर प्लेन टेक आफ रन वे पर आ कर खड़ा हो गया। जैसे ही टेक आफ के लिये रन वे की सतह पर लगी बत्तियां हरी हुई,प्लेन के दोनों इन्जन गरज उठे। एक झनझनाती आवाज़ के साथ प्लेन अपनी पूरी शक्ति लगाकर ऐसे दौड़ पड़ा जैसे कोई मुट्ठियां भींचकर, एड़ी चोटी का ज़ोर लगाकर दौड़ पड़े।

कुछ ही क्षणों बाद सगुन ने महसूस किया कि उसके नीचे का हिस्सा उपर उठा और फिर पिछले पहिये भी रन वे का सम्पर्क खो बैठे। जो खिड़की अब तक रन वे के समानान्तर दिख रही थी,वो अब ऊपर उठी लग रही थी। शहर की लाइटें नीचे ही नीचे जा रही थी। प्लेन के अन्दर की लाईट डिम हो चली और पूरा शहर एक चमकते पीले गुच्छे-सा नज़र आने लगा।

थोड़ी देर बाद अन्दर की लाईट सतेज हो गई मतलब विमान अब अपनी निर्धारित ऊंचाई पा चुका था।

रात के दो बजकर ग्यारह मिनट हो रहे थे। सगुन ने अपना सीट बेल्ट खोल दिया। कोट उतारकर स्लिपरेट के पीछे लटका दिया,और खुद पैर पसार कर रिलैक्स मोड में बैठ गया।

एक वैमानिका ( एयर होस्टेस) उसके पास आई और बड़ी विनम्रता से बोली,” सर,क्या आप कुछ ड्रिन्क लेना पसन्द करेंगे?”

“ ड्रिन्क?इस वक्त?”सगुन ने साश्चर्य पूछा।

“ येस सर,” वैमानिका ने उसी विनम्रता से जवाब दिया,”इन फर्स्ट क्लास वी सर्व ड्रिन्क,ज्यूस ,खाना एनी थिंग”

“ओके,” सगुन ने कहा,” वन लार्ज चिवास रिगल। ”

वैमानिका ओर्डर नोट करके आगे बढ़ गई।

सगुन ने सोचा आज दिन भर के टाइट और मैराथन शिड्यूल के कारण वो कुछ खा पी नहीं पाया था सिवाय एक टोस्ट के।

वैमानिका वापस आई ,अपने हाथों में थामी ट्रे में से एक लार्ज पैग एक सोडा बोटल और एक पानी भरा प्लास्टिक का गिलास सगुन की स्लिपरेट के सामने लगी टेबल पर रखा और आगे बढ़ गई।

सगुन ने पैग में सोडा और पानी मिक्स किया और पैग होठों से लगा ही रहा धा कि... ।

                ...... पैग पर कुछ स्थिर चित्र उभरे... ।

नन्हा सगुन अपनी माता की चिता को दाह दे रहा है,तब जब उसे ज़िन्दगी क्या होती है यही पता न था।

काॅलेज एडमिशन मिलने पर खुश सगुन का प्रफुल्लित चेहरा।

पिता के देहावसान के पश्चात काॅलेज न जा पाने से मुर्झाया सगुन का चेहरा।

चेहरे पर किसी गर्म चीज़ के स्पर्श से जब सगुन की आंख खुली तो सामने वैमानिका हाथ में लम्बे फोर्क पर रूमाल लटकाये खड़ी थी जिसमें से भाप निकल रही थी। सगुन ने रुमाल ले लिया और उसे चेहरे पर घुमाया, उसे लगा उसकी सुस्ती उड़ चुकी है।

उसने विन्डो कवर उपर किया तो उजाला विमान के अन्दर घुस आया। खिड़की के बाहर देखा तो सफेद रूईदार बादलों के पहाड़ इधर उधर छितरे तैर रहे थे। जब विमान किसी ऊंचे बादल - पहाड़ के पास से गुज़रता तो लगता था अभी पहाड़ से टकराकर विमान चूर चूर हो जायेगा। लेकिन विमान बादलों को चीरकर साफ निकल जाता।

सगुन ने महसूस किया विमान नीचे उतर रहा है ट्रोपिकल बादलों को चीरता हुआ कुछ ही क्षणों में रन वे पर दौड़ने लगा और धीरे धीरे विमान एकदम धीमा हो गया।

अनाउन्समेन्ट हुआ We are happy to inform you that we have landed at SSR ( Shiv Sagar Ramghoolam) International Airport of Mauritius। Time is 7 am local time । Thank you for flying with us।

सगुन ने अपनी घड़ी देखी, साढ़े आठ बज रहे थे। उसने तुरन्त घड़ी की सूइयां घुमाई डेढ़ घण्टा पीछे 7 पर।

                 इमिग्रेशन,कस्टम,सिकयोरिटी की फोर्मालिटी पूरी कर जैसे ही सब बाहर निकले होटल मोरिशियस-इन की मिनी बस ने उनका स्वागत किया। सब बस में बैठे और चल पड़े मोरिशियस की राजधानी पोर्ट लुई की ओर।

होटल पहूचते ९ बजने को आये।

मिस राधा ने सगुन को याद दिलाया कि मिनिस्टर से मिटिंग ग्यारह बजे की है।

होटल रूम में घुसते ही सगुन ने टाई निकाल कर कोट पलंग पर उतार फेंका और सीधे नहाने बाथरूम में घुस गया।

शर्ट उतारा और घड़ी कलाई पर से उतारते उतारते उसे याद आया कि उसने घड़ी की सुइयों को डेढ़ घण्टा पीछे घुमाया था।

क्या उसने ऐसा विमान में हुए अनाउन्समेन्ट को सही मानकर किया था?

उसने उस अनाउंसमेंट को सही क्यों मान लिया?

उसने घड़ी के डायल पर नज़र डाली तो क्या देखता है कि एन। सी। सी के यूनिफोर्म में सज्ज, अनुशासन प्रिय, बुलन्द ,कड़क आवाज़ के धनी, भूगोल शिक्षक धुरन्धर सर क्लास में दाखिल हो रहे हैं। उल वक्त सगुन निभु के साथ ज़ोर ज़ोर से बतिया रहा था। धुरन्धर सर की नज़र उन दोनों पर पड़ी तो ब्लेक बोर्ड के पास खड़े होते हुए दहाड़े,”लड़कीइइइइईईई,वहां क्या हो रहा है?”

दहाड़ सुनते ही समूचा क्लास सकपका गया। निभु को लगा उसका पेशाब अब निकला तब निकला। सिर्फ निभु ही क्यों पूरे क्लास की कमोबेश यही हालत थी।

“सीईईईधे बयठोओप्। ” धुरन्धर सर फिर गरजे।

सभी विद्यार्थी फटाक से कमर सीधी कर बैठ गये।

" आज हम सीखेंगे कि समय का निर्धारण कैसे किया जाता है। " धुरन्धर सर की बुल॔द आवाज़ गूंज उठी

“ सूरज एक तारा है और एक जगह पर स्थिर है और सदैव आग उगलता रहता है जिससे हमारी पृथ्वी प्रकाशमान रहती है जिसे हम दिन कहते हैं। यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है

हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व घूमती है जिसकी वजह से पांचों खण्ड बारी बारी से सुरज के सामने आते हैं। इस एक चक्र को पूरा होने में जो समय लगता है उसे 24 भागों में बांट दिया गया। कोई शक?”

जब किसी ने उंगली नहीं उठाई तो उन्होंने आगे समझाया

“ पृथ्वी को देशान्तर रेखा ओं से विभाजित किया गया। एक देशान्तर से दूसरे देशान्तर तक पहुंचने में सूर्य की किरण को चार मिनट लगते हैं। दो देशों के बीच जितनी देशान्तर रेखाएं होती हैं उसे चार से गुणा कर दो तो दो देशों के बीच के समय का फर्क पता चल सकता है। ”

होटल के कमरे में बज रही इन्टरकाॅम की घन्टियों ने सगुन का ध्यान भंग किया। उसे याद आया उसे 11 बजे मिनिस्ट्री में जाना है।

                  मोरिशियस की राजधानी पोर्ट लुई की केनेड़ी स्ट्रीट के एल। आइ। सी सेन्टर बिल्डिंग के चौथे माले पर Ministry of Ocean Economy,

Marine Resources,

Fisheries and Shipping के चिशाल स्वागत कक्ष में सगुन अपने स्टाफ के साथ बैठा था । ठीक उसके सामने मंत्री जी का चेम्बर था,जिस पर उनके नाम की तकती लगी थी- Mrs। Radha Ramsahah।

थोड़ी देर बाद सगुन को चेम्बर में जाने को कहा गया।

सधे आत्मविश्वास के साथ सगुन चेम्बर में दाखिल हुआ। उसकी नज़र सामने ही बैठी एक महिला पर पड़ी जो शायद उम्र की षष्टिपूर्ति मना चुकी थी। दक्षिण भारतीय शैली में हरे रंग की बूटेदार साड़ी में सज्ज मंत्री महोदया से सगुन ने पूछा,"May we come in ,Madam Minister?"

अपने चश्मे के पीछे मुस्कुराती आंखों और मुस्कुराते होंठों से ही जैसे जवाब दे दिया ,"पधारिये आपका स्वागत है। "

भौंचक्क रह गया सगुन।

क्या सचमुच वो किसी देश की सरकार के मन्त्री से मिल रहा है?

वो पल भर ठिठक गया लेकिन फिर अन्दर एक सोफे के पास जाकर खड़ा हो गया।

" कृपया आसन ग्रहण करें। "

सुनकर सगुन सिर खुजाने लगा। इस तरह तो भारत में भी कोई नहीं बोलता।

फिर वो सोफे पर बैठ गया।

" Dont get surprised। " मिनिस्टर साहिबा बोलीं,"In fact here in Mauritius you will find Indian-origines from Tamilnadu,UP and Bihar and some other states,who came here as labours to work in sugar-cane fields some centuries ago। I am from The State of Madras, but now I am Mauritian। "

इतने में मन्त्री महोदया के सहायक ने उनके सामने टेबल पर एक फाइल खोल कर रख दी जिस पर नज़र डालते हुए मन्त्री महोदया ने कहा,"... so now we come to the business। "

टेबल पर पड़ी फाईल का पन्ना पलटते हुए बोलीं,

"I welcome you on behalf of The Government of Mauritius। The Government is pleased to note that your company Nilam Shipping seeks permissions to carry out Cargo carrier activities at our sea port Port Louis। "

इतना कहकर वो रुकी और सगुन की ओर कुछ इस तरह देखा जैसे पूछ रही हों कि कुछ कहना है?

" Honourable Madam Minister! I on behalf of my company Nilam shipping co। , am thankful to your high office and The Government of Mauritius for showing interest in our proposal request। "

सगुन एक सांस में सारा बोल गया।

मन्त्री महोदया ने आगे कहा,

"I am happy to pronounce that we have accepted your application and its content in principle। I advise you to contact our shipping secretary on Monday for further process and procedures and follow his instructions। "

इतना कहकर उन्हों ने अपने सहायक को कुछ इशारा किया तो सहायक ने एक पुस्तक और कुछ पेम्फ्लेट्स सगुन के हाथ में रखे जो उसने मिस राधा को देते हुए कहा,"राधा..."

"ओ तुम भी राधा हो?"मन्त्री महोदया बोल उठीं।

औरत का नैसर्गिक स्वभाव है दुनिया को देते रहना और शायद यही बात उनकी सतह पर भी आ गई और उन्हों ने अपने टेबल के ड्राअर से एक बड़ा-सा गिफ्ट पैकेट निकाला और सहायक के हाथों मिस राधा को दिया। मिस राधा ने आभार प्रकट किया।

सगुन ने खड़े होते हुए मन्त्री महोदया से इजाज़त चाही और चेम्बर से बाहर आ गया,अपने स्टाफ के साथ।

 एल। आइ। सी सेन्टर बिल्डिंग से बाहर निकलते ही सगुन ने अपने साथियों से पूछा,"क्या लगता है?"

" इसमें लगने जैसा है क्या, सर ! सरकार ने हमें इजाज़त दे दी है। " एक ने कहा और बाकी सबने भी उसके समर्थन में सिर हिला दिया।

"अच्छाआआ" सगुन कुछ इस तरह बोला जैसे वो सहमत नहीं है।

"अब तुम लोग बन्दरगाह के हालचाल जानने निकलो और शाम छ: बजे मुझे होटल में मिलो। "

इतना कहकर सगुन होटल चला गया।

                      

शाम छ: बजे सब होटल की लाॅन पर इकट्ठे हुए और सगुन को पोर्ट लुई बन्दरगाह का हाल चाल सुनाया।

सगुन ने सब को जहां घूमने जाना हो जाने को कहा,और स्वयं होटल से किराये पर ली कार में बैठ गया ।

ड्राईवर से कहा,"किसी अच्छे बीच पर चलो। "

"सर यहां से 20 किलोमीटर पर टर्टल बे है वहां जाना पसन्द करेंगे?"

"टर्टल यानि कछुआ। क्या वहां कछुए हैं?"

"हां सर,बहोओओत बड़े और हमारी कमर तक ऊंचे। "

"चलो फिर । " सगुन ने कार का दरवाज़ा बन्द करते हुए कहा।

चलती कार से सगुन ने आसपास देखा तो उसे लगा रास्ता स॔करा है, जिस पर दो कारों का एकसाथ चलना किसी चैलेन्ज से कम नहीं था। उसने ड्राईवर से पूछा,"यहां सड़क तंग क्यों है?ये सिर्फ यहीं पर है या पूरे मोरिशियस में ऐसी ही हैं?"

" सर ! हमारे यहां छोटी छोटी नावों में घूमना फिरना लोग ज़यादा पसन्द करते हैं। पोर्ट लुई बन्दरगाह के आसपास में चौड़ी सड़क है। "

"तुम हिन्दी अच्छी बोल लेते हो"

"हां सर मैं ने पटना से साहित्य में बीए किया है। मारेशस के ज्यादातर लोग कालेज पढ़ने भारत ही जाते हैं। " कभी सड़क तो कभी सगुन की ओर देखते हुए ड्राईवर बोला।

" तुम तो पढ़े लिखे हो और ड्राइवरी?"

" सर साहित्य को आजकल पूछता कौन है? चालू कहानियों के पैसे मिलते हैं। मगर साहित्यिक किताबों के पन्नों पर लोग जिपे ( पाव जिसमें मछली डालकर वड़ापाव की तरह खाइ जाती हैं) खाते हैं और फिर फेंक देते हैं। " ड्राईवर ने अपनी भड़ास निकाली।

" इसका कारण बता सकते हो?"

" आप सरीखे गुणीजन को बताने में कोई हर्ज़ नहीं सर, वर्ना भैंस के आगे बीन बजाने से तो बजाने वाले का गला सूज जाता है,पर भैंस पर कोई असर नहीं पड़ता। "

सगुन ने कोट की जेब से डनहिल इन्टरनेशनल का लम्बा चौड़ा सिगरेट पैक निकाला। उसमें से एक लम्बी सी सिगरेट निकाली,होठों के बीच रखकर डनहिल के ही खूबसूरत दीखने वाले लाईटर से सुलगाई और हल्के कश के धुएं के साथ ही उसके मुंह से शब्द निकले," हां तो क्या कारण है?"

" साहित्य ज़िन्दगी की सच्चाईयों से आमना सामना करवाता है और 'लोग' नाम का प्राणी सच्चाई से भागता फिरता है। ज़्यादा से ज़्यादा लोक प्रिय होने की ललक सपने दिखा दिखा कर कृति के कर्ता की जेब तो भरती है मगर लोगों की जेब और ज़िन्दगी खाली ही रहते हैं। " एक छोटा मोड़ लेकर ड्राईवर ने कार रोक दी ,बोला,

" सर धिस इज़ टर्टल बे। "

" अरे तुम तो अंग्रेज़ी भी बोल लेते हो... " सगुन ने साश्चर्य पूछा।

" सर मैंने किसी भाषा विशेष के साहित्य में नहीं बल्कि साहित्य विधा में बीए किया है। इसमें संस्कृत,हिन्दी और इन्ग्लिश तथा अन्य भाषाएं शामिल हैं। "

सगुन मुस्कुराते हुए कार से बाहर आया। आसपास नज़र घुमाई ,थोड़ा थोड़ा अन्धेरा थोड़ा थोड़ा उजाला था। कहीं कछुए नहीं दिखे तो उसने ड्राईवर से पूछा," तुम तो कहते थे यहां बड़े बड़े कछुए हैं। "

" सर वो सिर्फ दिन में धूप सेंकने ही पानी से बाहर आते हैं। शाम ढलते ही वापस पानी में सरक जाते हैं। "

 बीच पर टहलते-टहलते सगुन ने देखा । बीच के किनारे बार और रेस्टोरन्ट की कतार सी लगी थी। कहीं हिन्दी फिल्मी गाने बज रहे थे तो कहीं क्रियोल (Local Lingo) और फ्रेन्च धुनें। एक अजीब तरह का शोर था। इन सबसे दूर बीच की रेत पर उसे एक टिमटिमाती लाईट दिखी। नज़दीक जाकर देखा तो वो एक झुग्गी थी जिसके बाहर दो चार टेबल कुर्सी छितरे पड़े थे।

न जाने उसे क्या सूझी कि वो एक कुर्सी पर बैठ गया। तभी एक दस बारह साल की लड़की उसके पास कूल्हे लटकाती मटकाती आई और बोली। "कहिये साब क्या लाऊं?"

सगुन ने उस लड़की को ऊपर से नीचे तक देखा और उसको पूछा;

" बेटा ! तेरा नाम क्या है?"

पूरे शरीर को लहराते,अंगड़ाई लेते हुए वो बोली,

" रा,,,,,,धा,,"

"क्या लाएगी?" सगुन ने पूछा,

"हमारे पास सब है। दारु है,बीसकी है,देसी है,बिदेसी है... और खाना भी है। "उसने अपने दोनों हाथ नृत्य मुद्राओं में उछालते हुए पूरा मेनु सुना दिया।

सगुन को इस बच्ची के पास शराब मंगवाना कुछ ठीक नहीं लगा। उसने कहा,

" तेरे बापु या भाई को भेज दे। "

"भाई तो जहाज में काम पे गया है। वो वहां मात्लु (Matlot, a french word meaning pilot,नाखुदा,नाव खिवैया) है। बाबा हैऔ उसको बुलाती हूं। " कहकर राधा वापस मुड़कर नाचती कूदती झुग्गी में चली गई।

सगुन ने समुद्र की ओर देखा। हल्की तरंग जैसी मौजें अलग ही तरह का घूघव-रव कानों में भर रही थी।

"नमस्ते सर जी। "

सगुन ने आवाज़ की दिशा में देखा एक अधेड़ उम्र आदमी कन्धे पे अंगोछा डाले खड़ा था।

"कहिये सरकार," वो बोला,"आपकी क्या सेवा करुं?"

सगुन ने पूछा," चिवास रिगल है?"

उसकी मान्यता के विपरित जवाब मिला,

" है। हमरे पास जोनी वोकर की ब्लैक लेबल,प्लेटिनम लेबल भी है। "

" अच्छा? और ब्लू लेबल?"

" जी सर वो भी है। वैसे उसे पीने वाले दुई तीन महीने में एकाध ही आवै है । बहुत मह॔गी है ना! लेकिन हम एक ठौ बाटल ला रखे हैं। उ कहत है ना ,न जाने किस रूप में नगद नारायण मिल जायं। "

सगुन ने कहा," ब्लू लेबल महंगी तो है ही लेकिन उसकी एक खासियत है कि उससे नशा नहीं होता और तुमुल विचारों से घिरे दिमाग को एकदम शान्त कर देती है और बहुत अच्छी नींद आ जाती है। तो उसी का एक बड़ा पैग ले आओ। और हां तुम्हारा नाम क्या है?"

" निभु"

"निभु?" चौंकते हुए सगुन बोला,

" निंबू ज्यादा खाता था क्या बचपन में?

" निबू नईं निभु। । निभु। । निइइ... भुउउउ। वो साब हमरा जनम का पहले हमरा माई बाबा का निभता नई था। हम जनम का बाद दोनों में निभना चालु हुआ तो मेरा नाम निभु रखा। "

इतना बोलकर वो चला गया।

थोड़ी देर में राधा एक प्लेट लेके एक पांचेक साल की लड़की के साथ आई जिसने सोडा बोटल पकड़ रखी थी।

"ये मेरी छोटी बहन है। "

सगुन ने उस छोटी बच्ची से पूछा," तेरा नाम क्या है?"

"पपीइइ। "सोडा बोटल टेबल पर रखते हुए वो बोली।

"पप्पी?" सगुन का माथा ठनका। उसने सोचा आखिर ये उसके साथ हो क्या रहा है ? क्यों हो रहा है? पहले राधा,फिर राधा,फिर फिर राधा यहां भी राधा ,मुम्बई एयरपोर्ट पर निभु और अब ये पप्पी। कहीं ये नियति का कोई ईशारा तो नहीं?सारे नाम मेरे स्कूली साथियों से सम्बन्धित हैं।

सगुन ने झट से अपने मन को मोड़ कर बच्ची से पूछा,

" गुड़िया! पप्पी का मतलब मालूम है?"

हांआंआं, " अपने दोनों नन्हे हाथ अपनी छाती पर रखते हुए उसने कहा।

"पपी यानि मैं !!"

                        

होटल पहूंचकर सगुन ने मिस राधा से कहा,

" इस वक्त साढ़े आठ बजे हैं। तुम लोग नाश्ता करके 9:30 बजे यहां वापस आ जाओ। हम सब इलोसर्फ (ILE AUX CERFS,island of Deers) जाएंगे जो यहां से 55 किलोमीटर दूर है। "

सगुन थोड़ी देर वहीं खड़ा कुछ सोचता रहा फिर रिसेप्शन काउन्टर जाकर उसने खूबसूरत रिसेप्शनिस्ट से पूछा,

"क्या तुम सुबह 6। 30 के आसपास यहां थीं?"

चौंकी-सी रिसेप्शनिस्ट ने कहा," व्हाट केन आय डु फोर यू ,सर?"

"आज सबेरे कोई चेक-इन हुआ । उसका नाम जानना था। "

" वन मिनट सर। "

कहकर रिसेप्शनिस्ट ने अपने सामने रखे लेपटोप के की बोर्ड पर दो चार उंगलियां दबाई और बोली,

" कोई मिस्टर कमल भटनागर..."

सगुन सोच में पड़ गया, कहीं ये भटनागर सर का लड़का तो नहीं जो स्कूल में इंग्लीश पढ़ाते थे...शायद हो भी सकता है। यहां आजकल मेरे आसपास ऐसी ऐसी घटनाएं आकार ले रहीं हैं जो स्कूल के दिनों को याद करा देती हैं, सगुन ने सोचा।

थोड़ी ही देर में सगुन एन्ड कम्पनी कार सवार हो कर निकल पड़ी।

रास्ते में ड्राइवर ने उन्हें जानकारी दी कि वे पोर्ट लुई से ट्रुडो डाउस (Trau D'Eau Douce,Hole of fresh water) जा रहे हैं जहां से छोटी नाव में बैठ कर इलोसर्फ जाया जा सकता है।

करीब पौन घन्टे में सब ट्रुडो डाउस जेटी पहूंचे। पता चला कि ये इलोसर्फ द्वीप प्राईवेट पार्टी की प्रोपर्टी है और वहां जाने के लिये टिकट लेनी पड़ती है तो सगुन ने टिकट खरीदे और एक साधारण सी छोटी नाव में सब बैठ गये।

ट्रुडो से इलोसर्फ तक का समुद्र खास गहरा न होने से बड़ी बोट चल नहीं सकती थी। रास्ते भर समुद्री झाड़ियों के बीच से संकरी जगहों से जब नाव गुज़रती थी तो लगता था झाड़ियों में अब फँसे तब फँसे।

पानी का रंग हल्का हरा था और एकदम स्फटिक-सा पारदर्शी होने के कारण झाड़ियों के पानी के अन्दर के हिस्से को भी देखा जा सकता था।

आसपास के वातावरण ने सगुन को सोचने पर मजबूर कर दिया काश! अपनी पत्नि को भी साथ लाता !!

करीब 15 मिनट के बाद नाव इलोसर्फ जेटी से लगी।

नाव से उतरकर जेटी पर खड़े खड़े सगुन ने चारों ओर नज़र दौड़ाई। अवाक और दंग रह गया सगुन। प्रकृति इतनी खूबसूरत भी हो सकती है उसने कभी सोचा ही न था।

मिस राधा से सगुन ने कहा,

" तुम सब लोग जहां घूमना चाहो घूमो। इस वक्त दस बजे हैं। बारह बजे मुझे फोन करना, हम फिर साथ हो जायेंगे खाना खाने। "

अभी सब मुश्किल से जेटी के बाहर आये ही थे कि मिस राधा ने पूछा,

" सर मैं सर्फिंग करने जाऊं?" कहते हुए उसने हाथ से इशारा किया एक छोटी केबिन की ओर जिस पर एक साइन बोर्ड लगा था 'सर्फिंग अवेलेबल जस्ट फोर यूएस डोलर 200 फोर 15 मिनट्स'

सगुन ने पहले तो मिस राधा को सर से पांव तक देखा फिर उस केबिन के पास गया और काउन्टर पर बैठे आदमी से पूछा," ये दो सौ डालर सिंगल टिकट के हैं या रिटर्न टिकट के?"

सगुन के सवाल का मर्म समझ चुके काउन्टर से जवाब आया,

"आपकी सेफ्टी का पूरा जिम्मा हमारा। आपके साथ और आसपास हमारे अनुभवी डाइवर्स और सर्फर्स रहेंगे। आप जैसे हैं वैसे वापस भी लाएंगे हां थोड़ा बदलाव ज़रूर होगा वो 15 मिनट के सर्फिंग के बाद आपके शरीर,पैर,पीठ में अनोखी ताकत का अनुभव, दौड़ती बोट और आपके पैरों में बंधे सर्फबोर्ड से पानी की उड़ती फुहारों से पाई अनूठी ताजगी का अनुभव वगैरा बदलाव ज़रूर होंगे। " एक सेल्समैन की अदा से उसने सगुन को समझाया।

सगुन ने मिस राधा को मंजूरी दे दी और खुद बीच देखने निकल पड़ा। मिस राधा और अन्य वहीं रहे और सर्फिंग की तैयारी में जुट गये।

सगुन बीच पर टहलने निकल पड़ा।

जहां तक उसकी नज़र पहूंचे, उसके दाईं ओर छोटे बड़े रेस्टोरन्ट, लिकर बार, ज्यूस बार, मसाज बार और न जाने किस किस किस्म की कैसी कैसी दुकानें थीं तो उसके बायें रेतीले बीच पर बिछी कुर्सियों पर देश विदेश के पर्यटक सूर्य स्नान कर रहे थे।

अचानक उसने देखा एक ठिगनी कदकाठी वाला शख्स उसकी ओर चेहरा करके एक रेस्टोरन्ट के पास पड़े टेबल पर बैठा ज्यूस पी रहा था। सगुन उसके पास गया और बोला," सुब्रतो घोष?"

शख़्स ने सिर हिलाते कहा," आमी सुब्रोतो घोष बाबू। "

"बरतन वाला,"सगुन ने उसका वाक्य पूरा किया,और फिर बोला,

"तेरी बरतन की दुकान पर बड़ा सा साइन बोर्ड लगा है 'बेंगाल पोटरीज़' क्यों ठीक है?"

" बिल्कुल ठीक बाबू मोशाय। लेकिन तुमी कौन होबे?"

" आमी तेरा ... साले सुबरे, मुझे नहीं पहचाना?" सगुन उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए बोला,

"एक बार चश्मा साफ करके ध्यान से देख। "

सुब्रतो खड़े होते हुए चिल्ला उठा," अरे सगुन तूऊऊऊऊ?"

झपट कर वो दोनों एक दूसरे के गले लग गये।

                                         

सगुन ने जूस की चुस्की लेते हुए पूछा,

"तू यहां कैसे?"

"क्यों?" सुब्रतो ने प्रतिसवाल किया," मैं यहां नहीं आ सकता क्या?"

" नहीं, मेरा पोइन्ट दूसरा है। मैं परसों रात मुंबई से यहां आने निकला तब से लेकर तुझसे मिलने तक मैं जिन लोगों के सम्पर्क में आया अधिकांश के नाम अपने सहपाठियों की याद दिला गये,इतना ही नहीं निभु से तो व्यक्तिगत मुलाकात हुई। और शायद एक और । । "

"निभु? वो घनचक्कर? कहां मिला तुझे?" सुब्रतो ने सगुन को बीच में ही काटते हुए सवालों की झड़ी लगा दी।

" मुम्बई एयरपोर्ट पर कुली है,वहीं वो परसों रात मुझे मिला। और तो और भट्टू से मुलाकात होते होते रह गई। "

" भट्टू...... वो भटनागर सर का लड़का कमल। । क्लास में हमेशा फर्स्ट आता था । "

' हां ,वो भी आज सबेरे उसी होटल में दाखिल हुआ जहां मैं ठहरा हूं। वैसे अभी सिर्फ अटकल है। अकस्मात एकाध हो सकता है,इतने सारे तो नहीं। तुझे क्या लगता है जो मैं सोच रहा हूं?" सगुन कुछ विचलित सा लगा इतना बोलते बोलते।

"ये मैं कैसे कह सकता हूं। तेरी सोच तू जाने। "

" नियति के इशारे कभी अन्त:प्रेरणा के रूप में तो कभी कोई घटना विशेष बनकर हमारे सामने आते हैं,और हमारा नसीब बन जाते हैं। "

दूर आसमान में नज़रें गड़ाये सगुन बोल उठा...

नन्हा सगुन कार में स्कूल आता था,,,आठवीं कक्षा में आते आते मां का देहान्त समूचे परिवार की जड़ हिला गया। उसकी दादी ने घर संभाला लेकिन पिता की मन:स्थिति व्यवसाय संभाल न सकी और धीरे धीरे सारे सुख साधन ओझल हो गये। रह गये तो बस बे-बसी,कंगाली और जब ऐसा होता है तो परछाई भी साथ छोड़ देती है।

लेकिन इस एक घटना के कारण कैशोर्य में कदम रख रहा सगुन एक ओर पढ़ाई में पिछड़ता गया तो दूसरी ओर दुनियादारी के कटु अनुभवों ने उसे अन्यथा विचक्षण बना दिया।

जो सगुन पूरे क्लास में दूसरे, तीसरे स्थान पर रहता था वो एस। एस। सी। तक पहुंचते पहुंचते काफी पिछड़ गया।

स्कूल की अन्तिम परीक्षा में उत्तिर्ण हो कर कालेज में दाखिला लिया लेकिन जिस दिन कालेज का सत्र शुरू हुआ, उसके पिता चल बसे।

सुबह-सुबह अपनी दुकान में बैठा सगुन अपनी किस्मत को कोस रहा था कि वह कॉलेज नहीं जा सका क्योंकि सारी आर्थिक जिम्मेदारियां उसके ऊपर आ गई थी। दुकान भी कुछ खास चलती नहीं थी।

यह बंदरगाह शहर दरअसल सरकारी स्टाफ क्वार्टर्स की कॉलोनी जैसे थर्मल कॉलोनी ,पोर्ट कॉलोनी ,रेलवे कॉलोनी इत्यादि । ऐसे में जाहिर सी बात है कि सुबह 10:00 बजे के बाद लगभग लगभग वह दुकान में खाली बैठा बैठा मक्खियां मारता रहता था अचानक उसे ख्याल आया कि उसके शहर में एक नया सिनेमाघर आज से शुरू हो रहा है। क्यों ना पहले ही दिन कोई फिल्म देखी जाए । उसने दुकान को ताला लगाया और चल पड़ा सिनेमा घर की ओर।

। अभी वह सिनेमाघर के गेट के अंदर दाखिल ही हुआ था कि उसे उसका एक दोस्त मिल गया । दोस्त का चेहरा उतरा उतरा सा था और काफी चिंतन ग्रस्त दिख रहा था। दोस्त को उसने पूछा "अरे तू भी फिल्म देखने आया है?"

दोस्त ने कहा "अरे नहीं रे...मैं यहां थियेटर मैनेजर हूं कुछ मत पूछ यार आज पहला ही दिन है और हमारा बुकिंग क्लर्क अभी तक नहीं आया और आज पहला दिन होने के कारण भीड़ भी बहुत है तू खुद देख ले । "

सगुन ने चारों ओर नज़र दौड़ाई। नया थियेटर देखने वालों का तांता लगा था।

सगुन के दोस्त ने लगभग गाड़गिड़ाते हुए सगुन से कहा," शो शुरू करना है और बुकिंग क्लर्क का कोई अतापता नहीं है। सिर्फ पहले शो की बुकिंग तू कर दे। दूसरे शो से तो वो आ ही जायेगा। "

सगुन सोच में पड़ गया। उसने पहले कभी ऐसा काम नहीं किया था लेकिन एक शो के लिये उसने हां कर दी।

सगुन जब फिल्म देखकर बाहर आया तो मैनेजर ने उसे रोक लिया कहा कि बुकिंग क्लर्क आया नहीं है।

...... इस तरह सगुन ने उस दिन के सारे शो की टिकट बुकिंग की।

दूसरे दिन सगुन के दोस्त का सगुन पर फोन आया। उसने बताया कि हमारा बुकिंग क्लर्क बीमार हो गया है इसलिए उसने काम छोड़ दिया है। मैं चाहता हूं कि तू आकर के हमारा बुकिंग संभाल ले।

सगुन ने सोचा चलो बैठे से बेगार ही भली। कुछ ना कुछ सैलरी तो मिलेगी, और काम चाहे जो भी हो छोटा तो होता नहीं,वही कर लेते हैं

उसने हामी भर दी।

बस इस तरह सिलसिला 1 महीने तक चलता रहा। अचानक उसके दोस्त ने इस्तीफा दे दिया।

क्योंकि सगुन मैनेजमेंट में भी कभी कभार हाथ बंटाता था इसलिए थिएटर के मालिक उस पर मेहरबान हुए और उन्होंने उसे ही थिएटर का नया मैनेजर नियुक्त कर दिया।

सिनेमा घर के कामकाज में उसने दिल लगाकर काम किया और एक दिन ऐसा भी आया जब वह सिनेमाघर एसोसिएशन का प्रेसिडेंट बन गया।

इस घटना से यह तो साफ हो गया कि वह बहुत ही कार्य कुशल और निपुण था।

इन्हीं दिनों में उसकी मुलाकात सिनेमा घर के मालिक की बेटी से हुई,जो यदा कदा थियेटर का कामकाज देखने आती रहती थी। वो सगुन की कार्यकुशलता से प्रभावित हुई। धीरे धीरे दोनों नज़दीक आये और उन्हें पता ही न चला कब वो एकदूसरे के प्रेमपाश में बंध गए

"अबे ये क्या आंखें फाड़कर देख रहा है आसमान में?"

सुब्रतो सगुन के कन्धे पकड़ कर झकझोरते हुए चिल्लाया।

सगुन जैसे होश में आता दिखा तो सुब्रतो ने कहा,"प्यार हुआ,इकरार हुआ और शादी हुई। इसमें कौन नई बात है?"

सगुन ने लम्बी सांस छोड़ते हुए कहा," अरे नहीं सुबरे नहीं। मेरी शादी आसानी से नहीं हुई। हम दोनों के प्यार के लिये परीक्षा की घड़ी जैसे मुंह बाये खड़ी थी। एक दिन मेरे बोस यानि थियेटर के मालिक ने मुझे अपने बंगले पे बुलाया और सीधे पूछ लिया...... ।

" तो तू मेरी बेटी से शादी करना चाहता है ... अच्छी बात है। तूने मेरा बंगला देखा,थियेटर देखा,मार्केट में मेरी इज़्ज़त देखी, हमारे समाज में मेरा स्थान भी तूने देखा है। अब तू मुझे सिर्फ इतना बता कि अगर मेरी जगह तू होता तो अपनी प्राणों से प्यारी लाड़ली को पांच सौ छे सौ रुपये पाने वाले अपने ही नौकर के हवाले कर देता,ज़िन्दगी भर के लिये?"

सगुन ने एक क्षण भी गंवाये बिना जवाब दिया,"नहीं। "

"बस तो फिर सबसे पहले मेरे थियेटर की नौकरी छोड़ दे। तेरे में प्रतिभा है इसलिये हमारा थियेटर पूरे जिले का प्रमुख है। बस तू मेरी बराबरी में खड़ा हो के दिखा, फिर तुझे दामाद बनाने में मुझे कोई दिक्कत नहीं। "

सगुन भारी दिल से वहां से निकल गया।

सगुन की खुद्दारी उसे रोने से रोक रही थी। उसे एक बात समझ में आ गई थी कि संघर्ष ही एक मात्र रास्ता है। संघर्ष परिस्थितियों से। संघर्ष

अपने आप से। वो जैसा है उसे बदलकर शारीरिक मानसिक रूप से चौकस, चौबन्द और दूरंदेशी बनना पड़ेगा। हो सकता है संघर्ष लम्बा चले। अगर ऐसा हुआ तो हो सकता है उसे उसके प्यार से हाथ धोने पड़ें। ये तो वो सह नहीं पायेगा।

तो? आसान तरीका भगा ले जाने का। लेकिन नहीं इससे तो ज़िन्दगी भर भगौड़े का लेबल लग जायेगा।

तो? वो कुछ तय नहीं कर पा रहा था लेकिन इतना तो उसने ठान ही लिया था कि कम से कम पांच हज़ार हर महिने कमाने ही हैं ताकि वो अपने दिल को तसल्ली दे सके।

सगुन को परिस्थिति की भ्रमणा के मकड़जाल में उलझा देखकर उसकी दुकान के बाजू वाली हार्डवेर दुकान के दुकानदार नवीन ने उसे सलाह दी कि सब कुछ भगवान पर छोड़ दे।

सगुन ने पहले तो शहर में ही छोटी मोटी नौकरियां की लेकिन बात बनती नज़र नहीं आई।

तभी आशा की किरण बनकर उभरी उसकी फूफी। उनकी श्रीलंका में टेक्सटाईल फैक्टरी थी। उन्हों ने सगुन को वहां बुला लिया और फैक्टरी का मैनेजर बना दिया। रहने के लिये सारी सुख-सुविधा वाला मकान और मोटी रकम बतौर माहवार तनख्वाह।

सगुन को लगा अब दिल्ली दूर नहीं। एकाध साल में मोटी रकम कमा कर वो अपने प्यार का हाथ मांगने उसके पिता के पास जा सकता है।

लेकिन प्रेम-परीक्षा की घड़ी उसका इन्तज़ार कर रही थी।

एक दिन अचानक फूफी ने सगुन को घर बुलाया।

बड़े प्यार से खाना परोसा और कहा कि अब तू शादी कर ले मेरी बेटी के साथ। मेरे पास जो कुछ भी है वो सब तेरा। फैक्टरी मैनेजर की बजाय तू मालिक बन जा।

पल भर तो सगुन ठगा सा रह गया। उसे लगा उसकी तकदीर का ताला बस खुलने ही वाला है।

मगर अगले ही क्षण उसे अपना प्यार याद आया जो उस वक्त भगवान से प्रार्थना कर रहा था। ।

"फिर?"सुब्रतो ने पूछा; "फिर क्या हुआ? तूने क्या जवाब दिया?"

गहन सोच की गहराई में से बाहर निकलते हुए सगुन ने कहा,

" इसमें होना क्या था,सुबरे! बस वही किसी को ना तो सुननी पसंद ही नहीं होती। जब मैंने फूफी से अपनी बात कही तो उस वक्त तो उन्होंने कुछ नहीं कहा ,लेकिन दूसरे ही दिन मेरे हाथ में मुंबई का रिटर्न टिकट था जो मेरे कोलंबो जाने के वक्त निकलवाया था। बस खाली हाथ मैं मुंबई वापस आया। "

"लेकिन एक चमत्कृति मैंने देखी। वो ये कि मेरे सामने इतनी अच्छी ऑफर फैक्ट्री का मालिक, लड़की, सारी जायदाद सब कुछ था। मैंने वह प्रस्ताव फूफी का स्वीकार क्यों नहीं किया यह सवाल मैंने तेरी भाभी से बाद में पूछा था, तब उसने मुझे बताया कि जिस दिन तुम्हारी फूफी से बात चल रही थी उसी दिन उसने भगवान को प्रार्थना की थी। शायद उसी प्रार्थना का परिणाम था कि मेरे मन में ऐसी कोई बात ही नहीं आई कि मैं लालच में फंस जाऊं "

सुब्रतो ने कहा अच्छा तो मुंबई वापस आते ही तूने शादी कर ली। "

सगुन ने कहा," अरे नहीं सुबरे ! ये मेरे नसीब में तब नहीं था। मेरे नसीब में तो बस दुनिया को समझना लिखा था। मैंने देख लिया कि अपने लोग भी अपनापन तब दिखाते हैं जब उनका कोई मतलब हो। मैंने तय कर लिया किसी का भी साथ लिये बगैर अब ये संघर्ष मैं अकेला ही करूंगा चाहे जीतूं या हारूं। बस मैंने दौड़ धूप शुरू कर दी । "

आगे बोलते बोलते अचानक अटका सगुन। फिर सुब्रतो से कहा,

" ज़रा मुन्डी घुमा के देख तेरे पीछे कौन आ रहा है?" सगुन के इतना कहते ही सुब्रतो ने अपने पीछे मुड़कर देखा कुछ ही गज़ की दूरी पर एक सफेद दाढ़ी वाला हाथी-सी मन्थर चाल चलते आ रहा था। सुब्रतो ने आवाज़ लगाई," हलो मिस्टर भटनागर... "

दाढ़ी वाला अपनी धुन में चलता रहा।

"अबे ओ भट्टूऊऊऊऊऊ" अबकी बार सगुन चिल्लाया तो इसका असर हुआ।

दोनों के नज़दीक आते ही दाढ़ीवाला तपाक् से बोल पड़ा," अरे सगुन सुबरा तुम दोनों यहां?"

" मैं तो सुबह से तेरा पीछा कर रहा हूं। तू कहां से आ रहा है? आज इंडिया से तो कोई फ्लाईट है नहीं। " सगुन ने कमल को गले लगाते हुए पूछा।

कुर्सी पर अपने आपको गिराते हुए कमल ने जवाब दिया," हिथ्रो से। "

"तो बन्दा लन्दन से आ रहा है," सुब्रतो ने चुटकी ली।

" हां वहां मेरी डिज़ाइन की हुई ओशियोनिक मटीरियल से बनी ज्वेलरी का एग्ज़ीबिशन था,"

"ये कौन सा मटीरियल है?" सुब्रतो पूछ बैठा। और साथ ही एक और

ट्रोपिकल ज्यूस के लिये वेटर को इशारा कर दिया।

" ये जो समुद्र में सिपियां, महीन से शंख, मरे हुए अजीब से दिखने वाले समुद्री जीवों के अस्थि-पिन्जर वगैरा काफी दिलचस्प रंग और डिज़ाइन वाले होते हैं । ऐसी ज्वेलरी की डिमान्ड कई देशों में होती हे। ऐसे नाविन्यपूर्ण मटीरियल की तलाश में मैं यहां आया हूं। मुझे क्या मालूम था कि मेरा सामना दो अजीब ज़िन्दा जीवों से होने वाला है। " कमल ने सगुन सुब्रतो की ओर इशारा करते हुए कहा।

सगुन का मोबाईल बज उठा। उसने फोन उठाया," हैलो... हां राधा क्या? बारा बज गये? "

"राधा?" कमल चौंकते हुए बोल पड़ा,"राधा तेरे साथ है? मैंने तो सुना था कि उसने मेडीसिन में दाखिला लिया। "

"तूने ठीक सुना। वो हमारी बैचमैट राधा डोक्टर है और त्रिवेन्द्रम् में रहती है। "

सगुन ने फोन पर फिर बोलना शुरू किया," तुम लोग tropical रेस्टोरन्ट के पास आ जाओ मैं यहां मेरे दो लंगोटिया नमूनों के साथ बैठा हूं। "

कहकर सगुन ने फोन बन्द कर दिया।

" तू किसी आफिशियल काम से आया है क्या?" भट्टू ने पूछ डाला। "

इतने में मिस राधा और अन्य वहां आ गये।

"चलो यार कहीं चलते हैं यहां से। "खाना खा चुकने के पश्चात् सगुन ने कहा और सब लोग बीच पर निकल पड़े।

सुरज की तेज़ धूप बीच की रेत को चमका रही थी तो दूसरी ओर समुद्र के हरे-से स्वच्छ स्फटिक जैसे अथाह जल भंडार पर पड़ कर आसमान में परावर्तित हो कर सफेद ट्रोपिकल रुईदार ,निर्बाध विहंग विचरण करते बादलों से भरे नीले आसमान को और चमकीला बना रही थी। समुद्र से बीच की ओर बहता मन्द समीर भरी दुपहरी में भी ठंडक का एहसास करवा रहा था।

सगुन टोली चलते चलते ठिठकी। उनके सामने कुछ लोग दायरा बनाकर खड़े थे। वे भी दायरे में कौतूहलवश शामिल हुए तो देखा चार पांच अफ्रीकी दीखने वाली लड़कियां रंगबिरंगी घर्रारे पहने नाच रही थी और गा रही थी

लाल मोटर आवी

गुलाबी गजरो लावी

मारां भाभी

सासरिये लीला ल्हेर छे

तीनों को सहसा अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। कमल से रहा न गया। उसने अपने पास खड़े व्यक्ति को कहा ," धीस इज़ अवर गुजराती गरबा। "

उस व्यक्ति ने झूमते हुए कहा," नो गड़बा,इटीज सेगा डान्श,मोरेशस सेगा डान्श। "

थोड़ी ही देर में सगुन टोली चमारेल की ओर रवाना हो गई।

चमारेल मोरिशियस का एक छोटा सा गांव है, जिस के नज़दीक की एक छोटी पहाड़ी के ऊपर एक टीला है जिसे देखने दुनिया भर के लोग आते हैं।

करीब 4 बजे सगुन टोली चमारेल पहुंची और पहाड़ पर पहुंची वहां का नजारा देखते ही सब आश्चर्य चकित रह गये।

वह क्या देखते हैं, एक छोटा सा टीला जो कि सात अलग-अलग रंगों की मिट्टी से बना हुआ था। और ये रंग कुछ इस तरह से एक दूसरे के साथ मिलकर बने थे कि टीला बहुत ही खूबसूरत दीख रहा था । सगुन को सबसे पहला ख्याल आया शायद यही विविधता में एकता है, जो हमारी स्कूल बैच से डिटृटो मेल खाता है।

अचानक सगुन चिल्ला उठा, "यूरेएए... काआआआआ । "

सब लोग उसका मुंह तकने लगे। अचानक इसे पागलपन का दौरा कैसे पड़ गया? सबके चेहरे पर लिखे प्रश्नचिन्ह को देखकर सगुन ने कहा "मुझे मिल गया, आखिर नियति मुझसे क्या करवाना चाहती है। "

सुब्रतो ने पूछा "अरे पागल हो गया है क्या ? ये तू जब से मुझे मिला है नियति नियति का राग आलाप रहा है, आखिर बात क्या है?"

सगुन ने कहा," जब से मैं मुंबई से निकला हूं हमारे स्कूल बैच के सारे बैचमेट मुझे या तो स्वयं मिले हैं या उनके ही नामधारी लोगों से मेरी मुलाकात हुई है। पिछले दो दिनों से मैं यही सोच रहा हूं कि आखिर नियति मुझसे क्या करवाना चाहती है। यहां इन सात रंगों के टीले को देखकर मुझे ट्यूबलाइट हुई। तुझे तो पता होगा कि हमारे बैच में सात अलग-अलग मातृभाषाएं बोलने वाले विद्यार्थी थे। हमारे सारे साथी कोई तमिलनाडु से था तो कोई महाराष्ट्र से था कोई गुजरात का था तो कोई पंजाबी था तो कोई सिन्धी। इस टीले को देखकर अब लग रहा है कि क्यों ना हम फिर से सब को एक जगह पर इकट्ठा करें ताकि जितना खूबसूरत यह टीला दिख रहा है हमारा बैच भी दीखे एक ही जगह पर। "

सुनते ही भट्टू उछल पड़ा," अरे हां यार सगुन! तेरा आईडिया तो बड़ा अच्छा है,रियूनियन...पुनर्मिलन का। आज 50 साल के बाद कौन कहां है कैसा है क्या है हम सब अगर एक जगह पर इकट्ठे हो जाएं तो सोने पर सुहागा। "

सगुन ने कहा," चलो हम ऐसा एक कार्यक्रम रखेंगे हमारे अपने स्कूल में जहां से हमने एस। एस। सी पास की। जहां हमने बाल मंदिर से लेकर एस। एस। सी तक की पढ़ाई की ,ज़िन्दगी का वो दौर हमने जहां बिताया जब हमने बच्चे से कैशोर्यावस्था के पड़ाव देखे। हमारे सारे साथियों को हम वहां बुलाएंगे। "

भट्टू ने कहा ,"बिल्कुल हम तीनों ने मिलकर के आज कितना आनंद उठाया। सोचो अगर पूरा बैच एक जगह इकट्ठा हो जाए तो कितना आनंद आएगा?"

सगुन टोली सतरंगी टीले पर पालथी मारकर बैठ गई।

मिस राधा ने कहा," लगता है ये सातों रंग टेम्परेचर के साथ घटते बढ़ते रहते होंगे। मुझे लगता है सवेरे ये रंग कुछ हल्के, ठंडे रहते होंगे, दोपहर को कुछ गहरे,तेज़ और शाम को फिर थोड़े हल्के ठंडे और नयनरम्य यानि कूल कूल। "

सगुन ने कहा ,"हां राधा! हमारी जिंदगी भी तो ऐसी ही है। हम कभी भी एक से तो रहते ही नहीं। जब बचपन होता है तो कैसे होते हैं? बिल्कुल सुहानी भोर की तरह। जब जवान होते हैं तो गर्मजोशी और जब शाम ढलती है तो बस तुम देख लो हम लोगों को हम तीनों को। "

सुब्रतो ने कहा," हां मज़ा भी तो यही है। जब शाम ढलती है तो पूरा दिन सुबह से लेकर शाम तक का हमें याद आता है। हमने क्या-क्या किया क्या खोया कैसे खोया,क्यों खोया ,क्या पाया कैसे पाया,क्यों पाया,कैसे थे ,अब कैसे हैं.... "

भट्टू अनन्त आकाश में देखते हुए बोल पड़ा,"हां,बस ज़िन्दगी एक दिन का ही तो खेल है... "

मिस राधा ने महसूस किया कि बात सिरियस होती जा रही है ,उसने प्रस्ताव रखा," सर आपको नहीं लगता अब हमें चलना चाहिए होटल पहुंचना है और फिर कल की तैयारी भी तो करनी है। "

सगुन ने कहा," हां यह ठीक है चलो फिर चलते हैं । भट्टू तो मेरे साथ होटल में ठहरा है लेकिन सुबरे तू कहां ठहरा है?"

सुब्रतो ने कहा ,"मैं तो बालाक्लावा बीच रिसॉर्ट । "

सगुन बोला," तू भी हमारे साथ ही आ। जा साथ बैठ कर बात करेंगे खाना वाना खाएंगे बड़े दिनों के बाद जो इकट्ठे हुए हैं। तू तेरी सुनाना भट्टू अपनी सुनाएगा और बाद में रात को चले जाना या चाहे तो तू हमारे साथ रह लेना बालाक्लावा बीच कोई खास दूर नहीं है । 1 घंटे का रास्ता है और क्या। "

सुब्रतो ने कहा हां यह ठीक है चल फिर तू भी क्या याद रखेगा। "

सब लोग वापस होटल की ओर चल पड़े।

जैसे ही सगुन मंडली होटल पहुंची तो सगुन ने मिस राधा से कहा तुम सब भी मेरे कमरे में आ जाओ फ्रेश होकर।

कमरे में पहुंचकर सगुन ने पूछा बोलो क्या पियोगे दोनों ने एक ही आवाज में कहा नेकी और पूछ पूछ ?आज तो सिर्फ शैंम्पेन ठीक है ।स

गुन ने इंटरकॉम पर चार शैम्पेन का आर्डर कर दिया और फिर सोफे पर बैठते हुए कहा हां सुबरे तुझे कैसा लग रहा है ?सुब्रतो बोला मुझे क्या लगेगा ठीक है सब । वैसे तेरा आईडिया तो अच्छा है कि हम सबको इकट्ठा कर ले मगर कैसे करेंगे ?

भटृटूने कहा "पहले शैम्पेन आ जाने दे एक दो घूंट पेट में जाने दे बाद में अकल अपने आप आ जाएगी ।

तब तक तू अपनी कहानी सुना।" सुब्रतो बोला" इसमें कहानी जैसा है ही क्या तुम दोनों को तो पता ही है कि हमारी बर्तन की दुकान है । मैं सवेरे स्कूल आया करता था और दोपहर को खाना खाने के बाद दुकान पर जाकर बैठता था ।

बाद में हम लोगों ने सोचा कि क्यों ना एक और दुकान खोली जाए तो हम लोगों ने घोष एजेंसी नाम की एक दुकान खोली जिसमें सिर्फ लगेज का सामान हम बेचते थे ।10 साल तक मैं उस दुकान पर बैठा । इसी दौरान मैं धंधे के काफी गुर सीखा। एक दिन अचानक भाई साहब ने मुझे कहा कि ऐसा कर अब तू मेरा यह कुरियर का बिजनेस जो है वह संभाल ले । पहले तो थोड़ा संकोच हुआ क्योंकि बैग लगेज की दुकान तो बस छोटे से सर्कल में थी तो मामला थोड़ा आराम का था मगर कुरियर के धंधे में दौड़-धूप कुछ ज्यादा ही होती है तो मैंने भाई साहब से कहा कि मैं संभाल के क्या करूंगा मगर उन्होंने मुझे समझाया कि किस तरह से यह बिजनेस चलाया जा सकता है एक छोटे से सर्कल में से मैं अब बड़े सर्कल मैं जा रहा था। जब हम लोग पढ़ते थे तो ज्योमेट्री और ट्रिगोनोमेट्री में सर्कल डायगोनल डायमीटर बातों में मैं उलझ जाया करता था मेरी खोपड़ी में कुछ बैठता ही नहीं था। लेकिन अब सब समझ में आ रहा है उसका कारण यह कुरियर का बिजनेस जिसमें सर्कल बहुत बड़ा होता है एक बड़े सर्कल में छोटे-छोटे असंख्य सर्कल होते हैं यह भी मुझे अभी पता चला । उसके बाद तो मैंने लॉजिस्टिक में पांव रखा फिर फैक्ट्री डाली जिसमें जो यह मल्टीनेशनल कंपनियां कॉस्मेटिक्स साबुन शैंपू वगैरा अपने ब्रान्ड नेम के साथ बेचती हैं वो मैं बनाता हूं, उनके स्पेसिफिकेशन पर। "

इतने में रूम की घन्टी बजी सगुन ने दरवाज़ा खोला तो सर्विस वेटर आया और शैम्पेन बोटल और अन्य चीज़ें साथ लाई ट्रोली में से उठाकर सगुन के सामने पड़ी टिपोय पर रखकर उसने पूछा सर बोटल खोल दूं?

सगुन कुछ बोले तभी मिस राधा और अन्य अन्दर आये। सगुन ने भट्टू को ऐसे देखा जैसे पूछ रहा हो शैम्पेन बोटल खोलनी आती है? भट्टू ने हकारात्मक सर हिलाया तो सगुन ने वेटर को वापस भेज दिया।

शैम्पैन देखते ही मिस राधा उछल पड़ी। "वाओ!सर मैं बोटल खोल दूं?"

सगुन ने पूछा कैसे खोलोगी पहले ये डिसाइड करो कि इसे दिवाली के अनार जैसे फव्वारा छोड़े ऐसे खोलनी है या फिर नोर्मल...

आज तो सेलिब्रेट करेंगे मिस राधा ने बोटल उठाई घुटनों के बल फर्श पर बैठी बॉटल के मुंह पर लिपटे सुनहरे कागज को हटाया उस पर चढ़े पतली वायर के छोटे से पिंजरे के सिरे को उल्टा घुमाकर खोला फिर एक बड़ा चाकू लिया उसके उल्टे यानी जहां धार नहीं थी उस जगह को बॉटल के बीचो बीच रखा और चाकू को बोतल के उपर हल्के हल्के घुमाया और फिर तेज गति से मुंह पर लगे कोर्क को उड़ाया जैसे ही कोर्क निकलने की आवाज आई उसने बोटल को अपने हाथ से जमीन पर नीचे सरका दिया। जमीन पर गिरते ही बॉटल पैंदेे पर बैठी और उसकी वजह से एक जोरदार फोर्स हुआ और सारी शैंपेन एकदम ऊंचाई तक फौवारा छोड़ती हुई बाहर निकली। सब ने मिलकर ताली बजाकर सगुन के रियूनियन के फैसले का जैसे स्वागत किया।

सोमवार की सुबह 7 बजे सगुन ने अपने सभी साथियों के साथ चाय पीते पीते मीटिंग की, सब को समझाया कि अब आज हमें क्या-क्या करना है ,मिनिस्ट्री ऑफ शॉपिंग में जाकर के वह लोग सेक्रेटरी से मिलें।  

मिस राधा को उसने शाम की मुंबई की टिकट बुक करने को कहा और खुद कमल के साथ पोर्ट लुइ बंदरगाह की ओर निकल पड़ा।

रास्ते में सगुन ने कमल से पूछा कि तू आज जो है वहां तक कैसे पहुंचा तो कमल ने बताया," देख भाई सगुन ! मैं तो ठहरा शिक्षक का लड़का। मैंने एसएससी के बाद टैक्सटाइल इंजीनियरिंग की डिग्री की और उसके बाद टेक्सटाइल मिलों में नौकरी की। वहां बहुत कुछ मैं सीखा और बाद में मैंने सोचा कि क्यों न मैं भी अपनी फैक्ट्री लगाऊं तो बंगलुरु में मैंने अपनी फैक्ट्री लगाई ,लेकिन वहां लेबर प्रॉब्लम हो गया तो फिर मैंने वह फैक्ट्री बंद कर दी और अब मैं डिजाइनिंग में हूं। ब्रान्डेड रेडीमेड गारमेंट की।

"वैसे तू यहां तक कैसे पहुचा? " कमल ने सगुन से पूछा।

"कुछ मत पूछ यार भट्टू। बस यूं समझ ले मेरा नसीब मुझे यहां तक ले आया। " पोर्ट लुई बन्दरगाह के मेन गेट के पास कार में से उतरते हुए सगुन बोला।

सुबह के आठ बजे थे और गेट पर चहल पहल तेज़ थी।

सगुन ने अपना विज़िटर पास जो मिस राधा ने शनिवार को निकलवाया था ,सिक्योरिटी को दिखाया,और कमल के साथ अन्दर दाखिल हो गया।

अन्दर जाते ही सगुन ने कहा,"तुझे तो पता है हम जहां पढ़े उस शहर के पास ही बन्दरगाह है। मैं काम ढूंढने इधर उधर मारा मारा फिर रहा था तब एक भद्रासी अन्ना मिला। उसने कहा काम चाहिये तो बन्दरगाह पर ढूंढो,और मैं पोर्ट पर पहुंच गया। "

दोनों चलते चलते पोर्ट पर हो रही गतिविधियां भी देख रहे थे।

कार्गो जेटी के पास एक जलपोत डाले खड़ा था और उसमें से कन्टेनर उतारे जा रहे थे,क्रेन के द्वारा।

सगुन ने ये दिखाते हुए कमल को कहा," भट्टू! तू माने या न माने मैंने चार दिन तक हमारे बन्दरगाह का निरीक्षण किया,सर्वे किया तो ध्यान में आया कि बन्दरगाह पर लेबर हैं लेकिन कार्गो हेन्डलिंग मशीन न होने की वजह से काम में तेज़ी नहीं आ पा रही थी। एक बार तो सोचा कि मैं भी लेबर सप्लायर बन जाऊं, लेकिन फिर सोचा कि क्यों ना कार्गो हेन्डलिंग मशीन लगाऊं? जब मशीन की इन्क्वायरी की तो मेरे हौसले पस्त हो गये। आंखों के सामने अन्धेरा छा गया। एक मशीन की कीमत उन दिनों लाखों में थी। मैं ने दो चार सगे सम्बन्धियों से बात की पैसों के लिये लेकिन निराशा ही हाथ लगी। "

"भट्टू, जिन लोगों ने अपनी पूरी जिंदगी बंदरगाह पर ही बिताई हो उनको पता है कि यहां किस किस तरह का माल सामान आता है उसे किस तरह से रखा जाता है, किस तरह से कंपनियों को दिया जाता है, कंपनियों से लिया जाता है। इस वक्त हम जहां खड़े हैं वहां तू देख रहा है चारों ओर कंटेनर ही कंटेनर हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ कंटेनर ही आते हैं ,बल्क कार्गो भी आता है इस बल्क कार्गो में तुझे जानकर आश्चर्य होगा कि , अनाज, पोटाश,यहां तक कि हड्डियों का चूरा भी होता है...

... बाहर से आए हुए किसी भी जलपोत में से सामान उतारना या चढ़ाना इतना ही काम नहीं होता। जिस तरह से पोस्ट ऑफिस में सोर्टिंग का काम होता है ठीक उसी तरह से जो सामान बाहर से आया उसे अलग-अलग जगहों पर सोर्ट आउट करके रखा जाना जिन जिन पार्टियों ने सामान मंगवाया है उन लोगों को डिलीवरी देना या जो पार्टियां भेज रही हैं बाहर उनका अलग सामान रखना बाद में उन्हें उठाकर के जेटी पर ले जाना, ये सारा हैंडलिंग का काम लेबर से हुआ करता था आज भी होता है लेकिन मशीन से जरा जल्दी होता है। इसीलिए मैंने ठान ली कि चाहे कुछ भी हो जाए मैं एक मशीन तो अपने बंदरगाह पर लगाऊंगा ही।

मैंने अलग अलग कार्गो हेन्डलिंग एजेंसियों के साथ मुलाकातें की । उन सब का यही कहना था कि हां आपकी बात तो सही है अगर आप कार्गो हैंडलिंग मशीन लाते हैं तो हम आपको काम देंगे लेकिन मशीन आप लेकर आइये । एक कंपनी ने मुझे ढांढ़स बंधाया कि मशीन आप किराए पर भी ला सकते हैं और अगर आपको किसी चीज की जरूरत पड़ेगी तो हम आपको मदद करेंगे ,हमारा काम भी हम आप ही को देंगे...

...बस फिर क्या था। मै मशीन किराये पर लाया और काम भी मिला। एक ही महिने में मैं जहां पांच हज़ार कमाने को तरसता था,वहां एक लाख रूपये का नेट प्रोफिट हुआ। उसके बाद तो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक जहाज भी खरीद लिया तो शिपिंग कम्पनी भी चालू हो गई। "

बट्टू ने बजाते कहा,"वाह तू जीवट वाला निकला। "

"चल मेरा काम हो गया,होटल वापस चलते हैं। शाम साढ़े छ: की फ्लाईट पकड़ने तीन बजे एयरपोर्ट जाना पड़ेगा। "

हां चल,मैं तो अभी यहां दो दिन और रूकने वाला हूं। वैसे ये तो बता भाभी कैसी हैं?"

"बिल्कुल वैसी" सगुन मुस्कुराते हुए बोला,"... जैसा मैं ने सोचा था!!"

दोनों कार सवार हो कर होटल की ओर चल पड़े ।

दूसरा अध्याय

रा....धा       

रा.....धा   

रा..... धा

का शोर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ समूचे हाॅल में गूंज उठा और गूंजता ही रहा। थमने का नाम ही नहीं ले रहा था।

शहर के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित रंगारंग कार्यक्रम में जैसे ही उद्-घोषक ने लक्ष्य महा विद्यालय की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले समूह नृत्य की घोषणा की कि पूरा हाॅल तालियों की गड़गड़ाहट से ऐसा गूंज उठा कि नृत्य में भाग लेने वाली अन्य छात्राओं के नाम तक राधा राधा के शोर में विलिन से हो गये।

उधर स्टेज पर निभु पर्दे की डोरी पकड़ कर खड़ा था कि कब उसे इशारा हो और कब वह पर्दे को हटाए ।उसकी सहपाठी छात्राओं ने स्टेज पर आना शुरू कर दिया ।एक से बढ़कर एक रंगीन पोशाक में सजी अपनी ही सहपाठिनियों को निभु पहचान नहीं पा रहा था,क्यों कि उसकी आंखें रोज़ उन्हें स्कूल यूनिफोर्म सफेद सलवार कुर्ते में देखने की आदी हो गई थीं, खूबसूरत दिख रही थी। उसने ध्यान से देखा किसी पहाड़ी अन्चल की वेशभूषा में सब सजी धजी गुड़ियां लग रही थीं।

सिर्फ निभु को ही नहीं बल्कि सबको मुख्य पात्र के रूप में राधा के आने का इंतजार था ,बहुत ही बेसब्री से।

राधा...हां निभु को याद आया अभी दो ही महीने पहले नवरात्रि में किस तरह एक सामान्य परिवार की लड़की के रूप में राधा सबके साथ गरबे ले रही थी और बेहतरीन तरीके से गरबे घूम रही थी।

राधा की खूबसूरती बस देखते ही बनती थी । ना चेहरे पर मेकअप के थपेड़े ,ना ही कोई बनाव सिंगार। निभु सोच रहा था न जाने आज वो कैसी दिखती होगी !

एक एक पल निभु के ऊपर भारी पड़ रहा था हालांकि उसके दोनों हाथ पतली सी डोरी जो कि परदे से लगी हुई थी उस पर थे पर मन उसका 2 महीने पहले वाली नवरात्रि पर जा टिका जिसमें उसने पहली बार महसूस किया राधा के प्रति खिंचाव।

राधा की सीखने की क्षमता असाधारण थी। वो कोई भी चीज़ तुरंत सीख लेती थी। इतने परफेक्ट गरबे लेने वाली पढ़ाई में भी बहुत तेज थी ।चाहे कोई भी विषय हो विज्ञान हो या गणित या फिर कोई भाषा उसकी ग्रहण शक्ति बड़ी तीव्र थी । बुद्धिमानी और सौंदर्य का अद्भुत समन्वय थी राधा।

...... । चिल्ला उठा निभु

ब्यूऊऊऊऊऊऊऊटीफुल्ल

"ए मिस्टर ये ऑफिस है कोई पागल खाना नहीं "

आवाज़ सुनकर निभु चौक गया । उसने अपने आसपास देखा तो पाया कि वो रिसेप्शन काउंटर के सामने खड़ा है । उसे याद आया वो सगुन से मिलने उसके ऑफिस आया हुआ है।

उसने घिघियाते हुए कहा," जी वो...... नीलम शिपिंग कंपनी"

रिसेप्शनिस्ट ने कहा ,"हां बोलो क्या बात है चिल्ला क्यों रहे हो?"

निभु ने कहा ," मैं तो यहां राधा से मिलने आया...

....नहीं.. नहीं सगुन से मिलने आया हूं। "

तब तक रिसेप्शनिस्ट मिस राधा को आवाज़ लगा चुकी थी," राधा देखो तुमसे मिलने कोई चाचा आया है।"

मिस राधा ने निभु को देखते ही कहा, "तुम? वो जो एयरपोर्ट पर मिले थे?... आ जाओ "

निभु मिस राधा के बताये चैम्बर में घुस गया।

एक लम्बे चौड़े कमरे में निभु ने अपने आप को पाया।उसके सामने एक गोल टेबल थी जिसके इर्द गिर्द कुर्सियां लगी थी।

सगुन कहते सुनाई दिया,

"पटेल,तुमको पता हे कि मैं दो दिन पहले नहीं,तीन महीने पहले की पूरी प्लानिंग करता हूं,जाओ हमारे जहाज का आज से तीन महिने बाद का शिड्युल बनाकर मिस राधा को दो,वो भी आज शाम घर जाने के पहले। "

निभु सगुन के पास जाते जाते पूछ बैठा, "ये तू हवा में बातें कर रहा था क्या? ना तो यहां कोई है,ना तेरे हाथ में फोन है... "

सगुन ने निभु को कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, "निभु!आज दुनिया बहोत आगे बढ़ गई है। मुझे अपने स्टाफ के साथ बात करने के लिये किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है... "

" हां मैं ने इतना बड़ा आफिस कभी नहीं देखा।"बोलते बोलते निमु की नज़र सगुन के पास पड़े कांच के शो केस पर पड़ी जिसमें जल निलम जहाज की प्रतिकृति रखी थी,जिसे देखकर निभु बोल उठा,

" तो तू जहाज के खिलौने बेचता है!"

सुनते ही सगुन ने ठहाका लगाया, " तू चक्रम् का चक्रम् ही रहा।

अच्छा ये बता भाभी ,बच्चे सब कैसे हैं?"

सुनते ही निभु संजिदा हो गया," मैं अकेला ही हूं। शायद किसी को मैं पसन्द ही नहीं आया... । "

निभु को उदास देख सगुन बोला ," इस दीवार पर देख क्या है। । "

निभु ने अपने दाहिनी दीवार पर नज़र डाली और बोल पड़ा, "अरे ये तो वोशिंग्टन पोस्ट अखबार का फोटो फ्रेम है... इसमें तो तेरा फोटो छपा है।ओय पापे!तू तो अमरिका तक छा गया है।"

सगुन ने मुस्कुराते हुए कहा, "ध्यान से पढ़ क्या लिखा है।"

निभु ने ध्यान से पढ़ा और उछल पड़ा, " अरेएएए! ये तो वेडिन्ग्टन पोस्ट लिखा है। अक्षर-सज्जा बिल्कुल वोशिन्ग्टन पोस्ट जैसी ही है।तेरी शादी का फोटो है?"

" निभु निभु तेरा क्या होगा यार! ये मेरी नही तेरी भतीजी की शादी जब की थी तब ये वेडिंग्टन पोस्ट मैंने तीन दिन निकाला था। देश विदेश की और जहाजी उद्योग की नामी गिरामी हस्तियां शरीक हुई थी। तब रोज के शादी की रस्मों के समाचार हर एक को सबेरे सात बजे उनके ताज महल होटल के कमरों पर अखबार पहूंचवाता था।"

" क्याआआआआ?" निभु की आंखें चौड़ी हो गई,तेरी बेटी इतनी बड़ी हो गई?... और क्यों न हो... सच ही तो है बच्चे जल्दी बड़े हो जाते हैं।और अपने बच्चों को अपनी ही आंखों के सामने बड़े होते देखना ज़िन्दगी की जादूगरी का अनूठा अनुभव है।"

अचानक कमरे में आवाज गुजी ... सर लाय्ड्ज़(Lloyd's Register) का सर्टिफिकेट आ गया है।

सुनते ही निभु बोल उठा," क्लाइव लॉयड?"

सगुन ने नाक पर उंगली रख कर उसे चुप रहने का इशारा किया और फिर वह बोला ... ठीक है उसकी एक एक कॉपी अपने जहाज के कप्तान और जेएनपीटी (जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट ) को भेज दो।

निभु ने सगुन से पूछा ,"यार यहां तो कोई आया नहीं ,फिर ये आवाज़ कहां से आई?"

तू चिंता मत कर। मैंने तुझे कहा ना मैंने यहां इस तरह की सिस्टम लगा रखी है कि मैं पूरे बिल्डिंग में हमारे सभी स्टाफ के साथ बात कर सकता हूं। ठीक वैसे ही हमारा कोई भी स्टाफ मेरे साथ भी बात कर सकता है । अच्छा सुन मैं अब बाहर जा रहा हूं तू अपनी कैंटीन है ऊपर वहां खाना खा ले उसके बाद मुझे कल मिलना ,और दूसरा तु ये कुली गिरी छोड़ दे।"

"अरे वाह !अगर काम छोड़ दूं तो खाऊंगा क्या,हवा?"

सगुन ने कहा ,"उसकी फिकर तू मेरे ऊपर छोड़ दे ।तुझे जब भी मूड़ करे, यहां चला आ । ऊपर कैंटीन है उसमें बैठ करके आराम से खाना खा ले ।मैं सबको बता दूंगा तुझे कोई मना नहीं करेगा।"

निभु ने पूछा ,"मगर ये तो बोल ये लायड क्या बला है?"

सगुन ने कहा," ये लायड्स रजिस्टर एक कंपनी है जो सारे जहाज के सेफ्टी और सिक्योरिटी का इंस्पेक्शन करके उनको अगर कुछ कमी हो तो वह पूरा करने के लिए कहती है और अगर जहाज फिट पाया जाता है तो सर्टिफिकेट देती है ।इस सर्टिफिकेट के बिना किसी भी पोर्ट पर जहाज जा नहीं सकता और अगर कहीं खड़ा है तो वहां से और कहीं बाहर जा नहीं सकता।"

इतना कहकर सगुन बाहर निकल गया।

निभु एक हफ्ते बाद सगुन से मिलने उसके ऑफिस में दाखिल हुआ ही था कि रिसेप्शनिस्ट ने उसे रोक लिया और बोली ,"चाचा जब से आप आए हैं पिछले 1 हफ्ते से सेठ जी कुछ टेंशन में दिखते हैं ।तुमने उनको कुछ कह दिया है क्या ?"

सुनकर निभु सीधा ऑफिस में घुस गया और क्या देखता है सगुन आलमारियों की लंबी कतार के पास खड़ा है और एक अलमारी में से मोटी मोटी और बड़ी साइज की किताबों के पन्ने बेतहाशा पलटे जा रहा है।

निभु ने तपाक् से उसे पूछा , "क्या बात है सगुन !तेरा स्टाफ कह रहा है कि तू आजकल बहुत चिंताओं से घिरा है ।"

" हां वो सही कह रहे हैं ।मैं आजकल हमारी जो स्कूल बैच की रि यूनियन होने वाली है उसके काम में डूबा हुआ हूं ।तुझे तो पता है कल ही भट्टू ने 50 साल पहले के टीचर्स डे का फोटो भेजा है । इस वक्त मैं हम सब बैचमेट का ग्रुप फोटो ढूंढ रहा हूं।"

"अरे तो वह फोटो क्या तुझे यहां इन मोटे मोटे मरीन मैन्युअल्स में मिलेगा ? वो फोटो तो तूने घर पर ही कहीं रखा होगा ।मैं ने तो वो लिया ही नहीं था,पन्द्रह रूपये का कौन ले इतना महंगा ?"

"नहीं निभु 2 साल पहले मैं वह फोटो यहां लाया था ऑफिस में लगाने के लिए लेकिन फिर वक्त नहीं मिला तो मैंने उसे उस वक्त मैं जो किताब पढ़ रहा था उसी के अंदर मैंने रख दिया था ।अब याद नहीं आ रहा है कि वह किस किताब में रखा है!"

" यार सगुन तू भी कमाल है ।एक फोटो के लिए तूने पूरी लाइब्रेरी को कबाड़खाना बना डाला। सारे मैन्युअल नीचे गिरे पड़े हैं और पन्ना तू ऐसे पलट रहा है जैसे कोई करोड़ों की लॉटरी लगी हो और तू वो टिकट ढूंढ रहा हो।"

" निभु करोड़ों की लॉटरी तो इस काम के सामने कुछ नहीं है । हम जो इस रियूनियन में 50 साल के बिछड़े जब मिलेंगे तब जो आनन्द लूटेंगे उसकी कीमत करोड़ों तो क्या अरबों खरबों से कहीं अधिक होगी।"

निभु ने उसे बीच में ही काट दिया और बोला " मगर यह काम करते तू बिजनेस में ध्यान नहीं दे पा रहा है । आखिर ऐसा क्या है?"

यह तू नहीं समझेगा निभु, मैं जब कोई चीज ठान लेता हूं तो उसे पूरा करके ही छोड़ता हूं ।इस बार नियति ने मुझे हमारे सारे स्कूल बैचमैट को इकट्ठा करके रियूनियन कार्यक्रम बनाने का इशारा किया है।"

" अच्छा!! तो यूं बोल ना कि मुगले आज़म को हमारी स्कूल बैच से प्यार हो गया है... । और अगर ऐसा है तो तेरे सारे काम पूरे होंगे ही

क्यों कि। ।

निभु ने मरीन मैन्युअल के पन्ने खंगालते हुए सगुन के कानमे पूछा ,

" ये रियूनियन में क्या राधा भी आने वाली है?"

"राधा ?"

सगुन जैसे चौक गया ,

"अरे हां उस दिन राधा भी तो मेरे बाजू में ही खड़ी थी ,जब मैं मैन्युअल पढ़ रहा था और उसमें फोटो रख रहा था।"

सगुन तुरंत अपने टेबल के पास गया। टेबल के नीचे उसने हथेली घुमाई और बोला ,"राधा ! यहां आ जाओ।"

थोड़ी देर में मिस राधा वहां प्रकट हुई ।सगुन ने उससे पूछा ,

"राथा तुमको याद है कुछ वक्त पहले मैं यहां मरीन मैन्युअल पढ़ रहा था... "

राधा ने कहा," क्यों क्या बात है?"

सगुन बोला ,"तुमको याद है मैंने एक फोटो उसके अंदर रखा था.."

मिस राधा ने कुछ सोचते हुए कहा ,

"हां सर वो शायद वॉल्यूम 229 था ।"

कहते राधा आठ नंबर अलमारी के पास गई और उसमें से वॉल्यूम 229 निकाल कर उसके अंदर से फोटो निकाल ली और जाकर सगुन को देते बोली , "क्या यही फोटो है?"

निभु और सगुन दोनों आश्चर्यचकित थे ।मिस राधा को ये सब याद कैसे रह जाता है?

निंभु ने फर्श पर छितरी ,बिखरी पड़ी मोटी मोटीे किताबों पर नजर डालते हुए कहा ,"सगुन अगर पहले ही इनसे पूछ लिया होता तो यह सारा कबाड खाना नं बनता।"

सगुन ने जवाब दिया ," मैं अपने पर्सनल काम के लिए अपने स्टाफ को कभी भी तकलीफ नहीं देता यह तो तूने राधा का नाम लिया और मुझे ये राधा याद आ गई कि चलो इस से भी पूछ लूं ।"

निभु ने उस पुराने फोटो पर नजर डाली ।

कोनो पर से फटी इस फोटो प्रिंट में सब के चेहरे धुंधले से दिख रहे थे। उसने सगुन से पूछा," यार ये फोटो तो बहुत धुंधला हो चुका है बहुत पुराना है ना ! 50 साल पुराना और फिर इस एक कॉपी से होगा क्या? तूने ये फोटो ,ठीक है ,संभाल के रखा है मगर अब इसका तू करेगा क्या? ज्यादा से ज्यादा व्हाट्सएप ग्रुप में डालेगा तो भी बहुत धुंधला ही दीखेगा।"

सगुन ने कहा ,"बस तू देखता जा आगे आगे होता है क्या... "

उस धुंधले फोटो में भी निभु ने उन दो आंखों को तुरन्त पहचान लिया जो उसके मनोमस्तिष्क पर आज भी कब्ज़ा करके बैठी हुई हैं...... ।

"फोटो मिल जाने से अब तू चिंता मुक्त हुआ ।"निभु ने सगुन से कहा।

सगुन अपने टेबल के पास जाते जाते बोला," अरे नहीं यार अभी तो शुरू हुआ है।तू यहां नहीं था तब 3 दिन पहले मैं एक मीटिंग में बिजी था तब लोलिता का फोन आया।"

"लोलिता?" निभु बोल पड़ा जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो ,"लोलिता ... लोलिता ... । हां याद आया ,वो बंगाली लड़की ... हां तो उसका क्या हुआ?"

"मैं मीटिंग में व्यस्त था तो मोबाइल नहीं उठाया। जब मीटिंग पूरी हुई तो मैंने उसे फोन किया ।इस बार उसने नहीं उठाया ।अब इसे क्या कहें?"

"कुछ नहीं । तूने नहीं उठाया तो उसने सोच लिया कि मेरा फोन क्यों नहीं उठाया ?ये ईगो है और जब तूने दोबारा फोन किया तो उसे अपना ईगो फिर आड़े आया । तूने मेरा फोन नहीं उठाया तो अब मैं तेरा फोन नहीं उठाऊंगी । बस ये मानसिकता थी उसकी।

ऐसी बातों का कोई हल नहीं होता । मगर यह तो बोल इसमें चिंतित क्यों है ठीक है उसने नहीं उठाया तो न सही।"

"बात सिर्फ फोन उठाने या ना उठाने की नहीं है । इस पूरे रियूनियन फंक्शन का होस्ट मैं हूं । सारा खर्च मैं करने वाला हूं तो मैं जो चाहूं कर सकता हूं इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है ? और फिर मैं कुछ गलत तो कर नहीं रहा हूं । बात डोमिनेंस की है। कोई ना कोई बहाना निकाल कर वो अपने विचार मेरे ऊपर थोपना चाह रही है।"

"तू तेरा काम किए जा बाकी जो होगा देखा जाएगा । यह बात तो सही है कि जो पैसे खर्च करता है तो वह चाहेगा कि उसकी मान्यताओं के हिसाब से ही काम हो। वैसे तेरे हिसाब से कितना खर्च होगा?"

"यही कोई पांच सात लाख।इसमें सुबरे और भट्टू ने भी सहयोग देने की बात कही है।"

"बस तो फिर क्या है सगुन ! तू ऐसी छोटी मोटी बातों में अपने आप को दुबला करने के बदले काम किये जा।"

ध्यान से निभु की बात सुन रहा सगुन बोला ,

"निभु तू जो बात कह रहा है वह ठीक है।

मेरा अनुभव यह है की यहां जो कुछ भी अच्छा या बुरा होता है वह और कुछ नहीं वक्त के कारण होता है । हम सब वक्त के चक्रव्यूह में फंसे हुए महज़ मोहरे हैं।

मैं तुझे एक बात बताऊं जब हम स्कूल से एसएससी करके निकले थे उसके दो-तीन साल बाद मैंने अपने बंदरगाह पर कार्गो हैंडलिंग का काम शुरू किया और उस काम में मुझे काफी प्रॉफिट हुआ । तब एक अन्ना मित्र ने मुझसे कहा यह सारी बालाजी की कृपा है उनका मंदिर बनवा दे। हमारे यहां बालाजी का कोई मंदिर नहीं है। जब मैं उसके लिए जमीन ढूंढने निकला तो पाया कि वहां की सारी जमीन पोर्ट ट्रस्ट के अधीन है। मैंने पोर्ट ट्रस्ट के बहुत से चक्कर लगाए लेकिन जमीन मिलने में काफी दिक्कतें पेश आई ।मगर मुझे श्रद्धा थी और श्रद्धा हमेशा धैर्य रखना सिखाती है ।मैंने शांति से वह वक्त गुजार लिया और नसीब बोल या यह जो कुछ भी तू बोल ले वक्त का चक्र कुछ ऐसा चला कि मुझे बहुत अच्छी जगह पर जमीन मिल गई और वहां बिना किसी व्यवधान के मंदिर का निर्माण भी करवा सका।

तब से लेकर आज तक मैं बहुत सारी संस्थाओं के साथ जुड़ चुका हूं, बहुत सारी मेरे साथ ऐसी ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसमें पहले तो मैं चक्रव्यूह में असफल रहता था लेकिन धीरज ने मुझे उस चक्रव्यू से बाहर भी निकाला है। हम यह नहीं कह सकते कि किसी व्यक्ति विशेष की वजह से हमारा काम रुकता है या सफल होता है। वो गीता में कहा है ना इस मृत्युलोक में व्यक्तियों का नहीं वृत्तियों का साम्राज्य है।"

निभु ने कहा," देख यार सगुन !ये तेरी बड़ी-बड़ी बातें मैं क्या जानूं । मैं तो इतना जानता हूं कि तू फिक्र मत कर और बस तुझे जो करना है वह कर ।अगर किसी को अपनी बात रखवानी हो या तुझे सलाह देनी हो तो उनको पहले बोल ₹100000 रखो और बाद में बताओ वरना चुप रहो!"

सगुन थोड़ा मुस्कुराया और बाद में बोला ," ये तेरे लिये कहना आसान है ।मैं ऐसा नहीं कह सकता क्योंकि जो भी है सब अपने ही सहपाठी हैं । चल छोड़ इन सब बातों को तू मुझे यह बता तूने अपना व्हाट्सएप का ग्रुप ज्वाइन किया?"

"व्हाट्सएप का ग्रुप? "निभु आश्चर्यचकित हुआ

"मेरे पास मोबाइल ही नहीं है ,मैं कहां से ज्वाइन करूंगा?"

सगुन ने कहा " ठीक है मैं अभी मोबाइल दिलवा देता हूं ।"

और उसने अपने अकाउंटेंट को अपने ऑफिस में बुलाया और कहा "एक नया मोबाइल लेकर आओ।"

अकाउंटेंट गया और तुरंत एक नया मोबाइल ले कर के आ गया। सगुन ने वह मोबाइल निभु को देते हुए कहा तू इसका सेटिंग कर लेना और बाद में ग्रुप ज्वाइन कर लेना। अब तू ऊपर जाकर खाना खा ले और मैं उरन जा रहा हूं ।तू कल वापस इधर आ जाना।"

निभु ने पूछा ,"उरण? वहां क्या है?"

"वहां बहोत कुछ है।बीपीसीएल (भारत पेट्रोलियम कोर्पोरेशन),जेएनपीटी वगैरा वहीं तो है।"

कहकर सगुन ने मिस राधा से कहा कि वो भाऊ चा धक्का पर खड़ी अपनी लान्च को तैयार रहने को कह दे मोरा पायर (Mora Pier) जाने के लिये।

2 दिन बाद जब निभु सगुन की ऑफिस में गया तो उसने देखा कि सगुन अपने स्टाफ के साथ मीटिंग कर रहा है।

जब मीटिंग पूरी हुई तो सगुन ने उसे अंदर बुलाया और बोला ,

"लिभु अब मैं 1 हफ्ते तक यहां रहने वाला नहीं हूं ।मैं अब अपने स्कूल बैच के रियूनियन के काम के लिए बिजी रहने वाला हूं ।2 महीने बाद हमारे रियूनियन की तारीख मैंने फाइनल की है ।उसे सबके सामने ग्रुप में डाल दिया है और सब ने उसका स्वागत किया है ।

हमारे सारे सहपाठी और सहपाठीनियां अपने अपने जीवन साथी के साथ इस रियूनियन में आने वाले हैं।"

नीभु ने कहा ,"अच्छा ?ये तो बड़ी अच्छी बात है लेकिन मेरा तो कोई है नहीं मैं तो अकेले ही आऊंगा।"

सगुन ने कहा ,"ठीक है वैसे एक बात कहूं निभु! तेरा ऐसा है कि तूने जिंदगी में किसी को अपनाया ही नहीं।"

तीसरा अध्याय

रा... धा  

रा..... धा   

रा......धा

का शोर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ समूचे हाॅल में गूंज उठा और गूंजता ही रहा। थमने का नाम ही नहीं ले रहा था।

शहर के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित रंगारंग कार्यक्रम में जैसे ही उद्-घोषक ने लक्ष्य महा विद्यालय की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले समूह नृत्य की घोषणा की कि पूरा हाॅल तालियों की गड़गड़ाहट से ऐसा गूंज उठा कि नृत्य में भाग लेने वाली अन्य छात्राओं के नाम तक राधा राधा के शोर में विलीन से हो गये।

नृत्य में भाग लेने वाली सभी छात्राएं आ चुकी थी स्टेज पर । अब सिर्फ राधा का इंतज़ार हो रहा था मुख्य पात्र के रूप में।

निभु डोरी थामकर पर्दे को खींचने की तैयारी में बैकस्टेज से आ रही राधा को देख रहा था।

राधा की खूबसूरती देखते ही बनती थी। निभु अपलक उसे देखता रहा और बेतहाशा किसी मदहोशी में चिल्ला उठा, " ब्युटीफुल"और यकबयक उसकी हथेली उसके होठों पर टिक गई जैसे वह फ्लाइंग किस कर रहा हो।

नि,,,भ्भूऊऊऊऊ!" सगुन की दहाड़ सुनकर निभु को जैसे होश आया । उसने अपने आसपास देखा तो उसने अपने आप को अपने कुछ सहपाठियों के बीच पाया होटल शिव अट्टालिका के कॉन्फ्रेंस हॉल में,जहां सगुन ने शहर में ही रहनेवाले सहाध्यायीयों को बुलाया था आने वाले रियूनियन कार्यक्रम की ब्लु-प्रिन्ट तैयार करने।

"तुझे पता है तूने क्या किया?"

झल्लाया सगुन फिर निभु पर टूट पड़ा,"तू दिन में भी सपने देखता है क्या? दुबारा ऐसा करेगा तो तुझे बेन्च पे खड़ा कर दूंगा।"

सहमा निभु झेंपते हुए बोला," सर... । येस सर... । नननन... नो सर।"

सगुन ने अपने सहपाठियों के साथ मीटिंग में आगे कहा ,"हम लोग 50 साल के बाद इकट्ठा हो रहे हैं, इसलिए हमारे रियूनियन के कार्यक्रम में सब को आना जरूरी है। कुछ सहपाठियों ने खर्च की बात की है और उन्होंने अपना अपना योगदान देने की भी बात कही है। वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे भी हैं जो सिर्फ इसी वजह से कार्यक्रम में आना नहीं चाहते ,इसलिए टालमटोल कर रहे हैं। मैं यह बता देना चाहता हूं कि खर्च की चिंता किसी को भी करने की जरूरत नहीं है। ना ही किसी से योगदान की अपेक्षा है । बस सबको आना जरूरी है,उपस्थित रहना ज़रूरी है। सारा खर्च मैं और सुब्रतो वहन करेंगे । जरा सोचो 50 साल के बाद जब हम इकट्ठा होंगे उसमें एक सहपाठी भी अगर नहीं आया तो सबको उससे न मिल पाने का अफसोस बाकी ज़न्दगी में सताता रहेगा।इसलिये अपनी न सही औरों की खातिर रियूनियन में उपस्थित रहना ही रहना है।"

इतना कहकर सगुन ने पानी पिया। निभु ने देखा कि सगुन के साथ ही बैठा सुब्रतो कुछ बोल ही नहीं रहा था।

"जो लोग ," सगुन आगे बोला,"हमारे शहर से बाहर से आने वाले हैं उन्होंने अपने अपने टिकट बुक करवाने शुरू कर दिए हैं ।मेरे पास लगभग सबके कन्फर्मेशन आ चुके हैं। मैं फिर से कहूंगा सबको रियूनियन कार्यक्रम में आना ही है ,न सिर्फ आना है बल्कि तीन दिन के हर कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा भी लेना है। अगर इसे मेरा व्हिप समझो तो यही सही।"

सगुन ने सब पर एक सरसरी निगाह डाली ,कोई 15 वसहपाठी उपस्थित थे ,लेकिन इस मीटिंग का जीवंत प्रसारण व्हाट्सएप पर हो रहा था अन्य 30 के लिये।

सगुन ने कहा," हमारा कार्यक्रम 3 दिन का होगा जिसमें पहले दिन हम लोग हमारी स्कूल में जाएंगे और ठीक वैसा ही माहौल खड़ा करेंगे जैसा 50 साल पहले हम करते थे। प्रार्थना होगी, हमारे पूर्व शिक्षकों का सम्मान करेंगे और स्कूल को 1 लाख रुपये अर्पित करेंगे।

इसके लिए जरूरी होगा हम सब बच्चे बनकर ही स्कूल में प्रवेश करें ।आज हम क्या हैं उसे स्कूल के दरवाजे के बाहर ही छोड़ देना ।यह सबसे बड़ी स्कूल को हमारी ओर से स्मरणान्जलि होगी ।सिर्फ स्कूल में ही नहीं बल्कि यह तीनों दिन मैं चाहूंगा हम सब बच्चे ही बने रहें।

आज उम्र की वजह से हम में से कइयों को शारीरिक तकलीफें हैं उसके लिये मैं ने हमारी बैचमेट डाॅ। राधा से बात की है और वो त्रिवेन्द्रम से अपने साथ मेडिकल किट लाने वाली है।

और अन्त में मैं बता दूं कि ये रियूनियन वाले तीन दिन मेरे अन्दर धुरन्धर सर की आत्मा रहने वाली है,बाकी तुम सब समझदार हो।"

होटल शिव अट्टालिका के कॉन्फ्रेंस रूम में स्थानीय सहपाठियों के साथ चल रही अपनी मीटिंग के दरमियान सगुन ने पानी से भरा गिलास उठाया और सब को दिखाते हुए उसने कहा ,"अच्छा ! ये बताओ इस गिलास को उठाते हुए अगर ये गिलास थोड़ा हिलक जाए तो टेबल पर क्या गिरेगा ? जाहिर सी बात है पानी ही गिरेगा क्योंकि गिलास में पानी भरा हुआ है ।

ठीक ऐसे ही हमारे मन में जो बात होती है वह कहीं ना कहीं दुनिया के सामने कभी न कभी, भले ही परिस्थिति वश,आ ही जाती है। मैंने देखा है हमारे 40-50 के ग्रुप में भी 2-4 छोटे-छोटे और ग्रुप भी हैं। हमारे कुछ सहपाठियों की, खासकर निभु की ये आदत है कि उसको अगर मुझे बुरा भला कहना हो तो पहले वो मेरी रिसेप्शनिस्ट को बताएगा फिर मेरी रिसेप्शनिस्ट मिस राधा को बताएगी और मिस राधा मुझे आकर बताएगी, ये भी तब जब निभु को मैंने बोल कर रखा है कि भाई! तुझे अगर कुछ भी जरूरत पड़े ,तुझे मुझे अगर अच्छा या बुरा कुछ भी कहना हो दोस्त के नाते तू मुझे कह सकता है । इसमें वाया मीडिया टेढ़ी चाल चलने का अर्थ क्या है ? कयों निभु! मैंने ठीक कहा ना?"

अपना भांडा फूटता देख कर निभु रुआंसा होते हुए बोला ," नईं...वो तो....बस्स यूं...ही।"

सगुन ने निभु को सुना अनसुना करते हुए अपनी बात जारी रखी,

" ठीक ऐसे ही कुछ और भी हैं जो मेरे मुंह पर तो बहुत अच्छी अच्छी बातें कहते हैं कि सगुन तू बहुत अच्छा है ये है वो है लेकिन दूसरों को वो मेरे बारे में तरह-तरह की बातें फैलाते रहते हैं ।जैसे मैंने अभी सुना कोई कह रहा था सगुन सिर्फ बोलता है करने वरने वाला कुछ नहीं है ।और तुम सब देख रहे हो आज स्थिति यह बन गई है कि अब हम होटल में बैठे हमारे रियूनियन को फाइनल टच दे रहे हैं । इतना ही नहीं वह दिन भी अब दूर नहीं जब रियूनियन होकर रहेगा।

तुम सबसे मेरा यही अनुरोध है कि टेढ़े मेढ़े रास्ते अपनाने के बजाय मेरे साथ डायरेक्ट बात करो और वो भी दो टूक! इसमें शर्माना घबराना कैसा? छाछ लेनी हो तो बरतन छिपाने से क्या लाभ?

ओके... । मैं तुम सबको गा-बजा कर एक बार फिर रियूनियन में आने का आग्रह करता हूं और दुनिया के सामने अनूठे,आदर्श रियूनियन की मिसाल पेश करने का समूचे बैच को आव्हान करता हूं।

नमामि माता शारदा

नमामि विद्यादायिनी लक्ष्य महा विद्यालय!"

और मिटिंग पूरी हुई।


सगुन के नीलम मेन्शन बंगले के विशाल हरे भरे लाॅन में एक स्टेज पर गीतों की महफ़िल सजी हुई थी।

देश के अलग-अलग शहरों से अपने जीवन साथी के साथ रियूनियन में शामिल होने आए हुए सहपाठियों के स्वागत के लिए सगुन द्वारा दिया स्वागत-भोज चल रहा था।

सब एक दूसरे से प्रफुल्लित मन से गले मिल मिल कर एक दूसरे के हाल अहवाल पूछ रहे थे। थोड़ी ही देर बाद ऐसे बातें करने लगे जैसे कभी बिछड़े ही न थे।

समूचा वातावरण उल्लास सभर था । यह सब स्कूल के 50 साल पुराने एसएससी बैच के सहपाठी थे।

अचानक निभु की नजर स्टेज पर गाना गा रही राधा और उसकी स्कूल के वक्त से उसके साथ साये की तरह रहने वाली सुरभि पर पड़ी। देखकर निभु चिल्लाया ,"अरे सगुन ये देख सुरभि ,जिसने तुझे 1 हफ्ते के लिए क्लास में से तड़ीपार करवाया था।"

सगुन बस हंस भर दिया।

गीत पूरा करके जब राधा और सुरभि स्टेज से नीचे उतरीं तो नवीन ने राधा को गीत के लिये बधाई देते हुए कहा, "राधा यू आर मल्टी टेलन्टेड।"

ये सुनते ही निभु का चेहरा खिल उठा और उसने राधा की ओर पैर बढ़ाये कि दूसरे ही पल वो ठिठक गया।उसे पचास साल पहले की वो घटना याद आ गई जब समूह नृत्य के वक्त उससे भावावेश में बचकानी हरकत हो गई थी और बाद में राधा और सुरमि ने उसकी सैन्डल से धुनाई,कताई,धुलाई,सुखाई सब कर डाली थी।

निभु को अपनी ओर आते और फिर ठिठकते राधा ने देख लिया और राधा ही उसके पास आई उसके कन्धे पर हाथ रखकर बड़े प्यार से बोली, " निभु! कैसा है तू?"

निभु कांपती आवाज़ में बोल उठा," तू मुझे मारेगी तो नईं ना?"

ये सुनते ही आसपास खड़े सब ने जोरदार ठहाका लगाया।

सगुन ने बहुत शानदार तरीके से भोजन समारंभ का आयोजन किया था। 32 नाना प्रकार के खाने के आइटम उसने रखे थे। लेकिन सहपाठियों का अपने अपने 50 साल पुराने मित्रों को मिलने में ज्यादा ध्यान था ।

माहौल एकदम दोस्ताना बन चुका था।

स्वागत-भोज समाप्त होते ही रात करीब 1 बजे सगुन अपने स्कूल की ओर चल पड़ा ,ये देखने कि सुबह के कार्यक्रम की तैयारियां कैसी चल रही हैं ।

जब वो स्कूल पहुंचा तो वहां पंडाल सजाने का काम चल रहा था । सबसे पहली नज़र उसने उस लोहे के टुकड़े पर डाली जो वैसा ही था जैसा पचास साल पहले स्कूल में प्रार्थना के वक्त बजाया जाता था। जिसकी आवाज़ सुनकर सारे विद्यार्थी प्रांगण में इकट्ठा होते थे प्रार्थना के लिये। उसे उसकी सही जगह पर रखवाया।

सगुन ने पहले ही इस बात को सुनिश्चित कर लिया था कि स्कूल-बेल उसी मुन्नालाल के बेटे के हाथों बजवाया जाये जो मुन्नालाल पचास साल पहले हररोज़ सुबह प्रार्थना के पहले बेल बजाया करता था।

उसने यह भी सुनिश्चित किया कि स्कूल के उस वक्त के अपनी बेच के टॉप टेन विद्यार्थियों के नाम-लेबल स्टेज पर लगाए गये हैं या नहीं ।

सामने पंडाल में उसने 150 कुर्सियों का भी इंतजाम करवाया , जहां उसकी बैच के सभी सहपाठियों उनकै जीवनसाथियों के साथ स्कूल के आज के अन्तिम वर्ष में पढ़ रहे छात्र भी बैठ सकें। उसका ये मानना था कि आने वाली पीढ़ी जो आज के उसी पड़ाव पर है जिस पड़ाव पर कभी हम थे ,वो भी इस कार्यक्रम को देखे ।

आज के छात्रों द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले वेरायटी शो की तैयारियों के बारे में सगुन ने पहले ही पुष्टि करवा ली थी।

जब उसे संतुष्टि हो गई तो वह रात करीब 4 बजे घर वापस आया इस अनुभूति के साथ जिस स्कूल में वह पढा़ ,वहां उन्होंने जो कुछ भी जिया, उसका साया जिंदगी भर आज भी उसके साथ रहा

आउटस्टेशन सहपाठियों के स्वागत-भोज के बाद रियूनियन के पहले दिन सगुन ने सबको मधुबन पार्क में सुबह 9 बजे बुलाया, सब के स्वागत समारोह में। उसके बाद 10:30 बजे अपने स्कूल लक्ष्य महा विद्यालय के लिए निकलना था।

ठीक 9 बजे सारे सहपाठी अपने अपने जीवन साथी के साथ मधुबन पार्क पहुंच गए जहां सगुन ने बड़े ही प्यार और अपनत्व के साथ सबका फूलों से स्वागत किया। उसने सबके लिए बुफे नाश्ते का प्रबंध घटादार पेड़ों से घिरे और फूलों से सुशोभित हरे लान में किया था।

यहां एक बार फिर सारे सहपाठी एक दूसरे से बड़े ही उत्कट प्रेम भाव से मिले।

निभु एक कोने में खड़ा नाश्ते की प्लेट लिए खा रहा था कि तभी राधा अपने नाश्ते की प्लेट लेकर वहां आई और निभु से इस तरह बातचीत करने लगी जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं था। निभु राधा के इस उदार व्यवहार से सराबोर होकर जैसे सातवें आसमान पर पहुंच गया।

तभी वहां सगुन ने आवाज लगाई चलो सब लोग स्कूल जाना है

सबके लिए कार का बंदोबस्त सगुन ने कर रखा था। कुछ स्थानीय सहपाठियों ने अपनी अपनी कार में अपने सहपाठियों को बिठाया और कार का काफिला स्कूल की ओर चल पड़ा।

ज़िन्दगी के बेन्चमार्क स्वरूप स्कूल में 50 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद प्रवेश करना ही अपने आप में एक अद्भुत अनुभूति है।

ठीक 11:15 बजे प्रार्थना के लिए बेल बजाया गया। बेल बजाने वाले मुन्ना लाल के पुत्र के चेहरे पर गदगद भाव अपने आप में एक अलग ही कहानी कह रहे थे।स्व। मुन्नालालजी के प्रति अपना आदर प्रकट करने का इससे बेहतर अन्दाज़ और क्या हो सकता था?

स्कूल के पूर्व छात्र और आज के छात्र दोनों ने पंडाल को भर दिया,प्रार्थना के लिये कतारबद्ध खड़े होकर।

स्कूल के पूर्व शिक्षकों वर्तमान शिक्षकों और सभी छात्रों ने उन छात्रों को 2 मिनट मौन रहकर श्रद्धांजलि अर्पित की जो अब देवलोक सिधार चुके थे।

बैच के उन दिवंगत सहपाठियों की याद से सबका मन गद्गद् था।

पूर्व शिक्षकों ने बैच के हर विद्यार्थी को 50 साल बाद भी नाम के साथ याद किया यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी।

पूर्व छात्रों की बैच ने भी अपने पूर्व शिक्षकों को सम्मानित किया । उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की।

और स्कूल को 1,11, 111/= रुपए अर्पित किए।

कुछ छात्रों ने अपने संस्मरण साझा किये।

दूसरी ओर स्कूल क ेवर्तमान छात्रों ने स्कूल के पूर्व छात्रों के सम्मान में एक वैरायटी शो का मंचन किया।

अन्तत: स्कूल प्रांगण में वृक्षारोपण किया गया।

... । और कार्यक्रम का समापन किया गया।

शहर से 20 किलोमीटर दूर सभी हमउम्र हमजोली सहपाठियों का काफिला पंचतारा होटल जंगल सफारी में दाखिल हुआ, जहां स्थानीय सहपाठियों ने अपने सभी सहपाठियों के लिए दोपहर के प्रीति-भोज का आयोजन किया था।

निभु ने पंचतारा होटल तो बहुत देखे थे लेकिन वो कभी अंदर गया नहीं था, इसलिए कार में से उतरते ही वो वहीं का वहीं खड़ा रह गया । तभी उसके पास राधा आई और उसने कहा,"डरता क्यूं है? चल तू मेरे साथ चल।"

निभु को पलभर लगा कि वह अपने अन्य सहपाठियों के सामने जन्तु भी नहीं है।उसके सारे सहपाठी जिन्दगी में काफी कुछ बन गए थे लेकिन वो बन पाया भी तो कुली? अगले ही क्षण उसे याद आये अपने वो कुली साथी जो ग्रेज्युएट थे तो एकाध पोस्ट ग्रेज्युएट भी था।वो कुछ और सोचे उसके पहले ही राधा उसे आलिशान डाईनिंग रूम में खींच ले गई।

निभु ने देखा सारे सहपाठी एक कतार बनाकर बारी बारी से प्लेट में एक एक आइटम डाल रहे थे । वो भी उनके साथ ही खड़ा था । किसी ने उसे यह महसूस ही नहीं होने दिया कि वो अक्ल का कच्चा घनचक्कर है।

यहां भी खाने के लिए बहुत सारी वैरायटी रखी गई थी सबने मनभर खाने का लुत्फ उठाया।

दोपहर 4 बजे उनका कार-कारवां सेटेलाइट पोर्ट की ओर निकल पड़ा।

सेटेलाइट पोर्ट जाते वक्त निभु जिस कार में बैठा था उसके साथ सहपाठीनियां अरुणा और सुनिधि भी बैठी थी। सुनिधि ने निभु की चुटकी लेते हुए कहा ,"क्यों रे ! तेरी शादी क्यों नहीं हुई?"

निभु ने शर्ट का काॅलर ऊंचा करते हुए कहा ,"वो क्या है कि मेरे आगे पीछे 5-6 लड़कियां घूमती थी ।मैं भी उन के चक्कर में ऐसा फंसा कि बाद में उन लोगों की तो शादी हो गई लेकिन मैं आज भी लड़कियों के आगे पीछे चक्कर ही लगाने में पड़ा हुआ हूं।"

अरुणा ने निभु का मज़ाक उड़ाते हुए कहा," ऐसा ही होता है निभु ! वक्त पर अगर निर्णय नहीं लो तो फिर वक्त तुमको सदा के लिये घुमाता रहता है। दोष लड़कियों का नहीं,तेरा है।"

सुनिधि ने कहा ,"अरे जा! मुझे मालूम है तुझे तो कोई। देखती तक नहीं थी। बड़ा आया लड़कियों को घुमाने वाला। मुझे मत बोल। तेरे जैसे घनचक्कर के लिए कौन अपना वक्त बर्बाद करेगी?"

निभु की हालत खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे जैसी हो गई।

उनकी कार अन्य कारों के साथ सेटेलाइट पोर्ट पर पहुंच चुकी थी। कार से बाहर निकलते ही निभु ने आसपास नज़र दौड़ाई ,क्या देखता है एक छोटी सी जेटी पर एक छोटा सा जहाज बंधा हुआ है ।बाकी चारो और समुद्र ही समुद्र फैला हुआ है ।उसके मुंह से निकल गया, " अरे यहां सेटेलाइट कहां है?"

तब तक सगुन भी वहां आ चुका था। उसने यह सुना और सुनते ही निभु से कहा ,"तू आज भी घनचक्कर ही है ।यह सेटेलाइट पोर्ट है। इसका मतलब जानता है? इसका मतलब यह है कि अब हमारा जो मूल बंदरगाह है उसकी कैपेसिटी पूरी हो चुकी है इसलिए अब इस जगह को जहां हम आज खड़े हैं उसे उसके एक्सटेंशन के रूप में डेवलप किया जाएगा ।ऐसे पोर्ट को सेटेलाइट पोर्ट कहते हैं ।अब खोपड़ी में बात आई?"

निभु ने ऐसे सिर हिला दिया जैसे उसे सब समझ आ गया।

पोर्ट पर कुछ वक्त बिताकर सब लोग वापस अपने-अपने होटल जाने को निकले । रास्ते में सबके दिमाग में एक ही बात थी आज के सारे कार्यक्रम निर्विघ्नं पूरे हुए और वक्त तो ऐसे बीत गया किसी को पता ही नहीं चला ।जरा भी थकान नहीं लगी थी और सबकी निगाहें अब आने वाले कल होने वाले कार्यक्रम पर टिकी थी । कईयों को तो ऐसा लगा जैसे आज की रात उन्हें नींद नहीं आएगी क्योंकि शगुन के कार्यक्रम ही लाजवाब थे।

होटल पहुंचते ही सगुन ने सबको याद दिलाया कि रात 8 बजे सुब्रतो के बंगले... "

बीच में ही निभु बोल उठा ,"पोंचोबोटी"

झल्लाए सगुन ने विभु को डांटते हुए कहा," निभु कब सुधरेगा? अपनी इंदिरा दीदी क्या कहती थी मालूम है ना, सबसे बड़ी चुप।"

निभु चुप हो गया।

सगुन आगे बोला," सुब्रतो ने अपने बंगले पंचवटी पर सब सहपाठियों के लिए डिनर रखा है इसलिए अभी सब फ्रेश होकर वहीं पहुंचें।"

सुब्रतो ने आज पंचवटी बंगले को सजा के रखा था अपने यारों के लिए अपने बचपन के दोस्तों के लिए।

यहां भी सबके लिए उत्तर भारतीय ,दक्षिण भारतीय और पंजाबी के साथ-साथ राजस्थानी और बंगाली वैरायटी सुब्रतो ने रखी थी।

सबने सुब्रतो की यजमान गति की भुरि-भुरि प्रशंसा की और ठीक रात 10 बजे वापस अपने अपने होटल की ओर चल दिए।

दूसरे दिन एक बार फिर सब लोग मधुबन पार्क में सवेरे 9 बजे चाय नाश्ते पर इकट्ठा हुए।

आज क्योंकि फार्म हाउस का प्रोग्राम था इसलिए नाश्ता करके जल्द ही सब लोग कार में बैठकर निकल पड़े।

शहर से करीब 25-30 किलोमीटर दूर एक बड़े से फार्म हाउस में पहुंचे।

सगुन ने बताया कि यह फार्म हाउस उसके एक मित्र का है। सब लोग थोड़ा सुस्ता लो उसके बाद हमारा कार्यक्रम शुरू होगा।

निभु ने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई। खूबसूरत फार्म हाउस में अनेक तरह के फलों के पेड़ लगे हुए थे । उसने 2-4 अनार भी तोड़े । वहां का वातावरण देख कर उसे लगा जैसे वह किसी अलग ही दुनिया में आ पहुंचा है।

थोड़ी देर में सुनिधि ने सब की अगवानी की और एक बड़े से चारों ओर से खुले,मैंगलोरियन टाईल्स की छत वाले बड़े हाल में सब को बिठाया और अपने खेल शुरू किए। बचपन में खेले हुए खेलों से थोड़े अलग तरह के लेकिन 65 साल की उम्र के पार पहुंच चुके सारे सहपाठियों ने इसे हाथों हाथ लिया और चाव से सब ने खेलों में हिस्सा लिया।

दोपहर करीब1 बजे सब ने खाना खाया ।बैठने की व्यवस्था चारपाई पर थी । निभु को तुरंत याद आया कि पिछले दिन तो सिर्फ नाम का ही जंगल सफारी था, वैसे वह पंच तारक होटल था। और आज असल जंगल सफारी जैसा लग रहा था।

करीब 3 बजे सब लोग इकट्ठा हुए और इस बार हाउज़ी का दौर शुरू हुआ। इसमें सबसे बड़ा इनाम ₹5000 का अरुणा ने जीता । जब अरुणा अपना इनाम लेने गई तो सगुन ने कहा," चल अरुणा एक डांस हो जाए। यह सब सहपाठियों को पता ही था कि अरुणा एक अच्छी डांसर भी थी। स्कूल के दिनों में भी वह काफी डांस करती थी राधा के साथ, इसलिए उसने भी उम्र को ताक पर रखकर तुरंत नाचना शुरू किया । यह देखकर निभु से रहा न गया और बोल पड़ा नाच मेरी बुलबुल पैसा मिलेगा। ।

सुनते ही अरुणा डांस बंद करके निंभु को मारने दौड़ी और निभु वहां से भाग खड़ा हुआ।

कार्यक्रम की समाप्ति पर अरुणा ने निभु से पूछा,"क्यों निभले! तुझे मेरा डान्स कैसा लगा?"

निभु ने मुंह बिगाड़ कर अरुणा को चिढ़ाते हुए कहा,"ठीइइक ही था वेसे पूरे प्रोग्राम को अगर ......

आज तीसरा और अंतिम दिन रियूनियन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होने वाला था। सुबह 9 बजे मधुबन पार्क मैं नाश्ते के लिए जब सब इकट्ठा हुए तभी सबके चेहरे पर एक अनोखा ही भाव तैर रहा था। कल से तो सब बिछड़ने ही वाले थे तो क्यों ना आज का दिन पल पल जी लिया जाए और हर जिये पल को संजो लिया जाए!

सुबह 10 बजे ही सब लोग सप्त तारक होटल ढेल्मोर ( मोर-मोरनी)के लिए रवाना हो गए।

इवेंट मैनेजमेंट का सारा जिम्मा सगुन की पत्नी ने अपने जिम्मे ले लिया था ।उन्हों ने पहले से ही होटल का विशाल हाॅल बुक करवा कर रखा था जहां टेबल कुर्सी सजाकर रखे गए थे।

ठीक 11 बजे सगुन ने माइक अपने हाथ में लिया और इवेंट एंकर की भूमिका में आ गया।

उसने तुरंत स्टेज गेम क्वीन सुनिधि के हवाले कर दिया ।

सुनिधि ने एक बहुत ही रचनात्मक खेल का आयोजन किया ,जिसमें हर सहपाठी को अपनी जीवनसंगिनी का अनूठे ढंग से बालों का सिंगार करना था।

उसके बाद दौर चला हांउज़ी का और उसके बाद बारी आई म्यूजिकल चेयर की।

दो बजते बजते सब के पेट में ऐसे चूहे दौड़े ,सब खाने पर टूट पड़े।

खाने में बेहतरीन भोजन का प्रबंध किया गया था।

उसके बाद बारी आई सभी सहपाठियों को अलग-अलग खेलों में जीते इनामों के वितरण की । सगुन ने इस बात का खास ख्याल रखा था कि कोई भी सहपाठी या सहपाठिनी इनाम से वंचित न रह जाए। चाहे उसने किसी खेल में इनाम जीता हो या न जीता हो ,कोई ना कोई कैटेगरी ढूंढ कर उन्हें इनाम की नवाजिश की गई।

शाम 5 बजेे होटल वापस चल दिए। सगुन ने रास्ते में सब को कहा कि फ्रेश होकर सब लोग 6:30 बजे तक वापस मधुबन पार्क आ जाएं जहां एक स्पेशियल प्रोग्राम का आयोजन किया गया है ,जिसके बारे में वही बताया जाएगा ।

जब शाम 6:30 बजे निभु मधुबन पार्क पहुंचा तब उसके सामने ही राधा खड़ी थी। कुछ खा रही थी ब्लैक एंड वाइट सूट में।

निभु यह देखते ही दौड़ पड़ा लिपटने ,मगर फिर उसे आसपास का ख्याल आया और उसने कुछ और ही बोल कर बात बदल डाली। या हो सकता है उसे 50 साल पुराने सैंडल याद आ गए हों।

पार्क के एक कोने में एक ठेला लगा हुआ था । यह खास ठेला सगुन ने खास लगवाया था, जिसमें स्कूल की रिसेस के दरमियान सारे विद्यार्थी जो कुछ भी खाने आया करते थे, वो सारी चीजें उसमें सजा कर रखी हुई थी। जैसे गुलाब जामुन पाव चने खारीसिंग,खट्टी ईमली,काले-सफेद खटमीठे गोलमटोल ठर्रे और बस ऐसी ही छोटी-छोटी चीज़ें ,जो पांच पैसे से लेकर बीस पैसे में मिलती थी, जिन्हें खाने रिसेस में सब टूट पड़ते थे और बड़े चाव से खाते थे।

यह देख कर निभु चक्कर में पड़ गया। सगुन ने अपनी पिछली यादों का किस बारीकी से ख्याल रखा इस बात का उसे तब पता चला। शायद यही असल अंदाज का रियूनियन था।

निभु ने दो गुलाब जामुन लिए। इतने में भट्टू आ गया उसने निभु को एक शर्ट और एक टी-शर्ट भेंट किये।बाद में सब खाते-खाते पार्क-बेन्च पर बैठ गये। जहां राधा बैठी थी बराबर उसके बाजू में निभु भी बैठ गया।

तभी किसी ने भट्टू से पूछा," यह शर्ट कितने का होगा?"

भट्टू ने जवाब दिया यही ढाई हजार से 5000 के बीच में होते हैं।" सुनते ही निभु के मुंह से चीख निकल गई ,"पांच हज़ार? अरे भट्टू! इत्ती तो मेरी पगार भी नहीं है।"

भट्टू ने कहा ," निभु प्यार से दी गई चीज़ की कोई कीमत नहीं होती।"

विदाई समारोह का आयोजन रात नौं बजे सगुन के बंगले नीलम मेंशन के हरे-भरे लाॅन पर किया गया। जहां एक ओर ऑर्केस्ट्रा की धूनी तो दूसरी ओर भोजन की व्यवस्था तो तीसरी ओर स्थानीय सहपाठियों द्वारा अपने सभी सहपाठियों के लिए विदाई तोहफे का आबंटन तो एक अलग ही तरह से संगीत की धुनों पर कुछ सहपाठियों ने पैरों की झंकार बिखेरी तो किसी ने दिखाये लटके-झटके तो किसी ने लगाये ठुमके।

कार्यक्रम की समाप्ति पर सगुन की ओर से सबको भारी भरकम तोहफे पेश किए गए।

सारे सहपाठी एक दूसरे के गले लग कर ,रुंधे गले से अपने यहां आने की दावतें दे रहे थे।

... । और निभु था कि अनंत अंधेरे में आसमान तक रहा था, जैसे उसे वहां कुछ दिख रहा हो... ।

पटाक्षेप

रा,,,,,धा       रा,,,धा    रा,,,धा का शोर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ समूचे हाॅल में गूंज उठा और गूंजता ही रहा। थमने का नाम ही नहीं ले रहा था।

शहर के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित रंगारंग कार्यक्रम में जैसे ही उद्-घोषक ने लक्ष्य महा विद्यालय की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले समूह नृत्य की घोषणा की कि पूरा हाॅल तालियों की गड़गड़ाहट से ऐसा गूंज उठा कि नृत्य में भाग लेने वाली अन्य छात्राओं के नाम तक राधा राधा के शोर में विलीन से हो गये।

नृत्य में भाग लेने वाली सभी छात्राएं आ चुकी थी स्टेज पर अब सिर्फ राधा का इंतजार हो रहा था मुख्य पात्र के रूप में।

निभु डोरी थामकर पर्दे को खींचने की तैयारी में बैकस्टेज से आ रही राधा को देख रहा था।

राधा की खूबसूरती देखते ही बनती थी। निभु अपलक उसे देखता रहा।

तभी उनके पी। टी। टीचर ने निभु का कंधा हिलाया यह इशारा था निभु के लिए सपने में से बाहर आए और पर्दा खोल दे। निभु ने तुरंत डोरी खींच ली और पर्दा खुला... ।

             इति शुभम


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