दिल ढ़ूढता है
दिल ढ़ूढता है
दिल ढ़ूढता है फिर उस दौर को,
सिमट गई घड़ियाँ यादों के पिंजरे में
जैसे कैद कर ली हो रूह को मेरे,
काश! कोई लौटा दे उस बीते पल को
दिल ढूंढता है फिर उस दौर को।
वो बचपन की गलियां और शिकायतें ,
गर्मियों की छुट्टियां और शरारती रातें
कितना सुकून था नंगे पांव चलने में,
बरसात की झडी़ और भीगी पगडंडियों में
फिर से ताजा कर ले उस यादों को ,
दिल ढूंढता है फिर उस दौर को।
वो गुड्डे गुड़ियों की शादी का खेल
और छुक छुक गाड़ियों वाला खेल
ना थकान था और ना ही बोरियत
सब मिलकर पूछा करते थे खैरियत
चलो ढूंढ लाए वो पिछड़े अपनों को
दिल ढूंढता है फिर उस दौर को।
वो माँ की रोटी में नमक घी लगाना
चलते चलते हमें मुंह में ख़िलाना
बात बात पर हर जिद में रुठ जाना
भाई बहनों की लड़ाई और मनाना
कहाँ से लाएं उस बीते पल को
दिल ढूंढता है फिर उस दौर को।