वफादार कालू
वफादार कालू
एक गांव में राजू नाम का एक बच्चा रहता था। वह बहुत ही चंचल, शरारती पर होशियार था। उसके माता-पिता मजदूरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे और चाहते थे कि उनका बेटा पढ़ -लिखकर अच्छी जिंदगी बिताए।
एक दिन राजू के शिक्षकों ने उसके माता-पिता को स्कूल बुलाकर कहा कि राजू पढ़ने में बहुत होशियार है पर अपनी पढ़ाई - लिखाई पर ध्यान कम देता है । अगर वह शरारतें कम कर दे और कक्षा में ध्यान दे तथा दिए गए कार्यों को पूरा करे तो वह जीवन में बहुत आगे जाएगा।
उसके माता-पिता शिक्षकों की बातें ध्यान से सुनकर बोले कि हम दोनों तो बहुत पढ़े लिखे नहीं हैं। दिन भर मजदूरी करके शाम को घर वापस आते हैं और पढ़ने को भी कहते हैं पर ये हमारी बातें नहीं सुनता है।
शिक्षकों ने राजू को बहुत प्यार से समझाया। राजू थोड़ा उदास मन से छुट्टी के बाद घर पहुंचा।
सर्दी की रात थी, राजू की मां लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाकर सबको खिला रही थी और राजू को बहुत प्यार से पढ़ने - लिखने के लिए समझा रही थी।
सभी लोग रात को सो गए और सुबह जब राजू की आंख खुली तो उसने देखा कि बरामदे में बने मिट्टी के चूल्हे में एक कुत्ते का छोटा सा बच्चा सिकुड़ कर सो रहा था तो राजू को लगा कि इसे ठंड लग रही है और उसने पास पड़ी एक बोरी उसे ओढ़ा दी।
कुत्ते के बच्चे ने बड़े प्यार से राजू की तरफ देखा जैसे कि राजू को धन्यवाद कह रहा हो।
राजू की मां ये सब देख रही थी और उसे अपने बच्चे के इस व्यवहार पर गर्व हो रहा था कि गरीबी में भी उसमें इंसानियत और दया भाव है और वह दूसरों के सुख-दुख को समझता है।
उसकी मां ने राजू के पास आकर पूछा कि अब इस कुत्ते के बच्चे का क्या करें। राजू ने कहा मां क्या हम इसे पाल नहीं सकते। ये इतनी ठंड में कहां जाएगा और कौन इसे खाना देगा तो फिर तो यह मर जाएगा।
राजू की मां ने कहा कि फिर तो तुम सारा दिन इसके पीछे लगे रहोगे और स्कूल भी नहीं जाओगे। वैसे ही तुम पढ़ाई में कम ध्यान देते हो।
कुत्ते का बच्चा भी ध्यान से सारी बातें सुन रहा था और फिर वह उठकर राजू के पास आकर खड़ा हो गया और पूंछ हिलाते हुए भौंकने लगा। राजू बड़े प्यार से उसकी पीठ सहलाने लगा।
राजू की मां ने कहा कि अगर कालू की वजह से तुम्हारी पढ़ाई - लिखाई खराब हुई तो इसे यहां से जाना होगा।
राजू ने मां की बात सुनकर सिर हिलाया और कालू भी भौंकने लगा। इस तरह उस प्यारे से काले रंग के कुत्ते के बच्चे को सब कालू बुलाने लगे।
राजू स्कूल जाता और उसके माता-पिता काम करने जाते तो कालू सारा दिन घर की रखवाली करता। स्कूल से आने के बाद राजू और कालू साथ में खूब खेलते। खेलने के बाद ज्योंही अंधेरा होने लगता तो कालू को मां की बात याद आती और वो राजू की पैंट अपनी दांतों से पकड़कर उसे उसकी मेज-कुर्सी तक ले जाता और भौंक कर पढ़ने के लिए कहता।
राजू पढ़ने लगता तो कालू मां के पास आकर पूंछ हिलाकर बताने की कोशिश करता।
रोज ऐसे ही चल रहा था और अब राजू में काफी सुधार था।
एक दिन उसके शिक्षकों ने कहा कि राजू अब तो तुम पढ़ाई पर बहुत ध्यान देने लगे हो, लगता है कि तुम्हारे माता - पिता आजकल तुम्हारे ऊपर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं।
राजू ने कहा कि ये सब तो कालू ने किया है।
शिक्षकों ने पूछा - ये कालू कौन है ?
राजू ने कहा - मेरा प्यारा कुत्ता।
जब तक मैं शाम को अपनी पढ़ाई पूरी नहीं करता तब तक कालू भी खाना नहीं खाता है।
इस तरह से राजू ने अपनी मेहनत और कालू की समझदारी से कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और सबने उसे शाबासी दी।
स्कूल में उसे मेडल पहनाकर सम्मानित भी किया गया। राजू खुशी से नाचता हुआ घर आया और अपने गले का मेडल उसने कालू के गले में पहनाकर उसे प्यार से सहलाया। कालू भी पूंछों को तेजी से हिलाकर अपनी खुशी जता रहा था।
राजू के माता-पिता भी कालू को अपने बेटे की जिन्दगी में सुधार के लिए अपने संतान की तरह प्यार करने लगे ।
"जानवर हमारी भाषा नहीं पर हमारी भावनाएं अवश्य पढ़ लेते हैं।"
कालू को हमेशा यह याद रहता था कि इस परिवार ने उसे भोजन और आश्रय दिया है और अत्यधिक प्यार भी दिया है जिसके कारण वह आज जीवित है और इसलिए उसने राजू के और उसके माता-पिता के जीवन में उजाला भर दिया।