वो प्यारी सी मुस्कान लिए
वो प्यारी सी मुस्कान लिए
दीवाली के कुछ दिन बाद की बात है, मैं अपनी दुकान पर बैठा था, तभी कुछ 9-10 साल की उम्र के आस पास की वो प्यारी सी मुस्कान लिए दिल में कुछ अरमान लिए हाथों में सिर्फ हां सिर्फ दो बलून (फुग्गे) लिए मेरे पास आई।
मैंने पूछा "हां बेटा बोलो," वो बिटिया बोली 'भैया मेरे बलून खरीद लो",मुझे जरूरत नही थी बलून की पर वो मासूम सी बच्ची निरास स्वर में उम्मीदों से बोली थी, उस समय तो मै सोच में पड़ गया कि इस बच्ची को क्या कहूँ।
फिर आखिर मैंने उससे पूछ ही लिया "बेटा क्या आप पढ़ाई भी करते हो", वो बोली नहीं "मुझे खाने के लिये बलून बेचने जाना होता है", उस मासूम की इतनी बातें सुनते ही मेरा हृदय पसीज सा गया मैंने एक पल भी देर ना कि और उस बच्ची के दोनों बलून खरीद लिये, उसका चेहरा मंद मंद खिल सा गया।
वो प्यारी सी मुस्कान लिए कुछ बोली, "भैया यदि आपके पास दीवाली के कुछ पटाखे बचे हो तो मुझे दीजियेगा", मैंने पूछा "बेटा क्या तुमने दीवाली नही मनायी?" वो बोली नही "भैया हमारे पास पैसे नही थे, मेरे पैरों के नीचे मानो जमीन ही खिसक गई थी" और मन मे कई सवाल कौंध रहे थे जहां लोग हजारों रुपये के पटाखे जला देते है वहां कोई ऐसा भी है जो दीवाली ही नही मना पाता।
मैंने उस मासूम बेटी से कहा, "बेटा ये लो कुछ रुपये रखो आप और इससे जो चाहो ले लेना", वो मासूम बहुत समझदार और स्वाभिमानी थी बोली "भैया नही मैं किसी से पैसे नही लेती", मेरे दिल को उस मासूम की स्वाभिमान से भरी ये बात छू गई, 2 मिनट तो मैं शांत रहा फिर बोला, मैंने कहा "बेटा भैया कहती हो भाई ने दिया समझ कर ही रखलो।"
उसे तब इन बातों से खुशी मिली इसने रुपये लिए और वो दिल से धन्यवाद दी , मेरा हृदय भी उसकी सहायता करके प्रफुल्लित हो उठा।
उसकी बातें, नन्ही उम्र में स्वाभिमान और उसकी समझदारी और वो प्यारी सी मुस्कान लिए बेटी मुझे हमेशा याद आती है।
