वो नहीं आई
वो नहीं आई
उस दिन अनु बिल्कुल निढाल सा हो गया था। जबकि इतनी खूबसूरत शाम का सुहाना सा मौसम था, जिसे देखकर किसी का भी मन मोह जाता और खुद को वहाँ रोके बिना नहीं जा पा रहा था। लेकिन अनु अब भी एक टक उसी राह पर अपनी नज़रें गड़ाये हुए बैठा था, जिस तरफ कोमल सिसकती हुई तेज कदमों से चली गई थी, हल्की हल्की बूँदें फ़ुहार नुमा आसमान से गिर रहीं थी जो बूँदें अब पानी बनकर अनु के बालों से खेलती हुई उसके रेगिस्तान की तरह सूखे और लालमा से भरे हुए गालों पर दस्तक देने ही वाली थी कि अनु ने एकदम से हाथ से पानी को हटाया और नदी के पानी की तरफ़ देखकर फ़िर से पिछली मुद्रा में लीन हो गया। क्योंकि अनु को भरोसा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास था कि कोमल मुझे छोड़कर नहीं जा सकती और फ़िर इस स्थिति में तो बिल्कुल भी नहीं कि जब मैं उससे कह चुका हूँ, कि कोमल तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी पूरी तरह से अधूरी है,और मैं अधूरी जिंदगी जीना बिल्कुल ही पसंद नहीं करूँगा। अगर आज तुमने मुझे छोड़ दिया तो मैं अपने आपको सँभाल नहीं पाऊँगा और इसी नदी में कूदकर अपनी जान दे दूँगा। इसी के उधेड़बुन में अनु कभी उसके आने की राह देखता तो कभी खुद से ही ढेर सारे सवाल कर बैठता, कि आखिर मेरी कोमल को ये हो क्या गया है अब, पिछले पाँच सालों से जो एक कदम भी मेरे पूछे बगैर नहीं रखती थी वो आज इतनी दूर मुझसे बिना पूछे कैसे जा सकती है। ऐसे ही कई सवाल अनु को कोमल के बारे में सोचने को मजबूर कर देते जिनका अनु के पास कोई उत्तर नहीं था और उसके पास भी अब कोई नहीं था सिवाय उसके आँसू और कोमल की याद के अलावा।
और वो करता भी क्या क्योंकि अब तक उसे सँभाला भी तो कोमल ने ही था। बचपन में ही माता-पिता अनु को छोड़कर उसे अनाथ कर गए थे।अब उसके जीने की वज़ह थी तो बस कोमल और आज कोमल भी समाज की मर्यादा को लाँघने की हिम्मत नहीं कर पाई थी। तभी तो वो अनु को तड़पता छोड़कर जाने की हिम्मत कर पाई थी। क्योंकि वो अपने घर-परिवार की इज्ज़त को ताक पर रखकर और घर वालों के खिलाफ होकर शादी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी, लेकिन अपने आप ख़तम कर सकती थी। अनु ने भी ठान लिया था कि अगर आज कोमल लौटकर नहीं आई तो मैं भी लौटकर घर नहीं जाऊँगा।