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Rahul Bhatt

Others

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विकास एक विनाश

विकास एक विनाश

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आज गाँव में लोग एकत्र होने वाले है मुझे यह खबर अभी - अभी प्रधान जी के द्वारा मिली। मैनें जब प्रधान जी से इस खबर के बारे में जानना चाह तो प्रधान जी ने मुझे सिर्फ इतना कहा कि कुछ खास मुद्दे पर बात होगी और प्रधान जी चले गऐ । अब मेरे मन में इस मुद्दे को जानने कि उत्सुकता होनें लगी और मैं गाँव के पंचायत भवन की तरफ जाने लगा। तभी मुझे सचिन मिला। सचिन कहने लगा यार क्या तुम भी आज प्रधान जी की बैठक में जा रहें हो। तो मैनें सचिन को से कहा हां सचिन मैं अभी प्रधान जी की बैठक में जा रहा रहा हूँ। सुना है कि आज कुछ खास मुद्दे पर बात होगी और उन्होनें मुझे ज्यादा कुछ तो बताया ।तो मैनें सचिन से जानना चाह कि तुम्हें कुछ बताया होगा तो सचिन कहने लगा नहीं मुझे तो कुछ नहीं कहा परंतु मैनें रमेश चाचा जी से सुना कि कोई बाहरी कंपनी है जो हमारे गाँव में अपना उद्योग लगा रही है। बस रमेश चाचा जी ने मुझे इतना ही बताया फिर सचिन कहने लगा यार मेरे मामा का कल मुझे फोन आया था। कह रहे थे कि वह शहर में एक होटल में एक वेटर का काम है। तो मामा जी ने मेरी माँ को बताया तो माँ ने काम की बात सुनते ही मामा को हां कह दिया । अब मुझे कल शहर के लिऐ जाना होगा । यार करूँ भी क्या आखिरकार गाँव में रोजगार के लिऐ भटकते रहे तो पता नहीं कब रोजगार मिलेगा आखिर मिलेगा भी या नहीं मिलेगा । पिछली बार तो हम सब ने ही एसएससी का पेपर दिया था न हुआ क्या पेपर आउट हो गया। यार अब तो मेरा सरकार से भी विश्वाश उड़ गया है हर बार अख़बारों और टीवी पर कहते है की 'पुलिस में ख़ाली दो हजार पद जल्द होगी भर्तीयाँ' पर हुई भर्ती । गौरव के बारे में तो सुना होगा तुमने पिछ्ली बार वह आर्मी की भर्ती में तो देखा होगा ।अमन गौरव को देखा होगा दौड़ और रिटर्न दोनों का पूरा हो गया था मेडिकल में बाहर और अमन को देखा जो गौरव से भी कम दौड़ता था।और मेडिकल भी उसका पूरा नहीं था। फिर भी वह निकल गया । सुना है कि अमन का मामा फौज में सूबेदार है तो उसके मामा ने उसे फौज में भर्ती कर दिया । और हम दोनों बातों - बातों में पंचायत भवन पहुँच गऐ। वहाँ तब तक गाँव के सभी लोग आ चुके थे।और कंपनी के लोगों का परिचय गाँव के सभी लोगों से करवाया उसके बाद प्रधान जी ने बताया कि यह कंपनी हमारे गाँव में अपना उद्योग लगाना चाहती है और गाँव के सभी लोगों को इसमें रोजगार दिया जाएगा। और साथ ही साथ जिन लोगों कि जमीन पर कंपनी लगेगी उन सब को मुआवजा दिया जाऐगा। तभी कंपनी वालों ने अपना प्लान लोगों को दिखाया जिसमें उन्होनें कहा कि जो आपके में जो है वह पूरे भारत में कही नही है । उन्होनें बताया कि वो गाँव में बिसलेरी की बोतलों पर यह का पानी देश के सभी जगहों में बेचा जाऐगा। गाँव वालों को प्रसन्नता होने लगी कि अब हमारे गाँव का जल अब सभी जगहों में बेचा जाऐगा । फिर क्या था गाँव वालों कों तो सभी सुविधा उपलब्ध हो रही है तो गाँव के सभी लोगों ने कंपनी के कागजात पर अपने हस्ताक्षर कर दिऐ और कंपनी ने लोगों को रोजगार और मुआवजें का पूर्णरूप से आश्वासन दिलाया और कंपनी के लोगों ने गाँव वालों से कहा कि वे सभी अपना मुआवजा कलेक्टर से कुछ दिनों बाद ले जाऐ और कंपनी के लोग चले गऐ। सभी गाँववालों 'खुशी के फूल नहीं समा पा रहे थे' लोग अपने बेटा- बहु और बेटियों को इस बात को फोन के द्वारा बताने लगे सचिन और मैं इस दृश्य का आनन्द ले रहे थे । 


'खुशीयाँ जब आती है तो हर मनुज को खुश कर जाती है । ' यही अब गाँववालों के साथ हो रहा था ।


सचिन ने भी अब अपने मामा को यह बात कह रहा था कि वह अब शहर नहीं आऐगा क्योकिं अब गाँव में ही उसे रोजगार मिल गया है । सचिन ने दिल्ली जाने का निर्णय भी वापस ले लिया ।


लोग सुबह - सुबह कलेक्टर के दफ्तर के लिऐ जाने लगें और सभी गाँववालों ने कंपनी के नाम अपनी जमीन कर दी। और कंपनी ने लोगों को जमीन का मुआवजा दे दिया ।


" मुआवजा वह खुशी होती है जो होती कुछ समय के लिऐ परन्तु आप से बहुत कुछ छीन ले जाती है।"


इस मुआवजें की खुशी के समुद्र में गाँववालें डूब गऐ कुछ ने बस , ट्रक तो कुछ ने मँहगें फोन खरीदें वाकई यह दृश्य बडा़ ही रोमंचित था मानों ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अब इसमें दुख शब्द तों दूर के ढोल हो गऐ हो।


 कंपनी तो इसी दिन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी 


कंपनीवालों ने शहर के महशूर बिल्डर्स को इसका कार्य सौंप दिया बिल्डर्स के लिऐ तो यह पर बहुमंजिला इमारत खडी़ करनी तो छोटी -सी बात थी जो बिल्डर्स ने कुछ ही समय में खडी़ कर दी और कंपनी तक सड़क का जाल बिछ गया कंपनी ने यह पर अपनी मशीनें भी लगा दी बस गाँववालें अब रोजगार की राह देख रहे थे ।


कंपनी ने अपने मजदूरों और वर्कर्सों से यह पर कार्य करवाने लगें जिससे गाँववाल़ों की आग जल उठी और वे कंपनी के निकट धरना देनें लगें तो कंपनी के लोगों ने यह सूचना त्वारित कंपनी के मालिक यादव जी को दे दी। सूचना प्राप्त होने के कुछ देर बाद वह पर यादव जी आ गऐ गाँववालें यादव जी को कहने लगे यादव जी आपने तो कहा था कि गाँववालों को रोजगार दिया जाऐगा परतुं आपने गाँववालों को रोजगार देने कि वजह बाहरी लोगों को रोजगार दिलाया है ।


इस प्रश्न को सुनते ही यादव जी कहने लगें ऐसी कोई बात नहीं है अभी कंपनी के कुछ कार्य बाकि रह गऐ पूर्ण होते ही आपको यह रोजगार दिया जाऐगा ।


गाँववालें इस आश्वासन से धरनें पर से उठ गऐ और रोजगार का इंतजार करते रहें आखिरकार कंपनी ने कुछ गाँव के लोगों को रोजगार पर रखा दिया और कुछ को कह कि उन्हें कुछ समय पश्चात रखा जाऐगा ।


कंपनी ने औरों को भी रोजगार दिला दिया और गाँववालें सोचने लगे कि अब तों रेल पटरी पर आ गई है पर उन्होंने खुशी के सावन में यह बात भूल दी कि विकास अपने साथ विनाश लाता है और यहीं यह होनें लगा। कंपनी से निकलने वाले विषैलें पदार्थों से यह के जल स्त्रोत धीरे- धीरें सूखने लगें गाँववालें सोचने लगे कि शायद वर्षा न होने के कारण यें जल स्त्रोत सूख रहें है इस तरह गाँववाले अपने को आश्वासन दिलाने लगें। 


कुछ शिक्षित युवा वर्ग के लोगों ने गाँववलों से इस सम्बन्ध में बात कि पर इसका गाँववालों पर कोई प्रभाव न हुआ। इस तरह से दिन व्यतीत होनें लगे। सचिन ने कंपनी छोड़ दी क्योकिं कंपनी ने उसे कॉफी वक्त से वेतन न दिया और सचिन की माँ भी बीमारी से जूझ रहीं थी तो सचिन के पास शहर जानें के बदले कोई भी उपाय न सूझा वह अपनी माँ को लेकर शहर चला गया। वह जाकर उसके मामा ने उसें वहीं नौकरी लगा दी और उसकी माँ भी अब स्वास्थ हो गई उसकी माँ गाँव लौट आई । मुझे जब सचिन की माँ मिली तो मैनें सचिन के बारे में जानना चाहा तो उन्होनें कहा कि सचिन शहर में नौकरी कर रहा है और वह कुछ महीनें बाद गाँव आऐगा । इस खबर से मुझे बहुत दुखा हुआ क्योकि सचिन के न होने से गाँव में दिन कैसे व्यतीत होगें ।


' मित्रता वह सुख होता है जहाँ सारे दुखों का निवारण होता है और जीवनयापन का तो पता ही नहीं चलता है'। 


मेरा कॉफी दिनों तक सचिन के बिना मन ही नहीं लग रहा था। सचिन के साथ बातों - बातों में दिन का पता ही नहीं चलता था और उसके साथ कंपनी के कार्यों की बात करने पर वह तरह - तरह की बातें करता रहता था कभी कहता था कि देखना यह कंपनी एक दिन अग्रेजों की तरह इस गाँव को भी लूट ले जाऐगें मैं इस बात से कहता सचिन अगर कंपनी गाँव को लूटेगी तो तुम महात्मा गाँधी बन जाना और इनका विरोध करना ऐसी - ऐसी बातों में दिन का पता ही नहीं चलता था । दिन सचिन के बिना व्यतीत ही नहीं हो पा रहे थे।


मैं सचिन की माँ से हर वक्त सचिन के बारें में जानकारीयाँ लेता रहता था । तो उसकी माँ कहती रहती थी कि सचिन होली में घर लौट आऐगा। सच कहा है किसी ने मित्र के बिना जीवन व्यतीत करना कॉफी मुश्किल होता है।


सचिन के आने की बात सुनकर मुझे मानो गर्मी में ठंडक मिल गयी हो। मैं अपने घर के ओर जा रहा था तो देखा की रमेश चाचा के घर लोगों की भीड़ लगी हुई हैं, मैंने इस भीड को लगने का कारण पता किया तो पता चला कि रमेश चाचा कम्पनी में काम करते समय विल्डिंग से नीचे गिर गए और वे इस दुनिया को अलविदा कह गए।


सभी लोग इस घटना से काफ़ी दुखी थे रमेश चाचा का एक बेटा श्याम था,जो थोड़ा मंदबुद्धि था पर आज वह इस घटना को देखकर काफ़ी दु:खी था। मैने और प्रधान जी ने श्याम को अंतिम संस्कार के लिए कहा पर श्याम को इस घटना से मानों की उसके मन को काफ़ी ठेस पहुंची हो। वह उठकर इधर - उधर घूमने लगा, कहने लगा मैं अपने पापा को नहीं जाने दूंगा।


देर बाद तक जब गाँव के बुजुर्गो ने श्याम को समझा- बुझाकर अंतिम संस्कार के लिए तैयार किया, चाची को मानो जैसे सदमा लगा हो।


आखिर अब हम भी क्या कर सकते हैं, इस संसार में अमर तो कोई नहीं है मृत्यु के द्वार पर सभी को जाना -"राम नाम सत्य है...। " इसी तरह लोग अंतिम स्थान पर आ गए वह पर अंतिम संस्कार की क्रिया को किया गया।


आज गाँव के हर एक को इस घटना से अधिक दुख भी हो रहा था और कंपनीवालों के प्रति भी क्रोध की अग्नि भड़क रही थी जिसका कारण था कि जब रमेश चाचा कंपनी की इमारत से गिरे थे तो उस वक्त कंपनी के कोई भी कर्मचारी वह न आया। आर्थिक सहायता तो दूर की बात थी इसे वजह से लोग कंपनी वालों के प्रति आक्रोश जता रहे थे। इस घटना से रमेश चाचा के परिवार कि स्थिति कॉफी दुखनीय हो रही थी मुझ से यह इनकी स्थिति न देखी गई और मैं घर की ओर चलने लगा तो मुझे राह में प्रधान जी मिल गऐ तो मेरे मन में रमेश चाचा के परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने की जागृत्ति जागा उठी तो मैनें प्रधान जी से जानना चाह कि हम इस घटना के सम्बंध में कंपनी वालों से मदद की गुहार लगाऐ तो कैसा रहेगा तो प्रधान जी ने मुझे से कहा कि बेटा कंपनी निजी है यह इस सम्बंध में कोई सहायता नहीं करती है तो मैनें प्रधान जी से कहा ―' प्रधान जी आप अनायास ही ऐसा सोच रहे है कंपनी चाहे निजी थी तो क्या हुआ हालत तो जानने आते या हालत के लिऐ भी निजी कंपनी है प्रधान जी एक बार उनसे इस सम्बंध में बात तो की जाऐ ।' प्रधान जी ने मेरी ओर तीखी निगाहों से देखते हुआ कहा चलों इस बार तुम्हारी बात ही सही कल प्रभात में तुम मुझे कंपनी के पास मिलना में तुम्हें वही पर मिलता हूँ । मैंने प्रधान जी से कहा चलों मैं भी कल आपकी राह कल कंपनी के पास देखता हूँ। और मैं वह से घर लौट आया तो घर आते ही माँ ठोड़ा तिलमिला उठी और कहाने लगी आज कल कुछ दिनों से किस बात में डूबा रहता है और कहां कहां जाता है घर भी समय से नहीं आता है तुझे पता होगा कि तेरे अगले माह से परीक्षा है बेटा इस तरह से तेरा यह वक्त भी चला जाऐगा और सचिन को ही देख ले शहर में नौकरी कर रहा है और घर में अपनी माँ को समय समय पर पैसे भी भेजता है और तो और उसकी माँ कहा रहीं थी कि अगले माह उसका विवाह भी है बेटा इस बार कह रही हूँ कि इस बार अगर तेरी परीक्षा पास न हुई तो मैं भी तुझे शहर भेज दूंगी अब तेरी उम्र भी हो गई है मैंने कह दिया है । तो म़ुझे माँ की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था कल तक जो माँ मुझे घूमने के लिऐ और पढ़ने के लिऐ कहती थी वो आज अचानक ऐसी बात कैसे कर रही है। मैं विश्राम करने ही जा रहा था कि माँ कह रहने लगी सुना है की तू ' कंपनी वालों के पास कल जा रहा है '। बेटा तू इन बातों में व्यर्थ ही पड़ रहा है ! मैनें माँ के प्रश्न के उत्तर दिये बिना ही विश्राम करने चल गया पर नींद नहीं आ रही थी मन में माँ , प्रधान जी की और रमेश चाचा के परिवार की बातें चल रही थी क्या किया जाऐ । 


रवि की किरण निकल आई और नई आशा उमंग भी आऐ मन में प्रधान जी कि बात ध्यान आऐ और उन बातों का गंतव्य साफ नजर आ रहा था मैनें मन में सिर्फ प्रधान जी की बात स्मरण की और कंपनी की ओर चल दिया। 


कंपनी पहुँचते ही प्रधान जी मेरी राह देख रहे थे मैं उनके समक्ष गया और प्रधान जी ने कहा बेटा तुम समय के कॉफी पावंद हो बिलकुल सही समय पर आऐ हो चलों कंपनी के मालिक के पास चलते है मैं भी उनके पीछे -पीछे चलने लगा तो प्रधान जी ने कंपनी के गार्ड से पूछा यादव जी कहा रहते है तो गार्ड ने हमें वह तक ले गया वह पहुँचते ही मेरी नजर यादव जी पर पड़ी वो देखने में काला मोटा और उसके चेहरे से लग रहा था की वो कुछ सहयोग नहीं करेगा प्रधान जी ने यादव जी को प्रणाम करते हुऐ कहा यादव जी कैसे हो धंधा तो अच्छा चल रहा है तो यादव जी प्रधान जी की ओर देखकर कहने लगे अरे प्रधान जी खडे़ क्यों है बैठ जाऐ बोले क्या लेगे चाय कॉफी कुछ तो प्रधान जी कहने लगे नहीं यादव जी अभी कुछ नहीं ।


यादव जी कहने लगे कहें प्रधान जी कैसे आना हुआ किसी को कंपनी में काम दिलवाना है ? 


प्रधान जी ― नहीं - नहीं यादव जी ऐसी कोई बात नहीं है दरअसल मैं आपसे एक विनती करना चाहता हूँ पिछले कुछ दिन पहले आपकी कंपनी में काम करने वाला एक मजदूर रमेश नाम का हमारे गाँववाला जो आपकी कंपनी में काम करते वक्त गिर गया था और परलोक सिधार गया था ।


यादव जी:― अच्छा आप उस दुर्घटना की बात कर रहे है न अरे प्रधान जी वो तो उसे चक्कर आने के कारण गिर गया था । और सभी गाँववाले कह रहे है कि वह तो कंपनी की सीढ़ी से फिसलने के कारण गिरा था पता नहीं लोग कैसी कैसी बाते करते है ।


प्रधान जी :― यादव जी वो जो कुछ हुआ भूल जाऐ पर आपसे एक विनती करना चाहता हूँ कि आप अपने फंड से कुछ आर्थिक सहायता उसके परिवार की कर दीजिऐ तो बडी़ मेहरबानी होगी और कंपनी पर भी लोगों का विश्वास बना रहेगा ।


यादव जी :― प्रधान जी ये आप कैसी बाते कर रहे है कंपनी कोई सरकारी ठोडी़ न है जो फंड से पैसे दे ये निजी कंपनी है इसका फंड सिर्फ कंपनी के लिऐ होता है और हम इन्हे मजदूरों पर अपना फंड खर्च करें।


प्रधान जी :― यादव जी आप शायद भूल रहे है की कंपनी की जगह गाँववालों की है और जिन्हें आप मजदूर कह रहे है उनकी ही यह जगह है । 


यादव जी :― गुस्से में प्रधान जी जरा तमीज से बात करों अन्यथा आप भूल रहे है की मैंने इस जगह का पूरा पैसा गाँववालों को भर - भर कर दिया है एहशान नहीं किया है आप सभी लोगों ने मुझ पर पैसा तो रहा ही रोजगार भी दिलाया है इतना कुछ दिला दिया है आप कह रहे है कि गाँववालों ने जगह दी है ।


प्रधान जी :― यादव जी जगहें तो आपको शहर में भी मिल जाती फिर यहीं ही कंपनी क्यों लगाई आपकी पूरी चालाकी से सभी लोग भली भाँति परिचित है अन्यथा आपकी कंपनी यह से हट भी सकती है।


यादव जी :― प्रधान जी आप गाँववालें कुछ भी नहीं कर सकते यह जगह मेरे नाम पर हो चुकी है चलें जाऐ जो करना है कर दीजिऐ।


प्रधान जी :― अरे आप क्यों बोलते है हम खुद जा रहे है और आपकी कंपनी और आपकों भी हटा कर रहेंगें।


अच्छा चलतें है मिलेगें फिर कोर्ट में ।


यादव जी :― क्या कर सकतें है आप कर दीजिऐ केस वैसे भी जगह मेरै नाम पर है केस हो ही नहीं सकता।


प्रधान जी वह से बाहर आऐ और कहनें लगे यादव कुछ ज्यादा ही उछल रहा है हमारी ही जमीन पर आ कर हमें ही धमका रहा है इसे तो अब कोर्ट में ही देखेगें चलों बेटा थानें चलते है वहीं देखेगें इन्हें ।


प्रधान जी और मैं थाने की ओर चल दिऐ और प्रधान जी प्रवेश करते है में 


प्रधान जी:― प्रणाम दरोगा जी ।


दरोगा जी:― प्रणाम प्रधान जी बड़े दिनों बाद याद आई हमारी सब ठीक तो है न।


प्रधान जी :― दरोगा जी निवेदन है आपसे ।


दरोगा जी:― प्रधान जी बोले क्या कार्य है हमारे लिऐ? ।


प्रधान जी:― दरोगा जी ये कंपनी वाले हमारी जगह पर रहकर हम पे ही हुकम चला रहे है मैं उनके पास हमारे गाँव का मजदूर रमेश के परिवार की आर्थिक सहायता के लिऐ गया था और यादव जी कह रहे है की हम इन मजदूरों पर अपना फंड खर्च करें यहीं ही नहीं कह रहे है की गाँववालों को हमनें भर - भर कर पैसा दिया है जमीन का आप ही बातऐ की कंपनी तो इसके लिऐ सहायता तो दे सकती है और यादव जी बेकार में बात को आगे बढ़ा रहे है ।


दरोगा जी :- प्रधान जी कंपनी निजी है यह कोई फंड नहीं बनाती है हां पर वह पर परिवार के एक सदस्य को रोजगार दे सकती है पर आप इसके लिऐ कलेक्टर सहाब के पास जाऐ वो ही इस पर निर्णय करेगें कंपनी वालें पैसे वालें है और उन पर अगर एफ. आई. आर. दर्ज करते है तो इसमें मेरी नौकरी भी चली जा सकती है और आपकों भी प्रधान पद से हाथ धोना पडे़गा इससे अच्छा है इसे आगे न बढाऐ अन्यथा आप बेवजह इसमें फस सकते है मेरी तो यही राय है की आप इसमें न पडे़ ।


प्रधान जी:― दरोगा जी कोई नहीं आप नहीं कर सकते तो मैं कलेक्टर सहाब के पास ही जाऊंगा।


दरोगा जी:― जैसा आपकों उचित लगे वैसा करें ।


प्रधान जी वह से घर की ओर चले ।


प्रधान जी कहने लगे बेटा हम बेवजह इसमें फंस रहे है जहाँ तक उचित देखा जाऐ तो हम इसमें नहीं फंसते है तुम भी अपनी पढा़ई करों और इनमें न फंसों ।


मैं भी वह से बिना कुछ कहे घर आ गया ।


घर पहुँचा तो माँ ने कहा बेटा कुछ दिन बाद परीक्षा है तैयारी करो तुम्हारी तैयारी तो घर में नहीं चल रही है इसलिए मैंनें एक निर्णय लिया है कि बेटा तुम तैयारी के लिऐ शहर जाओं और अच्छी कोचिंग लगवा लों और इसलिए मैनें तुम्हारा कल जाना तय किया है बेटा तुम अपना सम्मान रख लों कल तुम शहर जाओगे बेटा मैं तेरी भले के लिऐ कह रही हूँ बेटा नौकरी लग जाऐगी तो तुम रमेश चाचा के परिवार को न्याय दिला सकेगा बेटा अब मन लगा कर पढ़ना और नौकरी लग कर ही आना ।


सुबह हुई और मैं सम्मान के साथ सड़क पर आ गया माँ की आँखों में आँसू साफ नजर आ रहे थे जो आँसू कह रहे थी की बेटा तुम मेरी आखिरी उम्मीद हो।


बस आ गई और मैं बस में चढ़ गया और शहर लौट आया शहर में चारों और शोर और प्रदूषण ही प्रदूषण था गाँव में तो न प्रदूषण था शोर था चारों ओर सिर्फ हरियाली की छटा छाई हुई थी ।


मैनें शहर में एक छोटा - सा कमरा ले लिया और एक कोचिंग सेंटर में कोचिंग भी लगा ली सुबह से दोपहर तक कोचिंग में और फिर कमरें में आकर खाना बनना और फिर पढ़ना था माँ की आँखों में झलकती उम्मीदों ने मेरे अन्दर जूनून पैदा कर दिया था आब मंजिल साफ दिख रही थी। आखिर जिस दिन का इंतजार था वह निकट आ गया आज परीक्षा थी तो मैंनें परीक्षा में सभी प्रश्नों को पूरा कर लिया था बस इंतजार अब परिणाम का था कुछ दिनों के इंतजार के बाद भी वह दिन निकट आ गया और मैं परीक्षा में सफल हो गया चारों तरफ खुशीयाँ ही खुशीयाँ नज़र आ रही थी। मैंने गाँव के लिऐ बस पकडी़ और गाँव लौट आया ।


मैनें सबसे पहले माँ को यह खुशी दी और कहा माँ तुम उस दिन मुझे अगर शहर न भेजती तो मैं इस परीक्षा में सफल नहीं हो पाता था माँ की आँखे भर आई और कहा बेटा आज जो खुशी मिली है वह मेरी सभी खुशियों में एक है काश तेरी बाबूजी जीवित होते तो वो भी आज उतने ही खुश होते थें ।


बेटा अब एक कार्य पहले करना रमेश के परिवार को न्याय और इन कंपनीवालों को यह से बाहर करना।


कुछ दिन बाद मुझे डाकिया द्वारा पत्र मिला जो नौकरी करने का था उसमें मेरी तैनती गाँव के थाने में ही दरोगा के पद पर हुई थी।


मेरी तैनाती के दिन प्रधान जी और कुछ गाँववालें वह आकर मुझे बंधाई देनें लगे तभी प्रधान जी कहने लगे बेटा अब एक बार रमेश के परिवार को न्याय अवश्य दिलाना और कंपनी को यह से बाहर निकाल देना।


तुम्हारे सिवा यह कार्य कोई पूर्ण नहीं कर सकता है बेटा तुम से पूरी उम्मीद लगाया हूँ उम्मीद को बनाऐ रखना । प्रधान जी इससे समस्या को मैं भली भांति जानता हूँ इस के लिऐ तो मैं इस थानें में आया ।


मैं थाने में जा रहा था की अचानक मुझे सचिन दिख गया मैं वह पर रूका और कहा सचिन कैसे यार तेरी याद ने मुझे बहुत तड़पाया है तेरी राह तो मैं कुछ सालों से देख रहा हूँ और कैसी चल रहीं है तेरी नौकरी ? 


सचिन:- यार नौकरी तो सब अच्छी चल रही है और तुम बताओं दरोगा जी अब तो दरोगा बन गऐ हो यार तुमनें गाँव का नाम रोशन कर दिया है और सुना क्या क्या चल रहा तेरा । यार सचिन क्या बताना है रमेश चाचा वाल केस खोल रहा हूँ शायद कोई राह निकल आऐ ?


 सचिन :- यार बिलकुल इस केस को खोलना ऐसी ही घटना शहर में एक कंपनी में हुई थी तो कंपनी नें पूरी तरह से सहायता की थी वह भी कंपनी निजी थी ।


यार सचिन तुमनें तों इस केस को मजबूत कर दिया है अब कंपनी सहायता भी करेगी और यह से बाहर भी जाऐगी ।


मैं थानें में पहुँचा और कुछ पुलिस लेकर क़पनी गया ।


प्रणाय यादव जी कैसा चल रहा है धन्धा ।


यादव जी :- धन्धा तो अच्छा चल रहा है दरोगा जी कहे कैसे आना हुआ।


बस क्या बताऐ यादव जी आप तो बात मानते नहीं है तो हमें यहीं आना पडा़ रमेश के परिवार को आर्थिक 


दे दीजिऐ अन्थथा यह से जाने को तैयार रहे।


यादव जी कहने लगे दरोगा जी कंपनी निजी है इसका कोई फंड नहीं होता है फिर हम उसके परिवार की कैसे सहायता करे। यह सुनकर मुझे यादव पर क्रोध आने लगा क्योंकि उसने पहले भी ऐसे ही बहाने बनाऐ थे मैनें यादव से कहा यादव ज्यादा बहाने मत बना निजी है तो क्या हुआ सहायता तो कर सकते हो फंड क्या तुम्हारी कंपनी कंपनी का नहीं है यह सभी कंपनी का नहीं है यादव शहर की कंपनी का भी तो अपना फंड है अब तुम सहायता कर रहे हो या फिर थाने चल रहे हो यादव को क्रोध आ रहा है परंतु वह कर भी क्या सकता था उसने मेरे हाथ में चैक थमा दिया और कहा आप उन्हें दे दे । मैनें यादव को धन्यवाद दिया और कहा यादव यह काम पहले कर देता तो आज यह दिन ना देखना पड़ता चलता हूँ यादव जी ।


मैं खुशी के साथ रमेश चाचा के घर गया और चाचा को चैक दे दिया कहा चाची ये चाचा के ही पैसे है आप इन्हें रख दीजिऐ और श्याम को अच्छे स्कूल में दाखिला करवा दे पढ़- लिखकर नौकरी लगेगा और चाचा की तरह मजदूरी नहीं करेगा ।


चाची ने मुझे धन्यवाद दिया कहा बेटा तुम हमेशा खुश रहों और जल्द ही तुम्हें अच्छी बहु मिलें मैं वह से चला दिया और घर पहुँचते ही देखा की घर में प्रधान जी आऐ हुऐ है मैंनें प्रधान जी को प्रणाम किया और कहा प्रधान जी कैसे आना हुआ मेरे लिऐ कोई सेवा हो तो कहे प्रधान जी ने कहा बेटा एक और काम तुम्हें करना है। मैंने प्रधान जी से कहा कहे प्रधान जी कैसा काम है । प्रधान जी ने कहा बेटा कंपनी के आनें से हमारे गाँव में प्रदूषण हो रहा है जिसके कारण से गाँव के लोग बीमार हो रहे है और गाँव के सभी जल स्त्रोत सूख गऐ


और बेटा सुनने में आया है कि यह कंपनी कुछ हानिकारक रसायन यह पर बना रही है गाँव के काम करने वाले लोग कह रहे थे की उन्हें वह पर नहीं जाने दिया जाता है जहाँ रसायन बन रहा है तो उन्होनें कंपनी के कुछ बाहरी लोगों से पूछा तो पता चला की यह तो बिसलेरी की जगह हानिकारक रसायन बन रहा है । मैंनें इस बातों को ध्यान से सुनने के बाद प्रधान जी से कहा प्रधान जी आप कलेक्टर से जाँच का आदेश लाऐ में स्वयं इस केस को देखूगा ऐसा हुआ तो कंपनी का यह से जाना तय है। प्रधान जी ने कहा बेटा मैं कुछ लोगों के साथ कलेक्टर के पास जाता हूँ और आदेश लाता हूँ अब कंपनी को यह से जाना ही होगा ।


प्रधान जी कुछ लोगों के साथ कलेक्टर से जाँच का आदेश ले आऐ बस अब क्या था मैंनें कुछ पुलिस के लोग और जाँच करने वाले कुछ विशेषज्ञ लेकर वह पहुँच गया कंपनी के लोग पुलिस को देखकर डर गऐ और यादव जी को बता दिया यादव जी कहने लगे अरे दरोगा जी क्या हुआ ? तो मैंने जाँच का आदेश दिखाया और यादव जी को मानों की जैसा करंट लग गया हो और एकदम गुस्से में कहने लगे ये सब गाँववालों की रची हुई साजिस है यह कुछ नहीं है यह तो सिर्फ बिसलेरी का पानी बनता है आपको कोई गलत सूचना मिली हो । तो मैंने कहा अरे यादव जी जब ऐसा ही तो घबराऐ मत दूध का दूध पानी का पानी हो जाऐगा। यादव जी सिर पकड़कर बैठ गऐ और जाँच देखते रहे विशेषज्ञों ने जब जाँच की तो पता चला की यह पर हानिकारक दवाई बनाई जा रही है जो गाँव के लोगों को बडी़ खतरनाक बीमरी के मुँह में ले जा रही है इससे दमा, खाँसी , त्वचा रोग और तो और यह प्रकृति को भी कॉफी नुकसान पहुँचाती है यह सुनते ही मेरी टीतशम के लोगों ने कंपनी को सील कर दिया और यादव जी को थाने ले गई ।


विशेषज्ञ टीम ने कलेक्टर को अपनी रिपोर्ट दिखाई तो कलेक्टर ने कंपनी को हटने और कंपनी पर जुर्माना लगा दिया था यादव जी को अगली सुनवाई तक जेल में बंद कर दिया गया। यादव जी पैसे वाले थे उन्होंने शहर के प्रसिध्द वकील को अपना केस दिया और अब यादव जी कोर्ट आऐ और वकील ने जज साहब को यादव जी की फाइल दिखाई और कहा जज साहब यह जमींन यादव जी के नाम है ये इस जमीन पर कुछ भी कार्य कर सकते है और जो दवाईयाँ यहाँ बन रही है वों तो हानिकारक नहीं है बल्कि सेवन के लिऐ बेहतर है तभी जाँच की टीम ने अपनी रिपोर्ट दिखाई तो जज साहब को सच पूर्णतः दिख गया और उन्होनें यादव जी  पर भारी जुर्माना और कंपनी को गाँव से जाने का निर्णाय लिया बस अब यादव जी कंपनी को यह से हटाकर कहीं दूसरी जगह स्थापित कर दिया था । अब गाँव में खुशी की लहर तो दौडी़ परंतु कुछ गाँव के लोग बेरोजगार भी हो गऐ थे पर लोगों में बेरोजगारी का दुख कम और हटने की खुशी अधिक दिख रही थी प्रधान जी मेरे पास आकर कहने लगे बेटा तुमनें आज गाँव को इस अनहोनी को होने से बचाया है बेटा कुछ दिन बाद कलेक्टर साहब उसी जगह पर स्कूल खोल रहे है तो बेटा तुम इस स्कूल का शुभ आंरभअपने हाथों से करना है तो मैनें प्रधान जी से कहा प्रधान जी यह तो आप सब की कामयाबी है जो इस काम को पूर्ण कर सकी प्रधान जी एक विनती है आप इसका शुभ आंरभ रमेश चाचा की पत्नी करें तो यह बहुत ही अच्छा होगा । प्रधान जी ने कहा है बेटा तुमने सही कहा की इसका शुभ आंरभ उन्हीं के हाथों से होगा।।



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