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Dr.K.R. Suryawanshi

Children Stories

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Dr.K.R. Suryawanshi

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उसकी चिट्ठियां

उसकी चिट्ठियां

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 बात पिछले रविवार की छुट्टी की है । मैंने सोचा चलो आज बिखरी किताबों को ठीक कर लूं ,मैंने जब कुछ किताबों को ठीक कर पन्नों पढ़ते पढ़ते पलटा तो मुझे मेरी उस मित्र की चिट्ठियां मिली जो हमेशा कॉलेज में शांत रहा करती थी। ये चिट्ठियां उन दिनों की है जब मेरी स्नातक की पढ़ाई के बाद मेरी शिक्षा विभाग में मेरी नौकरी लग गई और मैं अपने सारे मित्रों को छोड़कर नौकरी करने चला गया। ये चिट्ठियां मुझे मेरी उस मित्र ने भेजी थी जो मेरी स्थिति को देखकर मेरी फीस की देरी होने पर कभी मेरी फीस जमा कर देती थी, और धीरे कह देती थी चिंता मत कर तेरी फीस मैंने अपनी पॉकेट मनी से जमा करवा दी हैं। पर लूंगी ज़रूर, जब मैं उसका बार बार धन्यवाद करता था तो डाट भी देती थी। मैं उसको कभी समझ ही नहीं पाया क्यों की किसी से प्यार करना मेरे लिए बहुत कठिन था। क्यों कि मुझे अपनी ज़मीन (औकात) पता थी ।

मैं मन ही मन तो उसको बहुत चाहता था। बस कह नहीं सकता था। जब वह सामने आती थी, तो मैं पढ़ने व नोट्स बनाने लग जाता। बस सारा दिन हमारा पढ़ाई पर ही चर्चा करते हुए समय बीत जाया करता था। आज बज उसकी चिट्ठियां मुझे मिली तो मुझे आज भी उसका भोलापन और बात बात पे ये कहना की तुम चिंता मत करो सब ठीक होगा और मेरा उसके सामने सिर को हिला देना। मैंने आज उसकी इन चिट्ठियों को दो दो बार पढ़ा ।आज यही सोचता हूं ऐसा कोई किसी से इतना प्यार करता है, पर पवित्र प्रेम के कारण एक दूसरे की मर्यादा के लिए उम्रभर एक दूसरे को मन ही मन प्रेम करता है, और सच ये पहला अनछुआ प्यार कभी नहीं भूल सकते, आज जब हम अपने अपने परिवार के साथ खुश हैं। पर जब भी एक दूसरे के परिवार में चाहे खुशी हो या गम हम आज भी एक दूसरे के परिवार के साथ हर परिस्थिति में एक दूसरे के साथ खड़े रहते हैं। और में जब भी उसकी याद आती है चिट्ठियां पढ़ लेता हूं, शायद इसी का नाम पवित्र प्रेम। और हम दोनों ने इस पवित्र प्रेम को आज भी इन चिट्ठियों संभाल कर रखा है।.....



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