उफ़ ये नज़र...

उफ़ ये नज़र...

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रश्मि के पास भगवान का दिया सब कुछ था। कुछ नहीं था तो बस धैर्य। बात बात पर रश्मि नर्वस हो जाती। किसी भी काम में अड़चन आयी नहीं, कि रश्मि बेसब्री से भगवान का जाप करने लगती । पति अनिल भी उसकी इस आदत से परेशान था । जब नयी नयी शादी हुई थी तो रश्मि की इस आदत से बुरी तरह बौखला गया था । पर धीरे धीरे उसने अपनी पत्नी कि इस अटपटी आदत को स्वीकार कर लिया था। 

 ज़िन्दगी ऐसे ही ठीक ठाक चलती रहती - रश्मि की जाप करने में और अनिल की उसकी आदत को नज़रंदाज़ करने में। पर जिस दिन से दोनों की जान पे बन आयी,उस दिन से इस क्यूट कपल  की एक नयी कहानी शुरू हो गयी। 


हुआ यूँ कि अनिल को ऑफिस से आते हुए एक बाइक वाले ने टक्कर मार दी । हालाँकि गलती अनिल की ही थी । वो मोबाइल में इतना मसरूफ था की सामने से आती बाइक उसे दिखी ही नहीं । चोट बहुत मामूली सी थी और डॉक्टर ने मरहम पट्टी के बाद अनिल को घर वापिस भेज दिया था। पर अपनी रश्मि मैडम को ये कौन समझाए? पति परमेश्वर के सर पर पट्टी देखी नहीं कि मोटे  मोटे आंसू बहाते मंदिर के आगे लमलेट हो गयी। 

"गलती मेरी ही है। इस बार बुखार की वजह से सोमवार का व्रत नहीं कर पायी थी ना। देखो, भगवान ने सज़ा दे दी।" ऐसा कहते ही दहाड़े मार मार के रोने लगी। अनिल का सर चकराने लगा।।।चोट से नहीं, रश्मि के अटपटे बर्ताव से। 

"रश्मि, ऐसा कुछ नहीं है। देखो मैं बिलकुल ठीक हूँ यार। डॉक्टर ने भी कहा है की एक दो दिन में ज़ख्म भर जायेंगे।ईट्स आल राइट।"

"आप कुछ नहीं समझते हैं। कैसे कैसे लोग हैं इस दुनिया में! अभी पिछले हफ्ते ही प्रमोशन मिला है न आपको? पक्का किसी ने कोई मंत्र फूक दिया है। वो तो अच्छा हुआ आपको ज़्यादा नहीं लगी। पर अगर मैंने अभी कुछ नहीं किया तो ये भारी पड़ सकता है। मैं कल ही पंडित जी से आपकी कुंडली चेक करवाती हूँ।" 

अनिल ने भरपूर कोशिश की अपनी अर्धांगिनी को समझाने की। पर रश्मि कि ज़िद्द के आगे उसकी चलती क्या भला? 


अगली सुबह अनिल कि नींद कुछ देर से खुली। उठते ही वो सकपका गया। लाल साड़ी पहने रश्मि उसके सर पर एक पोटली सी घुमा रही थी। साथ ही आँखें बंद कर कुछ बुदबुदा भी रही थी। 

अनिल लगभग चिल्लाते हुए बोला, "क्या कर रही हो तुम?"

पर रश्मि को तो मानो कोई फर्क ही ना पड़े। वो चुपचाप कमरे के बाहर निकल गयी। 

कुछ १५ मिनट बाद वापस आयी। अनिल अभी भी बिस्तर पर था और उसी तरह से भौंचक्का दिख रहा था। इससे पहले कि पतिदेव कोई सवाल दागे, रश्मि ने बिना ब्रेक कि गाड़ी की तरह सफाई देना शुरू कर दिया। 

"अरे, कल ही तो बताया था, कि आपकी नज़र उतारने का इंतज़ाम करना है। आज सुबह पांच बजे से उठी हूँ। पहले मंदिर में पंडित जी को कुंडली दिखाई।शनि भारी है आपका। पैरों तले ज़मीन खिसक गयी थी मेरी। वो तो भला हो पंडित जी का जो तुरंत उपाय भी बता दिया। बस वही नज़र का खात्मा करने गयी थी। बोल नहीं सकती थी ना। वरना वो उपाय काम नहीं करता।सॉरी।


अनिल ने बस एक गहरी सांस भरी और धीरे से बोला, "एक कप चाय मिलेगी?"

रश्मि बच्चों कि तरह चहक कर बोली, "अरे! क्यों नहीं। अभी लाती हूँ। और फिर आप जल्दी से फ्रेश हो जाईये। अभी आपको एक दवा भी खानी है।" 

"कैसी दवा? डॉक्टर ने कोई दवा नहीं दी? बस पेनकिलर दी थी। पर अब मुझे कोई दर्द नहीं है।" अनिल चहका। 

रश्मि बिदकते हुए बोली, "मैं उस दवा की बात नहीं कर रही हूँ। पंडित जी ने किसी सिद्ध बाबा से बात कर ये दवा मंगाई है। यूँ कह लीजिये आपकी अच्छी सेहत और लम्बी उम्र की खुराक है ये।


नाश्ते के समय जब रश्मि ने पहली पुड़िया खोली, तो अनिल के मुँह से चीख निकल गयी। 

"ये? ये तो मिटटी है! तुम्हारा दिमाग तो ठीक है?"

"क्या आप भी! कुछ भी कहते हैं। बहुत सिद्ध बाबा की भभूत है ये। बुरे से बुरे दोष ठीक कर दिए हैं। बस एक दिन की तो बात है। आप मेरे लिए इतना भी नहीं करेंगे?" रश्मि की भोली आँखों को देख, अनिल ने बहस ना करना ही ठीक समझा और चुपचाप वो लाल पाउडर पानी के साथ गटक लिया। 

रश्मि की खाली प्लेट की ओर देखते हुआ बोला, "अब तुम नाश्ता तो कर लो।" 

"नहीं। आज मेरा निर्जला उपवास है। ये मंत्र तभी फलीभूत होगा।" कहते हुए रश्मि किचन की ओर चल दी। 

इससे पहले की कोई और बम फूटे, अनिल तेज़ी से ऑफिस को खिसक लिया।


शाम होते होते अनिल की हालत थोड़ी खराब सी होने लगी। पेट में दर्द और थोड़ी बेचैनी महसूस हुई तो उसे लगा शायद चोट का असर और दवाई का साइड इफ़ेक्ट हो। पर ६ बजते बजते तो उसने अपना पेट पकड़ लिया। दर्द के मारे चीख निकल गयी। वो तो भला हो उसके कलीग राजेश का, जिसने बिना कोई देरी किये, अनिल को तुरंत अपनी गाड़ी में बिठाया और अस्पताल पहुंचा दिया। रास्ते में दो तीन बार उल्टियां भी हो गयीं। राजेश अनिल को सीधे इमरजेंसी में ही लेकर गया। 

डॉक्टर ने ब्लड टेस्ट और सोनोग्राफी की सलाह दी। इस बीच अनिल ने कितनी बार राजेश से कहकर रश्मि को खबर करने के लिए कहा, पर उसका फ़ोन लगातार बन्द ही आ रहा था। करीबन डेढ़ घंटे बाद, सभी टेस्ट्स की रिपोर्ट देख, डॉक्टर साहब अनिल के पास आये। 


"हाँ जी कहिये, कल किस ठेले से छोले भठूरे खाये थे?"


डॉक्टर के इस बेतुके सवाल से अनिल चिढ गया। डॉक्टर तुरंत बोले।


"फ़ूड पॉइज़निंग हो गयी है। बहुत ज़्यादा इन्फेक्शन लग रहा है। वो तो अच्छा हुआ की आप टाइम पर यहाँ आ गए वरना डिहाइड्रेशन का खतरा था।"


फिर कुछ रुक कर, एक ताना भी कास दिया।"इतने पढ़े लिखे लोग होकर भी, आप लोग बिलकुल बेसिक हाइजीन फॉलो नहीं करते हैं।"


कुछ एक घंटे बाद, इंजेक्शन और ड्रिप ट्रीटमेंट से अनिल को बेहतर लगने लगा। उसने राजेश से अपना फ़ोन माँगा और तुरंत रश्मि का नंबर डायल किया। मैडम का फ़ोन अभी भी बंद था। 

अनिल को अब गुस्सा आने लगा। "बहुत केयरलेस हो गयी है रश्मि। ऐसे कोई अपना फ़ोन बंद रखता है?" मन ही मन बुदबुदाने लगा। 

अभी पूरी तरह से अपनी धर्मपत्नी पर गुस्सा भी नहीं कर पाया थी, बगल के बेड से एक जानी पहचानी से आवाज़ सुनाई दी। 

"थोड़ा जूस पी लो, अच्छा लगेगा। क्या हालत बना ली है अपनी!"

गर्दन उचकाकर परदे के पार देखने की कोशिश की तो अनिल भौंचक्का रह गया।

"ये तो माँ हैं! यहाँ कैसे?" अनिल बेड से उछलकर, दूसरी साइड जा पहुंचा। 

पर्दा हटाया, तो डबल सरप्राइज। रश्मि बदहवास सी बेड पर बैठी थी। अनिल को देखा तो नज़रें चुराने लगी। 


ज़्यादा सवाल पूछने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। माँ ने एक सांस में सब कुछ कह डाला। 


"अरे वो तो मैं टाइम पर पहुँच गयी। सोचा तुम्हें सरप्राइज दे दूँ। पर मुझे क्या पता था की मेरे लिए इतना बड़ा सरप्राइज इंतज़ार कर रहा है। घर पहुंची नहीं कि देखा बहू तो बेहोश ही होने को है। चेहरा बिलकुल पीला पड़ गया था। मैंने पानी दिया तो वो भी पीने को तैयार नहीं। कुछ समझ नहीं आया तो बस एम्बुलेंस बुला ली। दो घंटे ग्लूकोस चढ़ा है, तो अब बैठ पा रही है।"


फिर गुस्सा करते हुए बोली, "क्या अनिल, तू इसका ध्यान नहीं रख सकता? देख तो, ऐसा लगता है कि कितने दिनों से ठीक से खाया पिया नहीं है बहू ने।"

अनिल ने तिरछी नज़रों से रश्मि को देखा, तो रश्मि जूस पीने का दिखावा करने लगी। 

एक मिनट के सन्नाटे के बाद माँ फिर बोली, "पर बहू, तेरी इतनी तबियत खराब थी, तो मंदिर में क्यों बैठी थी? और वो भी दोपहर के तीन बजे?"

अब रश्मि को काटो तो खून नहीं। माँ भले ही ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी, पर अन्धविश्वास से उन्हें सख्त नफरत थी। उसे कुछ जवाब ही नहीं सूझ रहा था। 


पत्नीप्रेम में अनिल से ही मोर्चा संभाला, "अरे माँ, वो मैंने ही उसे फ़ोन किया था। वो अगले हफ्ते नवरात्री शुरू हो रही है न। तो कुछ पूजा सामग्री लानी थी। मंदिर में चेक कर रही होगी शायद। है ना रश्मि?" अनिल ने बड़े ही प्यार से पूछा। 


रश्मि शर्म के मारे डूबी जा रही थी। उसे शायद अपनी गलती के एहसास हो रहा था। पर अभी तक उसे ये नहीं पता था कि उसकी मासूम गलती ने पतिदेव को भी चपेटे में ले लिया था। 

माँ का अगला सवाल आने कि देर थी, कि ये रहस्य भी खुल गया।

"पर तू यहां कैसे अनिल? तुझे तो मैं हड़बड़ी में फ़ोन करना ही भूल गयी।" 

माँ का जवाब, नर्स कुछ सेकेंड ले आयी। 


"मिस्टर अनिल, ये लीजिये आपकी रिपोर्ट। और ये दवाईआं अगले पांच दिन तक लेनी हैं। मेडिकल काउंटर से खरीद लीजियेगा। एक महीने तक बाहर का कुछ नहीं खाना है। तभी इन्फेक्शन ठीक होगा।" फाइल थमाकर नर्स आगे चल दी।

अब तो रश्मि कि हालत देखने लायक थी। बस सासू माँ के डर से चुचाप बैठी थी। गिलास में जूस अभी भी वैसा ही था। 

तभी राजेश आ गया। अनिल ने सारा वाकया बताया तो बोला।

"भाभीजी मुझे तो लगता हैं आपके परिवार पर कोई भारी नज़र लग गयी है। तुरंत उपाय कर लो। मैं एक अच्छे पंडित को जानता हूँ। कहो तो अनिल को फ़ोन नंबर भेज दूंगा।"

जहाँ माँ की भोहें तन गयी, वही रश्मि का मुँह छोटा हो गया। इतनी तकलीफ में भी अनिल धीरे से मुस्कुरा दिया। 







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