स्वतंत्रता! स्वतंत्रता!
स्वतंत्रता! स्वतंत्रता!
एक रात एक पहाड़ी सराय में मुझे ठहरने का मौका मिला था। उस रात एक बड़ी अजीब घटना घट गई थी। वह घटना रोज ही याद आ जाती है, क्योंकि रोज ही उस घटना से मिलते-जुलते लोगों के दर्शन हो जाते हैं। उस रात उस पहाड़ी सराय में जाते ही पहाड़ी की पूरी घाटी में एक बड़ी मार्मिक आवाज सुनाई पड़ी थी। कोई बहुत ही दर्द भरे स्वरों में कुछ पुकार रहा था। लेकिन निकट जाकर मालूम पड़ा कि वह कोई आदमी न था, वह सराय के मालिक का तोता था। वह तोता अपने सींखचों में बंद था, अपने पिंजड़े में, और जोर से स्वतंत्रता! स्वतंत्रता! चिल्ला रहा था। उसकी आवाज में बड़ा दर्द था, जैसे वह हृदय से आ रही हो। जैसे उसके प्राण स्वतंत्रता के लिए प्यासे हों, और उस पिंजरे में बंद उसकी आत्मा जैसे छटपटाती हो मुक्त हो जाने को। उस तोते की उस आवाज में मुझे दिखाई पड़ा जैसे हर आदमी के भीतर कोई बंद है, पिंजरे में, और मुक्ति के लिए प्यासा है और चिल्ला रहा है। उस तोते से बड़ी सहानुभूति मालूम हुई, लेकिन सुबह ही मुझे पता चला कि बड़ी गलती हो गई। वह तोता चिल्लाता रहा। मालिक सराय का सो गया, और सराय के दूसरे मेहमान भी सो गए, तो मैं उठा, उस तोते के पिंजरे को खोला और उस तोते को मुक्त करना चाहा। मैं उस तोते को बाहर खींचता था और तोता भीतर सींखचों को पकड़ता था और चिल्लाता था,
स्वतंत्रता! स्वतंत्रता!
