सरनेम
सरनेम
टाइम रिपीट हिम्सेल्फ़ ऑर सरनेम..समझ नहीं आता अपनी इस कहानी को क्या नाम दूँ..
क्योंकि आज अनायास ही बीस साल पुरानी यादें ज़हन में ताज़ा हो गई.जिस चीज के लिए उन दिनों धक्के खाए थे वक़्त ने आज बीस साल बाद फिर उन्ही सड़को और उसी नौकरशाही पर लाकर खड़ा कर दिया, तो बात उन दिनों की है जब हम १०+२ की पढ़ाई कर रहे थे पढ़ाई के लिए टाइम नहीं होता था बाकी हर चीज की फुर्सत ही फुर्सत होती थी।
तो इसी फुर्सत में एक दोस्त ने सलाह दी की यहाँ भारत में तो भविष्य है नहीं तो क्यों ना बहार का चक्कर चलाया जाये बस फिर क्या था हम ठेरे उस ज़माने के अमित शाह लगे रणनीति बनाने हमारे एक दोस्त के जीजा जी उन दिनों सऊदी अरेबिया में रहते थे तो कुछ यू निरधारित हुआ की हम दो दोस्तों ने कार मैकेनिक का कम सीखना शुरू कर दिया और लगे हाथों पासपोर्ट के लिए भी आवदेन कर दिया चुकीं हमारे पास वक़्त की कोई कमी नहीं थी इस लिए इस प्रक्रिया में किसी दलाल की सहायता नहीं ली गई सिवाय एक फार्म भरने की जिसके लिए उसने कोई दस या बीस रुपये लिए होंगे ठीक से याद नहीं, ठीक इसी बीच एक बात पता चली की अरेबिया देशो में काम करने के लिए जाने के इच्छुक व्यक्ति की न्यूनतम आयु इक्कीस वर्ष होनी चाहिए और हम ठेरे 1993 बैच के मेट्रिक पास जिसके हिसाब से अभी हम बीस के ठेरे तो हमने आयु के नाम पर मेट्रिक पास का सर्टिफिकेट ना लगाकर कोर्ट का शपथपत्र लगा दिया जिससे आयु बढ़ाकर पेश की गई और फार्म जमा करा दिया गया फार्म ज़मा करने की तारीख 23 अगस्त 1996 चुकि चीजो को यादगार के तोर पर रखने की आदत की वजह से वो रसीद आज तक सुरक्षित है।
और फिर शुरू हुआ हमारे पासपोर्ट ऑफिस चक्कर लगाने का सिलसिला जो की उस वक़्त भीकाजी कामा पैलेस में था और आज भी है और इस तरह हम फरीदाबाद से आर के पुरम के चक्कर लगाते रहे की पासपोर्ट क्यों नहीं बना, जैसे की हम पहले ही बता चुके है समय की हमारे पास कोई कमी नहीं थी चुकि हमारा कोई आपराधिक रिकोर्ड तो था नहीं इस लिए पुलिस वेरीफिकेशन भी आसानी से हो गई नाम मात्र के सुविधा शुल्क में आपराधिक रिकॉर्ड वाली बात सिर्फ हमारा मुगालता है ऐसा मेरा मानना है क्योकि बड़े बड़े अपराधी हमने विदेश भागते देखे है अब पता नहीं वो पासपोर्ट के साथ जाते है या फिर बगेर पासपोर्ट. चलो बहरहाल वापिस पासपोर्ट ऑफिस आते है तो हमारे लगाये हुए चक्करो का ये निष्कर्ष निकला की पासपोर्ट अधिकारी की तरफ से हमे ये बताया गया की उम्र के नाम पर कोर्ट का लगाया हुआ तुम्हारा कागज रद्दी है और उम्र का कोई दूसरा प्रमाण लाओ और इस तरफ घर वापसी हुई सोच में पड़े रहे की क्या करे मेट्रिक का सर्टिफिकेट तो दे नहीं सकते थे क्योंकि उसके हिसाब से उम्र कम थी बहार जाकर काम करने की. लगे रणनीति बनाने और निर्धारित किया की अधिकारी के पास जायेंगे और उम्र का कोई भी प्रमाण मौजूद ना होने की बात कहेंगे.आज जो लोगो से बात करने में झिझक महसूस होती है उस वक़्त नहीं होती थी बीस साल का नौजवान उमंग और उत्साह से लबरेज और जा पहुचे अधिकारी के पास गुहार लगाई की माई बाप मात्र तीसरी पास है कहा से लाये उम्र का प्रमाण पत्र उन दिनों जन्म प्रमाण पत्र बनाने का चलन भी नहीं था और वो हमारे पास था भी नहीं, अधिकारी ने हमे उपर से नीचे तक गौर से देखा और व्यंग्यात्मक लहजे में बोले अच्छा तो तुम तीसरी पास हो एक काम करो तीसरी पास का प्रमाणपत्र ले आओ दिमाग में तुरंत जगजीत सिंह की गई गजल घूम गई ‘चंगा होंदा सवाल ना करदा, मेनु तेरा जवाब ले बैठा ’’और इस तरह अधिकारी की नई चुनौती का बोझा लिए हम घर वापिस चले आये सोच विचार में दिन गुजरते गए और इस बीच पता चला की वीसा आने में अभी कुछ दिन और है तो पासपोर्ट जल्दी पाने की इच्छा भी दिल से जाती रही।
समय गुजरने के साथ साथ उम्र बीस से इक्कीस हो गई और महसूस हुआ की अरे अब तो हम खाड़ी देशों के हिसाब से भी बालिग हो गए है और अब मेट्रिक का सर्टिफिकेट देने मे भी कोई दिक्कत नहीं है तो अपने तीन सौ रुपये की फीस वसूलने चल दिए पासपोर्ट ऑफिस असली मेट्रिक का सर्टिफिकेट लेकर दिमाग में सवाल आया अधिकारी को क्या जवाब देंगे उसने तो तीसरी पास का सर्टिफिकेट माँगा था और हम छह महीने में ही मेट्रिक कर के लोटे है, नकारात्मक विचारो की तरफ उस जमाने में दिमाग जाता ही न था ‘’कहा ना उमंग और उत्साह से लबरेज नौजवान’’ अधिकारी के पास पहुचे और टेबल पर प्रमाणपत्र की प्रतिलिपि इस तरह रखी मानो PMO से लेटर लिखवा कर लाये हो,अधिकारी ने पुनः एक बार उपर से नीचे देखा और कहा ये कहा से लाये हो हमने भी जवाब में मूल प्रति टेबल पर रख दी बहरहाल अधिकारी का रवेया उस दिन काफी सोहार्दपूर्ण था उसने बड़े नरम लहजे में कहा क्या तुम्हें मालूम है गलत जानकारी देने के एवज में तुम्हारे उपर चार सौ बीसी की धारा लग सकती है, भारतीय दंड विधान की धारा चार सौ बीस का मतलब उस दिन पहली बार समझ में आया, अधिकारी से अंतिम मुलाकात में पता चला वो कोई रावत महासय थे सो हमने भी पहाड़ी कार्ड खेलकर किसी तरफ अपनी जान बचाई और इस तरफ ठीक एक साल चार महीने बाद पासपोर्ट हमारे घर पर इस तरफ पहुंचा मानो सऊदी अरब का टिकट पहुंचा हो।
और इस तरफ बीस साल गुजर गए कितनी आसानी से लिखा जाता है बीस साल गुजर गये इन बीस सालो में एक बीस साल का युवा चालीस साल का हो गया शादी हो गई दो बच्चे हो गये और भी बहुत कुछ उमंग और उत्साह से लबरेज नौजवान अब दुनियादारी के रस्ते पर आ गया उमंग भाग गया और उत्साह कही लापता हो गया बीच बीच में मिलते थे कभी कभी, तो बहरहाल इन बीस सालो में वो पासपोर्ट कही काम नहीं आया सिवाय एक दो जगह अपनी आई डी के तौर पर लगाने के अलवा सिर्फ एक जगह बड़ी उच्च किस्म की अनुभूति हुई थी जब कई साल पहले बैंक में खाता खुलवाते समय जब अधिकारी ने पहचान के लिए राशन कार्ड माँगा तो हमने कहा नहीं है और पासपोर्ट की प्रतिलिपि आगे कर दी पासपोर्ट का वजूद ही इतना बड़ा था की उसके बाद उसने और कोई कागज नहीं माँगा और खाता खोल दिया तो इस तरफ सन 1997 में बनाया हुआ पासपोर्ट 2007 के आते आते खत्म हो गया बगेर अपने माथे पर किसी देश या एअरपोर्ट का दाग लिए हुए एकदम सच्च्चरित्र साफ़ सुथरा बर्फ की तरफ सफ़ेद वर्ण लिए हुए इन दस सालो में कही जाना तो हुआ नहीं इसलिए मोहभंग हो गया पासपोर्ट से जिस काम के लिए बनाया था वो सफल नहीं हो सका वो भी एक छोटी सी कहानी है फिर कभी सुनायेगे तो साल बीतते गए और 2010 तक आतरेन की तारीख भी निकल गई पासपोर्ट खत्म होने के बाद आप उसे तीन साल तक रेनुवल करा सकते हो तो हमने वो भी गँवा दी या कहीये जाने दी जब अति जरुरत होगी तो बनवा लेंगे तत्काल में, 15 जून 2017 इंटरनेट पर बैठे बैठे पता नहीं क्या सूझा की ऑनलाइन फार्म भर दिया इन बीस सालों में अगर कुछ बदला था तो ये की फार्म भरने की प्रक्रिया ऑनलाइन हो गई थी पासपोर्ट ऑफिस की एक शाखा फरीदाबाद में भी खुल गई थी उसे शाखा कहना ठीक नहीं रहेगा लेकिन इस समय मेरे पास उसके लिए कोई दूसरा उपयुक्त शब्द नहीं है अत शाखा ही बोल देते है किस लिए ? इसलिए की उसका वर्णन आगे करेंगे तो ऑनलाइन फार्म भरने के बाद इंटरव्यू की तारीख मिली 4 सितम्बर 2017 तारीख बड़ी दूर थी लेकिन हमे भी कौन सा जल्दी थी इस बार का मकसद तो सैर सपाटा ही थी वो भी मोदी जी की नीतियों के कारण कई देशों के साथ वीसा ओन अरिवएल की संधि हो चुकि थी बस टिकट कटवाओ उस देश में पहुचो और एअरपोर्ट पर उतरते ही वीसा की डीमांड कर दो भाई तुम्हारे देश में घूमने आये है डालर में खर्च करेंगे भला उस देश को क्या ऐतराज हो सकता है ऐसा मेरा मानना है हालाँकि विदेश जाने का अभी मेरा कोई अनुभव नहीं है अपने देश से बहार घूमने के नाम पर अभी तक नेपाल की यात्रा ही कर पाया हूँ बगैर किसी पासपोर्ट और वीसा के हालाँकि में उसे अपनी विदेश यात्रा ही मानता हूँ जब तक पासपोर्ट पर किसी देश का ठप्पा ना लग जाये तो इस तरहे 4 सितम्बर 2017 को हम फरीदाबाद में नए नए खुले पासपोर्ट कार्यलय जा पहुचे जाहिर है साफ़ सुथरी कमीज और नहा धोकर, रसीद में मिलने का समय था दोपहर 2.45 का और निर्धरित समय से 15 मिनट पहले पहुँचना था दरअसल जिसे इंटरव्यू बोला जाता है वो इंटरव्यू ना होकर आपके द्वारा लगाई गई प्रतिलिपि की मूल प्रतिलिपि देखने और जाँचने का ही दिन होता है इसके बाद आपकी फाइल को पूरा मानकर जमा कर लिया जाता है लेकिन कसम से इंटरव्यू वाली फिलिंग आती है भले ही आपको नौकरी ना मिले मिलेगा तो सिर्फ पासपोर्ट तो वहाँ पहुचते ही नज़र आया बड़ा सा हाल एक तरफ कैमरा लेकर बैठा एक नौजवान लड़का और दूसरे कर्मचारी को पहचानने में थोड़ी देर लगी हमे उसके पास ही जाना था उस बड़े से हाल के अंदर ही एक बड़ा सा दरवाजा था अनुमान लगाया साहब का दफ्तर होगा तो इस तरह मात्र दो या तीन आदमियों का स्टाफ होगा तीसरे से वास्ता नहीं पड़ा इसलिए मालूम नहीं था भी या नहीं तो जब कैमरे वाले ने हमे दूसरे के पास भेजा जो दिखने में नेपाली या फिर गड्वाली लग रहा था चुकि खुद एक गड्वाली होने के नाते अक्सर सरकारी ऑफिसो में किसी गड्वाली की तलाश रहती है कई बार आपका काम हो भी जाता है और कई बार देर सवेर तक होता है अंतत हो ही जाता है तो जब हम उनके पास पहुचे तो वो कुछ पहले से ही भुनभुनाये बैठे थे सारे कागज देखने के बाद घोषणा की कि पासपोर्ट कैलाश चंद बहुगुणा के नाम से नहीं बनेगा अगर बनेगा तो कैलाश चंद और अगर बनवाना है तो फिर किन्ही दो समाचार पत्रों में ऐड दो की मैं ही कैलाश चंद बहुगुणा हूँ चुकि मेरे मेट्रिक के सर्टिफिकेट में नाम कैलाश चंद ही था और इस बीच सरकार के द्वारा समय समय पर जारी होने वाले पहचान पत्रों में मैंने अपना नाम कैलाश चंद बहुगुणा लिखवाया था जैसे की पैनकार्ड, आधारकार्ड बैंक पास‘’परम आनंद मिलता था नाम के पीछे अपना सरनेम बहुगुणा लगाने में एक अजीब सी अनुभूति होती थी जैसे की हेमवंती नंदन बहुगुणा, विजय बहुगुणा, रीता जोशी बहुगुणा हालाँकि में अपनी तुलना इनसे नहीं कर रहा हूँ सिर्फ ये बताना चाह रहा हूँ कि में भी इनमें से ही एक बहुगुणा हूँ एक राज्य एक गाँव का जब कोई पूछ लेता था की बहुगुणा कौन होते है तो झट से कह देता था अरे आप हेमवती नंदन बहुगुणा को नहीं पहचानते महान स्वतंत्रता सेनानी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, और विजय बहुगुणा को नहीं पहचानते बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य जज और सामने वाला अपने सामान्य ज्ञान पर सकपका जाता तो ये थी मेरी नाम के पीछे बहुगुणा लगाने की थोयरी’’ तो जब सर को समझाया कि मुझे नाम के पीछे बहुगुणा लगवाना है ये रहा मेरा आधारकार्ड,पैनकार्ड,पासबुक, सबमे कैलाश चंद बहुगुणा नाम लिखा है और आप कहते हो दो अखबारों में और लिखवा कर लाओ, “हूँ हाय री नौकरशाही वाह रे नियम’’लेकिन नियम तो नियम होता है वह अदना सा कर्मचारी इसे कैसे बदल सकता है तो दोनों तरफ से काफी सोच विचार कर के ये नतीजा निकाला गया की कैलाश चंद से संबंधित कोई भी दस्तावेज़ इस फाइल में ना लगाये जाये और कैलाश चंद बहुगुणा वाले दस्तावेज़ लगा दो और इस तरफ मेट्रिक का सर्टिफिकेट हटा लिया गया क्योकि उसमे नाम कैलाश चंद ही था और इस बात के लिए भी आगाह किया गया कि इस तरह आप अनपढ़ की श्रेणी में आते हो एक केटेगरी है ई सी आर चेक जरुरी और एक है नॉन ई सी आर यानि की इमेग्रेसन चेक रिक्वायर्ड सुनकर हैरानी हुई किस तरह नियम एक पढ़े लिखे आदमी को अनपढ़ बताने पर तुले हुए है खैर हामी भर दी बना दो अनपड़ का ही सही मुझे कौन सा बाहर अपनी मास्टर डिग्री पूरे करना जाना है हालाँकि डर था की कही नए पासपोर्ट में किसी कॉलम में शिक्षा की जगह अनपढ़ लिखा हुआ ना आ जाये।
पुराने पासपोर्ट में तो ऐसा कोई कॉलम नहीं था खैर अपनी पहचान के सबसे बड़े प्रमाणपत्र में बहुगुणा लिखा होने की खुशी भी थी एक यही तो रह गया था बगेर बहुगुणा लिखे हुए और अंत में डरते डरते एक बात और पूछ ली कि क्या एअरपोर्ट पर अगर में इंग्लिश बोलते हुए पकड़ा जाऊ तो एक अनपढ़ होने के नाते मुझ पर क्या कार्यवाही होगी जवाब मिला यार सवाल बहुत पूछते हो फाइल लेकर आगे जाओ और वह से फोटो सेसन के लिए भेज दिया गया चुकि पासपोर्ट ऑफिस के धक्के खाने की स्मृति मन में अभी भी थोड़ी बहुत ताजा थी अत अन्दाजा लगाया की इन दो के अलावा उस बड़े से दरवाजे के पीछे ज़रुर पी आर ओ बैठा होगा जिसमे से कई स्त्री पुरुष अंदर बहार आ जा रहे थे. पी आर ओ शब्द भी उन्ही पुरानी स्मृतियों से याद रह गया यानी की पब्लिक रिलेशन ऑफिसर खैर फोटोसेसन के लिए अपनी बारी का इंतजार करने लगा इस बीच काम की धीमी रफ्तार को देख कर पता लगा की आज इनका नेट नहीं चल रहा है और बी एस न ल वाले तीन दिन बाद देखेंगे कह कर चला गया उसे कौन सा पासपोर्ट बनवाना है [सरकारी नौकरी] ऐसी तैसी पासपोर्ट की
खैर यहाँ पर उन दोनों का सहयोग देखने लायक था अपने लैपटॉप पर कभी तो अपने मोबाइल से नेट चला रहे थे और दूसरी तरफ फोटो वाले भाई साहब नंबर आने पर कहते की काम करना है तो अपना हॉट स्पॉट चालू करो पासवर्ड बताओ मेरे मोबाइल की बेटरी खत्म हो गई है और आदमी ख़ुशी ख़ुशी अपना हॉट स्पॉट चालू कर देता भला जियो के ज़माने में कुछ ऍम बी डाटा दान करने में किसी को क्या ऐतराज हो सकता है क्योकि आज काम नहीं हुआ तो फिर से दोबारा नेट से तारीख निकालो इंटरव्यू की तो सब ख़ुशी खुशी जैसा कहा जाये वैसा कर रहे थे अब जब अपना नंबर आया तो हाथ में फाइल लिए हम भी पहुंच गए फोटो लिया गया फाइल जमा कर के रसीद दे दी गई बड़ी हेंरानी हुई इन्होने तो पी आर ओ के पास जाने ही नहीं दिया सारा काम खुद ही कर दिया हाथ में रसीद घर जाओ पासपोर्ट पंहुच जायेगा घर पर बड़ी तम्मना रह गई बड़े दरवाजे के पीछे बैठे साहब से मिलने की क्या पता कोई रावत या नेगी हो इस बीच पहले वाला सरकार को कोसे जा रहा था दिल्ली से आना पड़ता है कोई सुविधा नहीं नेट नहीं चल रहा एक कमरा दे दिया दो आदमी बिठा दिए ढिंडोरा पीट दिया लो जी हमने पासपोर्ट कार्यलय खुलवा दिया [घंटा] हम भी सुर में सुर मिला कर कहने लगे सही बात है बिलकुल सही बात है और हम कहने लगे बड़े दरवाजे की तरफ ईशारा करते हुए बी एस एन एल की शिकायत बड़े साहब से क्यों नहीं करते हम साथ चलने को तेयार थे एक जागरूक नागरिक की भूमिका में तो वो बोला कौन साहब यहाँ हम दो लोगो का ही स्टाफ है जब हमने बड़े दरवाजे की तरफ इशारा किया तो
वो बोला वो बाथरूम है कॉमन बाथरूम हमने वर्ब की तीसरी फॉर्म लगाई ...
गो वेंट गॉन।
तो इस तरह हम फार्म जमा कराके लौटे ओर अब इंतज़ार करने लगे पासपोर्ट बनने का इसी बीच पुलिस वेरिफिकेशन के लिए भी थाने से एक नया भर्ती सिपाही भी आया जो लाज शर्म की वजह से खुलकर सुविधा शुल्क नहीं मांग पाया और ओर हमने जबरदस्ती 200 रुपये उसकी जेब मे ठूसे ओर वो कहता रहा ये क्या कर रहे हो ये क्या कर रहे हो बाद में समझ आया उसके ये कहने का मतलब था 500 का रेट है और तुम 200 दे रहे हो ये क्या कर रहे हो अब भुगतो अपने मुंह से सीधे सीधे पैसे ना मांगने की सज़ा ओर हमने उसे ये जता कर दिए अरे यार थाने से मेरे लिए आये हो हालांकि मेरा थाना मात्र एक किलोमीटर दूर ही है इतना तो बनता है कोई और होता तो में इतना भी नहीं देता आखिर मेरे साफ सुथरे चरित्र पर तुम कर भी क्या सकते हो तो इस तरह हमने कानून के रखवाले को चलता किया
अब हम निश्चिन्त अब तो पासपोर्ट बनने से कोई नहीं रोक सकता कुछ दिन बीते ओर वो बात हुई जिसका हमे सपने भी गुमान ना था एक मेल मिली पासपोर्ट कार्यालय से जिसका हिंदी मजमून जितना मुझे समझ आया कुछ इस तरह था कि
भइया कैलाश तुम्हारे पासपोर्ट आवेदन के फार्म में कुछ असामान्य त्रुटिया पाई गई है जिसके स्पस्टीकरण हेतु तुम्हें फलाँ तारीख को दो बजे से पहले पासपोर्ट कार्यालय में संबंधित अधिकारी के सामने उन त्रुटियों के स्पस्टीकरण हेतु प्रस्तुत होना है ऐसा ना करने की सूरत में तुम्हारा आवदेन निरस्त किया जाएगा और सारा पैसा धेला जब्त जो कि पंद्रह सौ रुपये था..
उस मेल का हिंदी अनुवाद जितना में समझ पाया यही था उस पर मेल का विषय ये की एलिगेंस या कहे ओबलीगेशन लेटर मुझ गरीब को काटो तो खून नहीं, लगे कागज उलटने पलटने आखिर कहा कमी रह गई मेरे कागजो में क्या कमी रह गई जो बड़े लाट का बुलावा हेतु असम्मान जनक पत्र कही कोई कमी नहीं मिली, मिली तो बस धमकी भरी वो तारीख यदि ना आये तो समझो पैसा जब्त, तो साहब मरता क्या न करता इंतज़ार करने लगे उस दिन और घडी का जब हमे बड़े साहब के सम्मुख पेश होना था और अंतत वो दिन भी आ गया लेटर का प्रिंट और कई अन्य दस्तावेज़ लेकर हम भारी मन से फरीदाबाद से दिल्ली आर के पुरम के लिए निकले इन बीस सालों में बस का स्थान दिल्ली मेट्रो ने ले लिया और जिस ऑफिस में बीस साल पहले हम सामने के दरवाजे से घुसे थे पता चला तुम्हें पीछे के रास्ते से जाना है द्वितीय तल पर तो जब कार्यालय में पहुचे और लेटर दिखा कर छानबीन की कि किस ने भेजा है तो कमरा नंबर दस की एक पर्ची मिली जिसका नंबर शायद बीस या इक्कीस होगा जिसका मतलब इस भीड़ में तुम अकेले सताए हुए नहीं हो तुम से पहले भी कई आदमी है तीन कमरे और तीन लाइन सबसे लम्बी लाइन मेरे वाले कमरे की ही थी यानी सारी मुसीबत की जड़ यही है कमरा नंबर दस में बैठा सख्स लगे बाट जोहने इस बीच भांति भांति के लोगो से उनकी दुःख भरी कहानी सुनी कोई पते का सताया हुआ था तो कोई नाम का हमारा नंबर आने पर हम भी पहुंच गए साब के सम्मुख लेटर दिखा कर बोले ‘‘जे का है जे काई भेजे साहब के सेक्टरी ने लेटर हमाये हाथ से लेकर लेपटाप में दो चार उंगली मारी और लेपटाप का मुँहकर दिया साब के सामने’’ जे देखने के बाद साब ने लेपटॉप का मुँह कर दिया हमारे सामने अब हमारी ससुरी खोपड़ी घूम गई लेपटॉप पे हमारी बीस साल पुरानी राशन कार्ड की फोटो साब बोले जे कौन है कैलाश चंद हमोउ बोले हम है फिर हमारे फार्म को सामने रख कर बोले ये कौन है कैलाश चंद बहुगुणा हम बोले जी ये भी हम है अब साहब की खोपड़ी घूम गई बोले एक ही शक्ल के दो नाम वाले कैलाश चंद सरकार को गलत जानकारी देने और जानकारी छुपाने के एवज में लाओ दो हज़ार का जुर्माना ऊ कहावत आज समझ आई नमाज छुडाने गए थे रोजे गले पड़ गए यहाँ पंद्रहसो वसूलने गए थे और सर पर दो हज़ार का ठीकरा फुड़वा बैठे ज़माने भर का सारा दर्द अपनी शक्ल पर ला कर साहब से गुहार लगाये मालिक इस का कोई हल बताये साहब का फरमान प्लान ऐ दो हज़ार का जुर्माना देकर दो अख़बार में विज्ञापन दो कि कैलाश चंद ही कैलाश चंद बहुगुणा है और उन दोनों अख़बार की कतरन अपने फार्म के साथ लगाओ हमऊ पूछे साहब कोई दूसरा प्लान भी है साहब बोले प्लान बी दो हज़ार का जुर्माना दो और नाम कैलाश चंद ही रहने दो और पुराना पासपोर्ट दो हम बोले उसको गुजरे हुए तो दस साल हो गए अब उसकी लाश कहा से लाये साहब बोले फिर देखेंगे और बगल के कमरे का पता देते हुए बोले जुर्माना वहां जमा कराओ और रसीद हमे दो।
अब ससुरा हम कमरे से बाहर आकर पहले तो खोपड़ीया को शांत किये स्थिति की गंभीरता को समझे उन लोगो की शक्ल की तरफ देखे जो शक्ल से ही मजदूर टाइप लग रहे थे और लाट साहब ने किसी पर तीन हज़ार और किसी पर पांच हज़ार का जुर्माना किये थे उनसे अपनी स्थिति की तुलना किये तो पाए हम कुछ बेहतर स्थिति में है दिमाग में तुरंत फुरत ख़र्चों का आकलन किये तो पाए हमारे पास तीन रास्ते है अपना सरनेम बहुगुणा पासपोर्ट में लिखवाने या न लिखवाने के
1 प्लान ऐ तो वही है साहब का प्लान फरमान ‘दो हज़ार का जुर्माना देकर दो अख़बार में विज्ञापन दो कि कैलाश चंद ही कैलाश चंद बहुगुणा है यानी दो अख़बार में विज्ञापन का ख़र्चा अलग से,
2 प्लान बी दो हज़ार का जुर्माना दो और नाम कैलाश चंद ही रहने दो, अब इसमें हमारे इगो आड़े आ गई साला पैसा भी दे और तुम हमारी सरनेम भी ना लिखो बहुगुणा जानते हो या फिर लिस्ट निकालू कि बहुगुणा कौन होते है
3 प्लान सी, अपने पन्द्रह सौ रुपए को सरकार के मुँह पे दे मारो और फिर दोबारा से फार्म भर लेना यानी पंद्रह सौ और खर्चा
तो काफी सोच विचार के बाद प्लान बी सही नज़र आया और पासपोर्ट मिला कैलाश चंद के नाम का इस बीच पुराने पासपोर्ट को बड़ी बेदर्दी से दो हज़ार रुपए देकर उसके मुँह पर रिजेक्ट की स्टाम्प मारते हुए देखने का एहसास तुम क्या जानो..
साफ़ सच्च्चरित्र हिम सा वर्ण लिए हुए पासपोर्ट के मुख पर रिजेक्ट की कालिख।
