Mahima Shree

Children Stories

3.3  

Mahima Shree

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वो शरारती लड़का

वो शरारती लड़का

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यही कोई तीन या साढ़े तीन साल की मेरी उम्र थी । जब मेरा एडमिशन नर्सरी क्लास में ब्रज किशोर किंडर गार्डेन स्कूल में कराया गया। सभी भाई-बहनों में सबसे छोटी होने के कारण मुझे खूब अटेंशन मिलता। लेकिन मैं स्वभाव से बेहद शर्मीली ,भावुक और अंतर्मुखी थी। माँ के सिवाए किसी से नहीं घुल-मिल पाती।जो कहना होता सिर्फ माँ से कहती। माँ के पल्लु को पकड़ दिन-भर उनके साथ आगे-पीछे घूमते रहनेवाली बच्ची थी। माँ के सिवा किसी के पास नहीं जाती थी। यहाँ तक कि अपने बड़े भाईयों और बहनों के पास भी नहीं। खाना खिलायेगी माँ। कपड़े पहनाएगी माँ। सोना-जागना सब माँ के साथ। इसलिए जब स्कूल में दाखिला हुआ तो मुझे याद नहीं की कभी खुशी-खुशी जाती थी। माँ से तीन घंटे बिछड़ना ही बड़ा दुखदाई होता । कई बार स्कूल का रिक्शा वाला खड़ा रहता मुझे ले जाने के लिए और मैं रोती रहती। जबरदस्ती गोद में उठाकर रिक्शे में बैठा दिया जाता। अपना टिफिन भी नहीं खा पाती। वैसे नर्सरी के छोटे बच्चों को खिलाने, बाथरुम ले जाने के लिए स्कूल में सहायिका रहती थी।

स्कूल जाने के लिए जिस रिक्शे से मैं जाती थी,उसमें पहली और दूसरी क्लास के भी बच्चे होते थे। उनमें से एक लड़का बड़ा दबंग था । वो मुझे अच्छी तरह से समझ चुका था कि ये सीधी-साधी मिमाज की लड़की है, जो बस रोती रहती है। इसलिए कुछ दिनों बाद ही मुझ पर अपनी दादागिरी दिखाना शुरु कर दिया। जैसे ही मैं रिक्शे में बैठती , मुझसे मेरा टिफिन छीन लेता। अगर मैं नहीं देती तो धमकाता। कभी मुक्का दिखाता। और फिर जबर र्दस्ती बैग छिनकर टिफिन निकाल लेता। अगर लंच के लिए परांठे या सैंडवीच होते तो आधा खा जाता। सादी रोटी होती तो छोड़ देता। और साथ में धमकी देता रहता कि अपनी मम्मी को अगर बताया तो फिर देखना तुम्हारा क्या हाल करता हूँ। काफी दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा। डर के मारे मैंने कभी माँ को बताया भी नहीं। फिर एक दिन इतवार को दूसरे मुहल्ले में हमारे एक रिश्तेदार के यहाँ फंक्शन का आमंत्रण था। माँ के साथ मैं भी वहाँ गई। वहाँ फक्शन में मुझे वह दबंग लड़का दिखा । वह भी उस फंक्शन में अपनी मम्मी के साथ आया हुआ था।मैं तो उसे देखकर चौंक गई पर वह मुझे अपनी माँ के साथ देखकर थोड़ा भयभीत हो गया। उसके चेहरे का रंग उतर गया। इस बात ने मेरे अंदर आत्मविश्वास से भर दिया। उसने पहली बार  खेलने के लिए मुझे इंवाइट किया । पर मैं नहीं गई उसके साथ।संयोग से उसकी माँ मेरी माँ की जान-पहचानवाली निकली। हमदोनों की माँए आपस में खूब बातें करने लगे। मैं अपनी माँ से चिपकर उनके पास ही बैठी रही। बातों से पता चला कि वे लोग हमारे रिश्तेदार के पड़ोसी हैं। और ठीक उनके सामने ही उनका बंगला है। क्योंकि वे लगातार कह रही थीं, "चलो मेरे घर भी सामने ही तो है। कभी आती नहीं हो। अभी फक्शन में देर है चलो घर घूमा लाती हूँ।"

इस बात ने मुझे हिम्मत दी और मैंने माँ को धीरे से कान में बता दिया कि इन आंटी का बेटा स्कूल रिक्शे में मुझे परेशान करता है औऱ रोज मेरी टिफिन चेक करता है । आलू परांठा तो हमेशा छीन के खा जाता है। बस फिर क्या था। उसकी मम्मी से तुरंत माँ ने सारी बात बताई । और उसी समय उसकी क्लास लग गई। मेरी माँ ने कहा मुझे पहले क्यों नहीं बताया। और उससे कहा ये तुमसे इतनी छोटी है बहन जैसी ऐसे तंग करना अच्छी बात नहीं।सब मिलकर खाओ, खेलो। वो उतनी छोटी उम्र में भी बड़ा शातिर था। हें हें हें कर दांते निपोरता रहा। हाँ! किंतु उस दिन के बाद उसने स्कूल रिक्शे में कभी परेशान नहीं किया। बल्कि मुझे देखते ही बड़ी सी स्माइल देता।





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