शिकायत
शिकायत
देश में सांसदों का चुनाव खत्म होकर अब कुछ राज्यों में विधायकों का चुनाव होना था। सभी नेतागण अपना अपना पक्ष मजबूत करने में लगे थे।
सांसद भुजंगप्रताप ने अपने निजी कार्यकर्ताओं में से कुछ ख़ास लोगों से अपने ज़िले और संसदीय क्षेत्रों के सभी विभागों के बड़े छोटे पदाधिकारियो को गुप्त ख़बर भिजवाई कि वे लोग सांसद जी की सेवा में उपस्थित हों
।
एक थानेदार के निकलने के बाद, थोड़ी देर इंतजार के बाद प्रखण्ड विकास पदाधिकारी को सांसद जी के चैम्बर में जाने को कहा गया।
"आओ! बी डी ओ साहब,क्या सेवा करें आपकी?"
"जी, कुछ नहीं , आपने याद किया तो आ गये,कहिये क्या कर सकते हैं,आपके लिये?"
" बी डी ओ साहब, कुछ चाय नाश्ता लीजिये। फिर बातें होती रहेंगी। वो क्या है न, हमारे खानदान का संस्कार ही कुछ अलग है। तहजीब और तमीज़ कूटकूट के भरा हुआ है।" मुस्कुराते हुये सांसद भुजंगप्रताप बोले।
"जी,बहुत अच्छे संस्कार हैं।कहिये,क्या कहना है? डी एम साहब के मीटिंग में भी जाना है,मेरे ब्लॉक के अंदर विभिन्न योजनाओं के बारे में रिपोर्टिंग हैं।"
"यही कि आप भी कमाइए और हमारा भी ध्यान रखिये,आखिर जनता की सेवा में खर्चा है, चुनाव के बारे में तो आप जानते ही हैं कितना खर्चा करना पड़ता हैं, हमारी खेती तो यही राजनीति है और यहाँ रहते आपको किसी बड़े पदाधिकारी या जाँच से डरने की जरूरत नहीं है।" सांसद जी थोड़ा नजदीक आकर धीरे धीरे हल्की से मीठी वाणी में हँसकर बोले।
अब क्या था,उस क्षेत्र के योजनाओं के लाभार्थीयों से प्रत्येक शौचालय निर्माण कार्य पर दो हज़ार रु ,प्रत्येक आवास को स्वीकृति के लिये पांच से दस हजार रु लिये जाने लगे, जनवितरण प्रणाली की प्रत्येक दुकान से पांच सौ से दो हज़ार रु का महीना बंध गया।
आगनवाड़ी केंद्रों से लेकर क्षेत्र के प्रत्येक सरकारी स्कूल और अस्पताल से रुपये महीने के आने लगे। इन रुपये के बदले ये सभी निचले कर्मी खुद को बचाते हुये जनता से मनमानी कर सकते थे। लाभ न मिलने योग्य लोगों को रुपये देने पर सब सुलभ था।
सब ख़ुश थे।सब साथ में थे।सबका विकास हो रहा था।
बस!जिनको कुछ नहीं मिलता था,उन्हें ही शिकायत थी।
