Rahulkumar Chaudhary

Children Stories Inspirational

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Rahulkumar Chaudhary

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सही न्याय

सही न्याय

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किसी गांव में एक प्रधान रहता था । प्रधान अपने न्याय के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था । एक बार पास के गांव में दो आदमी लच्छू और यशपाल प्रधान के पास एक मुकदमा लेकर आये ।


यशपाल एक धनी आदमी था जबकि लच्छू एक गरीब किसान । लच्छू का कहना था कि छ: महीने पहले यशपाल ने उससे पांच हज़ार रुपये उधार लिये थे । लेकिन अब वापस करने से मना कर रहा है ।उधर यशपाल का कहना था कि वह लच्छू से कई गुना अमीर है । वह भला लच्छू से उधार क्यों मांगने लगा ।मुकदमा गंभीर था । दोनों ही अपनी अपनी बात पर अड़े हुये थे । प्रधान ने कुछ देर सोच विचार किया तथा अगले दिन आने को कहा ।


अगले दिन लच्छू और यशपाल सही समय पर प्रधान के सामने पेश हुये तो प्रधान ने एक दीवार की ओर इशारा करते हुये उनसे कहा – “ तुम दोनों उस दीवार के पीछे चले जाओ । वहां पर दो अलग-अलग बाल्टीया रखी हैं । तुम दोनों बाल्टी मैं से एक-एक लोटा पानी निकालकर अपने हाथ-पैर धो लो । लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि केवल एक लोटा पानी ही इस्तेमाल करना इससे अधिक नहीं । पवित्र होने के बाद ही न्याय देवता की पूजा होगी ।”


वे दोनों दीवार के पीछे गये । जहां लच्छू ने तो एक लोटा पानी से अपने हाथ-पैर आसानी से धो लिये । लेकिन यशपाल एक लोटा पानी से अपने पैर भी नहीं धो पाया । उसने अगल-बगल झांककर देखा और यह सुनिश्चित कर लिया कि उसे कोई भी नहीं देख रहा है तो उसने तुरंत एक लोटा पानी और निकाला और पैर पर डाल लिया । उसने देखा कि तब भी उसके पैर पूरी तरह नहीं धूल पाये हैं ।


यशपाल ने सोचा कि – “ मैं एक लोटा पानी और इस्तेमाल कर लूं, इस बात पर प्रधान मुझे फांसी ही थोड़ी लटका देगा ।” बस उसने दो लोटे पानी और डाल लिये ।


दोनों प्रधान के पास पहुंचे । प्रधान ने उनसे पूछा कि – “ क्या दोनों ने एक-एक लौटा पानी ही इस्तेमाल किया है ।” तो दोनों ने “हां” मैं उत्तर दिया ।


प्रधान बड़ा ही चतुर था । उसने बाल्टीयो में जाकर देखा और जान लिया कि यशपाल ने एक लोटा पानी के बजाय पूरी बाल्टी का पानी इस्तेमाल कर डाला है ।


वहां बहुत से लोग बड़ी देर से न्याय की प्रतीक्षा में खड़े हुए थे कि कब प्रधान अपना निर्णय सुनाता है । कुछ सोच-विचार और न्याय देवता की प्रार्थना करके प्रधान ने अपना निर्णय सुनाया – “ लच्छू सही कहता है, कि यशपाल ने उससे रुपये लिये हैं और वापस करने से मना कर रहा है । मैं यह फैसला देता हूं कि तुरंत ही लच्छू को पांच हज़ार रुपये वापस करें । झूठ बोलने के लिए उससे माफी मांगे और हर्जाने के रूप में एक हज़ार रुपये लच्छू को और दे ।” इस बात को सुनकर लोग असमंजस में पड़ गये कि ऐसा कैसे मालूम हो गया । उन्होंने प्रधान से इस बारे में पूछा प्रधान ने मुस्कुराते हुये कहा – “ सीधी सी बात है ! मैंने दोनों की हाथ-पैर की परीक्षा इसलिए ली थी । जिससे मुझे इन दोनों के स्वभाव के विषय में जानकारी हो जाये । लच्छू ने एक लोटा पानी में ही अपने हाथ-पैर धो डालें । अतः वह कम खर्चे में ही गुजारा करने वाला आदमी है ।


जबकि यशपाल ने पूरी बाल्टी पानी खत्म कर दिया । जिससे यह पता चलता है कि वह स्वभाव से मतलबी, स्वार्थी तथा भ्रष्ट आदमी है । साथ ही उसने झूठ भी बोला कि उसने एक ही लौटा पानी इस्तेमाल किया है । अत: यह स्पष्ट हो जाता है कि यशपाल झूठ भी बोलता है । बस इसी से मैंने जान लिया कि यशपाल ने अवश्य ही लच्छू से पांच हज़ार रुपये लिये हैं और उनको वापस नहीं करना पड़े इसलिए वह मना कर रहा है ।” सभी उपस्थित लोग उस न्याय से प्रसन्न हुये ।


अगले दिन प्रधान के पास एक दूसरा मुकदमा पेश हुआ । दौलतराम का एक मकान बन रहा था । उसमें एक बढ़ई काम कर रहा था ।


दौलतराम का कहना था कि – “ बढ़ई ने अवसर देखकर घर में रखे संदूक से रुपयों से भरी थैली चुराई है । जिस समय घर में यह घटना हुयी । उस समय बढ़ई और मेरे भाई का लड़का ही घर में थे । लड़का कहता है कि – ‘ रुपये उसने नहीं लिये ।’ बढ़ई कहता है कि – ‘ उसने भी नहीं लिये ।’ आप न्याय करें तथा मुझे मेरे रुपये दिलवाये ।”


प्रधान ने उन्हें भी अगले दिन आने को कहा । दूसरे दिन सभी लोग वहां एकत्र हो गये । बढ़ई तथा दौलतराम के भतीजे को प्रधान ने अपने पास बुलाया और कहा कि – “ दीवार के पीछे एक छोटा सा डंडा पड़ा है । तुम्हें एक-एक करके वहां जाना है और उस डंडे को अपने सीधे हाथ से पकड़ना है, और फिर वही रखना है । यह मंत्रों से सिद्ध डंडा है जिसने भी पैसे चुराये हैं । डंडा उसके हाथ से चिपक जायेगा । वह उससे छुड़ाने पर भी नहीं छूटेगा ।”


इस प्रकार समझा कर उसने पहले दौलतराम के भतीजे को डंडा छूने को दीवार के पीछे भेजा । उसके लौटकर आने पर उसने बढ़ई को भेजा । प्रधान ने अलग ले जाकर दौलतराम के भतीजे की हथेली को सुंघा और फिर दीवार के पीछे से लौटकर आने वाले बढ़ई की हथेली को अलग लेजाकर सुंघा ।


न्याय का यह तमाशा देखने आये लोगों से उसने कहा कि – “ अब मैं न्याय देवता के आदेश से यह निर्णय देता हूं कि रुपयों की थैली बढ़ई ने ही ली है । दौलत राम के भतीजे ने नहीं ।”


यह निर्णय सुनकर लोगों ने देखा की बढ़ई की नजरें नीचे हो गयी । प्रधान ने बढ़ई से कहा – “ बोलो ! चोरी कबूलते हो या नहीं । वैसे मेरे पास इसका पता लगाने के और भी तरीके हैं ।”


बढ़ई ने चोरी करना स्वीकार कर लिया । वह रुपयों की थैली अपने घर से वापस देने को दौलतराम तथा उसके भतीजे के साथ वहां से चला गया ।


लोगों ने प्रधान से पूछा कि – “ आपने यह कैसे जाना की चोरी बढ़ई ने की है ।” तब प्रधान ने हंसते हुये कहा – “ मैंने डंडे पर हींग का खूब गाढ़ा लेप किया हुआ था । जो डंडा पकड़े तो उसकी हथेली से हींग की गंद आने लगे । मैंने यह कहा था कि जिस ने चोरी की होगी उसके हाथ में डंडा चिपक जायेगा । इस पर चोरी न करने वाले दौलतराम के भतीजे ने निर्भीक होकर हथेली से उस डंडे को पकड़ा । क्योंकी सुंघने से उसकी हथेली पर हींग की गंद आ रही थी । जबकि चोरी करने वाले बढ़ई ने डंडा चिपक न जाये इस डर से डंडे को छुआ तक नहीं । क्योंकि वहां उसे देखने वाला तो कोई था, नहीं ! इसलिए वह डंडा छुये बिना वहां से लौटकर आया । उसकी हथेली तथा उंगलियों में हींग की गंध नहीं थी । इस प्रकार मैंने जान लिया कि डंडे को न छूने वाले बढ़ई के मन में चोर है और वही थैली चुराने वाला भी है ।”


प्रधान की बुद्धिमता तथा न्याय की सभी ने प्रशंसा की तथा वहां से चल दिये..!!


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