शादी के पैसे
शादी के पैसे
“ बेटी कम्मो हो बेटी आंखि के रे पुतरिया, दिनवा हरेलू हो बेटी भुखिया रे पियसिया.....” मंगल गीत गुनगुनाते हुए सुनैना अपने पड़ोसी के घर से निकलकर अपने घर जा रही थी. उसकी 18 वर्षीय पुत्री कम्मो की शादी तय हो गयी थी. इसी सिलसिले में कुछ जरूरी शादी की सामग्री पड़ोसियों से जोगाड़ कर रही थी.
उधर घर में अपनी मां को नहीं देखकर कम्मो मां मां चिल्लाती हुई अपने घर से बाहर निकली और बोल पड़ी, “ पता नहीं मां, बिना कुछ बताए कहां चली जाती है? कभी इस घर में तो कभी उस घर में... बिल्कुल घर घुमनी हो गई है.....”
“ आई बेटी...आई. अरे, तेरे भाई गंगुआ को... ढूंढ़ने चली गई थी. आज उसके ऑफिस से तनख्वाह मिलने वाला है न, शादी विवाह का मौका है. डर है कहीं पैसा, इधर उधर खर्च न कर दे. सुनते हैं कि उसे कुछ बुरी लत लग गई है....” अपनी बेटी की आवाज सुनकर उसके पास पहुंचते ही सुनैना ने कहां घूमने गई थी, उसकी सफाई दी.
“ क्या तुम्हारा वृद्धा पेंशन मिला? पिता जी के पीएफ की राशि का क्या हुआ? ” सुनैना बोल ही रही थी कि बीच में ही बात काटती हुई कम्मो पूछ बैठी.”
“ नहीं रे, कुछ नहीं पता चला. ऑफिस का चक्कर लगाते लगाते तो पांव में छाले पड़ गए हैं. बड़ा बाबू बोलते हैं कि छोटे बाबू से मिलो... छोटे बाबू कहते है कि फाइन अभी नहीं पहुंचा है. इन दोनों बाबुओ के बीच मैं तो चक्की की दो पाटों में पिसा कर रह गई हूं. ऊपर से कार्यालय के दलाल कहते हैं कि जब तक बड़ा बाबू को चढ़ावा नहीं चढ़ेगा, तो फल की इच्छा करना फिजूल होगा. मैं तो वहां कटी पतंग की तरह डगमगाती फिरती हूं... वहां पैसे लूटने के लिए होड़ मची हुई है. लगता है बिना घूस दिये काम नहीं बनेगा. तेरा बाप जीवित रहता तो आज यह बुरा दिन नहीं देखना पड़ता. पता नहीं बिना पैसों के तेरी शांदी कैसे होगी....” इतना बोलते बोलते सुनैना की आंखें भर आई. आंखों में आए आशुओं को उसने अपनी आंचल से पोछा. लेकिन आर्थिक तंगी से व्यथित मां का दिल बैठने लगा. वह आंचल से अपना मुंह झापकर धीरे धीरे सुबकने लगी.
‘‘ अरे मां, तू इतनी अधीर क्यों हो जाती है. मैं तुझे छोड़कर नहीं जा पाऊंगी, तू मुझे पराया मत समझो....” कम्मो अपनी मां को अंकवाड़ी में बांध कर धीरज बंधाने लगी. बेटी का स्नेह और प्यार पाकर मां को अपनी गलती का एहसास हुआ. वह सुबकना बंद कर बेटी के माथे पर हाथ रखा और आशीष देते हुए बोल पड़ी,
“ तू क्या जाने क्या होता है मां का दिल और शादी का बोझ ! खैर, चलो. अब तेरा भाई गंगुआ आता ही होगा. ”
‘‘ सोनल पुरवा से अइले सोनरवा भइया, ले अइलें सोनवा बेसाह जी, उ सोनवा पहिरेंलें दुल्हा राजन दुल्हा, पहिरी चलेंलें ससुरार हो जी.....’’ तभी सड़क पर गीत गाते हुए एक पगला दिखाई पड़ा. उसको देखते ही कम्मो अपनी मां से पूछ बैठी,
“ मां, ई पगला कौन है और विवाह का गीत क्यों गाता है? जब सुनो तब वह ‘ सोनल पुरवा से...’ गीत गाते रहता है.” कम्मो पगला के मंगल गीत से व्यथित होते हुए उसके गाने का मकशद अपनी मां से जानना चाही.
“ बेटी, वह सोनबरसा गांव के राम नगीना साव का पुत्र राम है. उसकी एक ही बहन थी, जिसे दहेज लोभियों ने घर में जलाकर मार डाला. जब राम अपनी बहन का जला हुआ रूप देखा था तो अपने को संभाल नहीं सका. उसी वक्त से वह पागल हो गया है....बेटी, पगला का गीत सुनकर पत्थर दिल भी एक बार कांप जाता है. ”
“ दहेज लोभियन से खबरदार...., बाज गीध...पाखंडी दानवन ले होशियार....., ई सोना के चिरई के मांस नोंच लिहनसन, खबरदर भइया..खबरदार.... ”
इसी बीच गीत अधूरा छोड़, चेतावनी देता हुआ पगला सुनैना के पास आकर ठहर गया. कम्मो उसे देर तक देखती रही. उसके बिखरे बाल, सूखा चेहरा और होंठों पर पड़ी फेफरियों को देखकर अचनाक बोल
पड़ी,
“ भैया, पानी पीओगे, अभी लाती हूं....’’ इतना बोलकर वह घर के अंदर चली गई. तभी सुनैना बोली,
“ अरे राम बेटा, तूने कहीं गंगू को देखा है?”
“ हां, उसे देखा था. शराब के नशे में चौराहे के पास खड़ा था. ”
“ ठीक है, पानी पीकर मुझे उसके पास पहुंचा दो. पता नहीं, किसी अनहोनी से मेरा दिल रह रहकर क्यों धड़क रहा है. पता नहीं अभी तक गंगू क्यों नहीं आया? ”
“ अरे, सुनैना चाची, उसे समझाती क्यों नहीं, जुआ और शराब में पैसा बर्बाद कर रहा है. दोनों व्यसन जान लेवा है. सुना है कि नहीं.... जुआ में धर्मराज युधिष्ठीर ने... अपनी पत्नी पंचाली को हार गया था.....” पगला राम ने समझाते हुए कहा,
“ लो भैया, पानी पी लो...” कम्मो ने पगला के हाथ में पानी का गलास थमा दिया. उसने एक ही सांस में पूरा गिलास खाली कर दिया. तभी सुनैना अपनी बेटी से बोली कि राम के पीछे-पीछे चलो, वह गंगू के पास हमें पहुंचा देगा. कम्मो और पानी देने का आग्रह करती, उससे पूर्व ही वह गलास फेंककर वहां से गीत गाते हुए भाग निकला.
“ कावना बने रहलू हो कोइलर कावना बने जास......”
मंगल गीत को गाना छोड़ वह यकायक बोल पड़ा कि देखो-देखो...मेरी बहन की डोली आ रही है....फिर फिल्मी गीत गाने लगा, “चलो रे...,डोली ...उठाओ कहार....पिया मिलन की......रूत आई...” चलो ...रे चलो.....रे....उसके बाद फिर वह मंगल गीत गाने लगता है.
‘‘ सोनल पुरवा से अइले सोनरवा भइया, ले अइलें सोनवा बेसाह जी, उ सोनवा पहिरेंलें दुल्हा राजन दुल्हा, पहिरी चलेंलें ससुराल जी.....’’
अचानक वह गीत गाना बंद कर दिया और भीड़ को चेतावनी देते हुए आगे बढ़ने लगा.....‘ होशियार होशियार, समाज के सियारन आ वन के हुरानन से होशियार..., कमाई धोती वाला खाई टोपी वाला...होशियार होशियार....’’
शहर के चौराहे पर एक चाय की दुकान थी. जहां चाय पीने वालों की भीड़ लगी हुई थी. उनमें स्थानीय युवक तप्पू चाय पी रहा था. उसी समय
पागला वहां गुजरा. उसके गीत में संवेदना और व्यथा थी, जिसे सुनकर चाय पी रहे लोग व्यथित हो गए. तभी वहां इलाके का गुंडा दारा पहुंचा. उसकी नजर वहां खड़े तप्पू और उसके साथियों पर पड़ी. उनसे मुखातिब होते हुए उसने पूछा, ‘‘ क्या तुम लोगों ने इधर गंगुआ को देखा है? पता नहीं कहां मर गया साला..., उसे कब से तलाश रहा हूं. मालूम हुआ चौराहे की ओर आया है.”
“ हां, मैंने उसे देखा था. थोड़ी देर पूर्व वह यहीं था. बोल रहा था कि बहन कम्मो की शादी है. अब जुआ और शराब से तौबा. इसलिए चाय पीने आया हूं. लेकिन वह बिना चाय पीए ही तुरंत कहीं चला गया.” तप्पू ने दारा को चाय का कुल्हड़ हाथ में थमाते हुए जबाव दिया.
“ साला मक्कार , हमसे बचकर जायेगा कहां? देखता हूं शायद, कहीं शराब खाना में मिल जाये ! ” दारा उसके हाथ से चाय लेकर जल्दी जल्दी फूंकफूंकर सुरूकने लगा. चाय पीने के बाद वहां से आगे बढ़ गया.
गंगू को आज महुआ का ठर्रा कुछ ज्यादा ही चढ़ गया था. उसके पांव जमीन पर सीधे नहीं पड़ रहे थे. उबर खाबर रास्ते पर हिचकोले खाता हुआ वह आगे बढ़ रहा था. वह बुदबुदाया,“ पगला...ठीक ...ठीक ...ठीक ...ही...तो...कहता...है...(हींच की आवाज के साथ उसे हींचकी आती है.).“ ताड़ी है ...जग... तारणी...जस ...गंगा सामान..”(हाथ जोड़कर मां गंगा को प्रणाम करता है.) .हां...हां ...पगला ठीके ...कहता है....“ ताड़ी है ...जग... तारणी...जस ...गंगा सामान... बैंकुंठ.... जाए के ….होखे त..... पीअस.... गलास पर गलास,....बोलो, …. सिया पति सिरी रामचंदर जी के जय.....हां...हां....हां... (हंसता है).
वह बड़बड़ाते हुए कोलियरी की नुक्कड़ पर पहुंच गया. जहां पुतुस की झाड़ियों की आड़ में लटकन, तपन, लोरिक आदि जुआ खेल रहे थे. उनसे वह बोला, “ तुम लोग... मुझे... बुलाना नहीं..., आज... जुआ... नहीं खेलूंगा. घर जाना..... जरूरी... है. ” तभी लटकन उसके पास आया और उसकी गर्दन में बाहें डालकर नीचे बैठा दिया. साथ ही पूछा,“ अरे गंगू भाई, फिर तूने पी ली. आज ही सुबह तो बोला था कि नहीं पीऊंगा...,”
“ झूठ बोला था...,बेजारी कम्मो ही तो है...जिसके नाम पर उधार मिल जाता है. दारा रोज उससे मिलने आता है....सेठ राशन दे देता है...,सूदखोर बिना सूद लिए कर्ज दे देता है. तन्ख्वाह मिला है...सबका पैसा लौटाना है....जाता...हूं...मां और कम्मो राह...ताकती होगी...मुझे मत रोको...” गंगू उठकर जाने का उपक्रम करता है. तभी बगल में बैठा लटकन उसे पुन: बैठा देता है.
“ बैठो बैठो, एक बार तन्ख्वाह के सभी पैसे दावं पर लगा दो, जीत गये तो सबका माल तुम्हारा. उसके बाद खुशी खुशी घर चले जाना. ” लटकन ने उसे झांसा दिया.
“ नहीं... नहीं खेलूंगा... तुम लोग...मेरी... मां... से... बोल दोगे... कि.... गंगुआ... जुआ खेलता है.”
“ नहीं कहेंगे, पैसे निकाल कर रखों.”
“ तो ...ठीक ..है....” गंगू अपनी पॉकेट से पर्स निकाला और सामने दाव पर रख दिया. और... ताश की गड्डी अपने हाथ में लेकर खुद फेटने लगा और मन ही मन बुदबुदाता है,“ जय मां कलकते वाली तेरा वचनजाए न खाली, बोल क्या मांगता है?.
“ कम्मो रानी की कसम, बीवी दे दो...” तपन ने गंगू से कार्ड मांगा. जैसे ही ताश का कार्ड गंगू ने सामने फेंका. उसके मुंह से निकला,
‘‘ मर गया...” गंगू द्वारा फेंका गया कार्ड बीवी ही था. ठीक उसी वक्त वहां दारा पहुंचा. उसको देखते ही गंगू अपना पर्स उठाकर भाग खड़ा हुआ. गंगू के भागते ही वहां अफरा तफरी मच गई.
आगे आगे गंगुआ, पीछे से तपन, लोरिक, लटकन और दारा दौड़ने लगे. दारा ने तपन को पकड़ा और उसकी पिटाई करने लगा, यह कहते हुए कि कम्मो रानी की कसम खाता है, हरामजादे तेरी खाल उतार लूंगा. वह मेरी प्रेमिका है. दोनों एक दूसरे से जुझ पड़ते हैं.
उधर लोरिक चाकू निकालकर गंगू को ललकारता है कि जीत का माल तू लेकर भाग नहीं सकता गंगू, पैसा वापस कर दे नहीं तो चाकू मार दूंगा. नाहक तेरी जान चली जाएगी. यह कहते हुए लोरिक और लटकन गंगू को पकड़ लेते हैं. उसका पर्स छीनने लगते है. लेकिन गंगू अपना पर्स मजबूती से पकड़े रहता है. इसी बीच दारा तपन को छोड़कर बोलता है, “ लोरिक, गंगू को छोड़ दे, वरना हमसे बुरा कोई नहीं होगा. तुम लोगों का जीना हराम कर दूंगा....”
दारा की बात अनसुनी करता हुआ लोरिक उसके हाथ से पर्स छीन लेता है और गंगू के पेट में चाकू मार देता है. जब तक दारा गंगू के पास पहुंचा. सभी वहां से भाग गए.
गंगू के पेट से रक्त स्राव होने लगा. वह अपना पेट पकड़े चीखते हुए जमीन पर गिर पड़ा. तब तक दारा वहां पहुंचकर उसको उठाने लगा. तभीगंगू ने उससे विनती करते हुए कहा,
“ दारा भाई, मेरी मां और कम्मो का ख्याल रखना. मेरा तन्ख्वाह लूट गया. मेरे बुरे काम की सजा मिल गई... सजा....मिल ...गई....,लगता है... मां से... नहीं मिल... पाऊंगा...” गंगू की आवाज लड़खराने लगी.
“ नहीं नहीं, तुम्हें कुछ नहीं होगा. ” दारा उसे ढांढ़स बंधाया और अपने गमछा से उसका पेट पर बांध दिया. गंगू को अपनी पीठ पर लादकर सड़क तक लाया. साथ ही एंबुलेंस बुलाने के लिए अपनी मोबाइल पर रिंग किया. तभी पगला गीत गाते हुए दिखाई पड़ा.
“ कइसे में बसु सासू आज की रतिया हो, अम्मा जोहत होइहेंन बाट हो, छतिया फाटत होई, नयना से ढरकत होई लोर......
