रुक्षत्र
रुक्षत्र
एक समय की बात है, कपत्स्य देश के राजा अपत्स्य देश के साथ युद्ध की तैयारियाँ कर रहे थे। कपत्स्य देश का राजा बहुत कपटी था। राज्य में हर व्यक्ति उसे पसंद नहीं करता था। उसका नाम रक्षत्र था, उसका स्वभाव उसके नाम से बिलकुल विपरीत था।
अपत्स्य नरेश बहुत ही सीधे – साधे एवं भोले इंसान थे पर रण – क्षेत्र में उनके सामने किसी की नहीं चलती थी। उनका नाम रूद्र था, वे धार्मिक प्रवृति के इंसान थे और राजा रक्षत्र दानव प्रवृति के इंसान थे। राजा रूद्र के परिवार में केवल उनकी पत्नी थी, वे निःसंतान थे। राजा रक्षत्र के सात पुत्र थे, वे भी उन्हीं की तरह क्रूर थे। वे युद्ध के बहुत कच्चे थे इसलिए बहुत कम युद्ध लड़ते थे। राजा रक्षत्र ने काफी युद्ध लड़े थे, वे अनुभवी योधा थे जबकि राजा रूद्र ने उस मुताबिक कम युद्ध लड़े थे पर उनकी एक खासियत थी वे अपनी सेना की दो टुकड़ी के साथ हमेशा युद्ध लड़ते थे वे एक टुकड़ी को पहले भेजते थे पर जब दुश्मन उन पर भारी पड़ जाते थे तब वह दूसरी टुकड़ी निकाल देते थे।
राजा रूद्र का काफी विशाल एवं सुन्दर राज्य था, यही कारण था कि राजा रक्षत्र ने उनपर हमला किया था। राजा रक्षत्र की जनता उन्हें नापसंद करती थी, लोग तो उन्हें अंधेर नगरी चौपट राजा भी कहा करती थी राज्य में कोई भी व्यक्ति उनका सम्मान नही करता था। दोनों राज्य काफी महनत कर रहे थे ताकि वह ही युद्ध जीतें, युद्ध के दो महीनें पहले से ही उनहोंने राशन-पानी इकट्ठा करना शुरू कर दिया था ताकि मैदानीजंग में उन्हें किसी चीज़ की कमी न हो। उन दोनों देशों के बीच यह समझोता हुआ था की कोई भी यह युद्ध धोखे से जीतने की कोशिश नहीं करेगा, यह युद्ध अपनी रणकौशलता पर आधारित होगा। जब युद्ध की घडी आई तो पहले तीन दिनों तक सब कुछ ठीक चलता रहा पर पाँचवें दिन युद्ध में कपत्स्य देश की सेना ने अपत्स्य देश पर पीछे से हमला कर दिया जिस कारण राजा रूद्र की सारी सेना तितर-बितर हो गयी और इसे मौके का फायदा उठाकर राजा रक्षत्र की सेना ने राजा रूद्र को बंदी बना लिया, वह युद्ध वहीँ पर समाप्त हुआ और कपत्स्य देश की जीत हुई।
यह सारी खबर जब राजा रूद्र के एक विदेशी दोस्त; अलेक्सांद्र तक पहुँची तो उन्होंने अपनी सेना के साथ कपत्स्य देश पर चढ़ाई कर दी और उस पर धावा बोल दिया। उस समय कपत्स्य देश की सेना पहले युद्ध के कारण थकी हुई थी और दूसरे युद्ध के लिए मानसिक एवं शारीरिक रूप से तैयार नहीं थी, इसी मौके का फायदा उठाकर राजा अलेक्सांद्र ने राजा रूद्र को छुड़वा लिया और उनके साथ वापस लौट गए रूद्र। तीन सप्ताह के बाद राजा रक्षत्र ने फिर से युद्ध की घोषणा कर दी पर इस बार राजा रूद्र की काफी विशाल सेना थी क्योंकि इस बार राजा अलेक्सांद्र की सेना भी उनके साथ खड़ी थी और उनकी ही जीत हुई। इस युद्ध में रक्षत्र वीर गति को प्राप्त हुए। मरते समय राजा रूद्र ने उनसे यही कहा कि “तुमने धोके से मुझे हरा दिया था पर आज तुम वीरगति को प्राप्त हुए, यह तुम्हारे ही कारण हुआ है न तुम मुझे धोखे से बंदी बनते न ही तुम आज ऐसी स्थिति में होते।”
यही सुनते सुनते राजा रक्षत्र की मृत्यु हो गयी। राजा रूद्र ने अलेक्सांद्र का धन्यवाद किया और वे ख़ुशी ख़ुशी रहने लगे।