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Samir Gwalia

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Samir Gwalia

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रास्तें

रास्तें

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आग अंदर की अब जमने लगी है

मेरी लकीरें अब मुझसे कुछ कहने लगी है

चलते हुए चौराहे पे आ खड़ा मैं

चारो तरफ कोहरे से राहें धुंधली पड़ी हैं


अब एक राह ही चुननी पड़ेगी

शायद मैं अभी तैयार ना था

अब उलझन है कि किस रह को जाऊं

हर रास्ता धुंधला पड़ा है

और ना ही कोई आस पास खड़ा है

जिससे पुंछू, की ये रास्ता जाता कहां है


एक रास्ते की सड़कें पत्थरों की बनी है

ताज्जुब है कि उसपे कलियां खिली हैं

एक रास्ता हीरों से बना है

मगर वो बोहोत चुभता है

एक रास्ता रास्ता नहीं, कोई दरिया है

इसमें कूद जाऊं! मगर निकलने का ना कोई जरिया है

किस राह पर जाऊं अजीब समस्या है

कहीं तेज़ी है मगर काबू नहीं

कहीं कीमत है मगर सुकून नहीं

कहीं सुकून है मगर कीमत नहीं

किस राह पर जाऊँ, कुछ मालूम नहीं।



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