राखी या फॉर्मेलिटी
राखी या फॉर्मेलिटी
आज कल रक्षा बन्धन वैसा नहीं रहा जैसे पहले हुआ करता था।
वह बहन का रूठना वह भाई का चिढ़ाना वह भी नहीं रहा और रहा भी तो कब तक।
आज भी कभी कभी याद आता है वो राखी वाले दिन सुबह जल्दी उठ के नहा धोके तैयार हो जाना ताकि बहन से राखी बंधवा सके।
वो बहन के ख़ातिर मिठाई लाने के लिए पूरा साल पैसे बचना या फिर पापा से झगड़ा करके उन्ही के पैसों से बहन को मिठाई खिलाना और नहीं रहा।
वह दोस्तों के बीच हाथ दिखा के बोलना देख मेरे इतने बहन हैं वो भी नहीं रहा।
ये डिजिटल इंडिया का ज़माना क्या आ गया की आज कल तो बहनों को भाइयों के पास जाना ही नहीं पड़ता बस स्पीडपोस्ट कर लो काम खत्म।
कभी कभी वो स्पीड पोस्ट करना भूल गई तो व्हाट्सऐप तो है ही, रिश्तों का संचार मार्ग।
कभी विश करने में लेट हो गया यंही कुछ शाम के 5 या 6 बज गये तो भी कुछ नहीं, समझना तो पड़ेगा सब अपने लाइफ में बिजी ज़ो हैं भाई।
वह बहन जो साल में एक बार भी बात नहीं की होती है अचानक से उसका भी राखी आ पहुँचता है।
और हम भी कम कहां है स्पीडपोस्ट का जवाब देने के लिए अमेज़न फ्लिपकार्ट जैसे उपहार दुकानें तो भरपूर हैं।
कोई एक तोहफ़ा खरीदो और एड्रेस पूछ के भेज दो।