प्यार की दुनिया
प्यार की दुनिया
आह आह ! दादी की कराहने की आवाज सुनकर वैभवी की नींद खुली ,उसने तुरंत कमरे की बत्ती जलाई तो देखा उसकी दादी सीने पर हाथ रखकर छटपटा रही हैं। वो एकदम से घबरा गई ...क्योंकि घर पर वो अकेली थी....उसने डॉक्टर को फ़ोन लगाया पर डॉक्टर का फ़ोन स्विच ऑफ था। फिर उसने पड़ोस वाली आंटी को फ़ोन मिलाया ...उन्होंने फ़ोन उठाकर पूछा
"क्या हुआ वैभवी? तुम्हारी आवाज घबराई हुई क्यों है?"
वैभवी ने कहा -"आंटी ,दादी की तबियत ज्यादा खराब हो गई है और डॉक्टर का फ़ोन स्विच ऑफ आ रहा है। आप कुछ समय दादी के पास आ जाएँगी तो मैं जाकर डॉक्टर को लेकर आती हूँ.... ठीक है बेटा मैं आती हूँ।" कहकर उन्होंने फोन काट दिया।
आँटी के आते ही वैभवी स्कूटी से डॉक्टर के घर की ओर चल दी। रात हो चुकी थी मन में डरती हुई पर दादी के बारे में सोच हिम्मत कर आगे बढ़ी।अचानक से बिजली चमकने लगी जैसे बारिश होने वाली है। वो हिम्मत कर आगे बढ़ती जा रही थी कि अचानक तेज बारिश होने लगी .....बिजली भी गुल हो गयी ...सुनसान अंधेरी सड़क अचानक ज्यादा पानी होने की वजह से उसकी स्कूटी बन्द हो गई उसने स्कूटी को साइड में लिया। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? उसकी घबराहट बढ़ती जा रही थी.....बार बार दादी का खयाल आ रहा था। उसने आँटी को फ़ोन कर दादी का हाल जानने के लिए जैसे ही मोबाइल फ़ोन हाथ में लिया तो मोबाइल की बैटरी खत्म हो चुकी थी।
वो ज्यों ही आगे बढ़ने लगी सामने से एक कार आती दिखाई दी , कार को उसने हाथ दिया ,कार उसके पास आकर रुकी....कार की लाइट में वैभवी को देख उसने पूछा-"वैभवी तुम इतनी रात को सुनसान सड़क पर अकेले क्या कर रही हो"।
अपना नाम सुनकर वैभवी आश्चर्य में पड़ गई कि आखिर है कौन?आवाज भी कुछ जानी पहचानी सी लगी पर कौन है ये समझ में नहीं आया क्योंकि अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था।
वैभवी ने पूछा "आप कौन?"
"मैं आलोक कॉलेज में हम साथ ही पढ़ते थे।" कार से उतरे व्यक्ति ने जवाब दिया।
"ओह आलोक!तुम आज इतने वर्षों बाद...कहाँ रहे इतने दिन...."
आलोक ने कहा-"आओ गाड़ी में बैठो ,पहले ये बताओ इतनी रात में तुम कहाँ जा रही थी।"
"डॉक्टर को लाने।" वैभवी ने कहा...
"लेकिन क्यों किसको क्या हो गया?" आलोक ने पूछा तो वैभवी ने कहा- "वो मेरी दादी की तबियत ज्यादा खराब है और घर कोई नहीं, दादी के पास पड़ोस वाली ऑन्टी को छोड़ कर डॉक्टर के यहाँ जा रही थी डॉक्टर को लाने।"
"अब तुम्हें डॉक्टर को लाने की जरूरत नहीं। मैं देख लूँगा तुम्हारी दादी को।" आलोक ने कहा।
"आप कैसे देख लोगे आप डॉक्टर हो क्या?" वैभवी ने बिनासोचे समझे सवाल किया।
"हाँ मैं इसी कारण तो इतने सालों बाद आया हूँ। अब मैने यहाँ अपना एक हॉस्पिटल भी बनवा लिया है। और अब इसी शहर में रहने लगा हूँ। तुम अपने घर ले चलो।" आलोक मुस्कुराते हुए कहा।
वैभवी जब आलोक को लेकर घर पहुँची तो दादी की हालत और बिगड़ चुकी थी।
सुमित्रा ऑन्टी भी कहने लगी "मैं तुम्हें कब से फ़ोन मिला रही थी तो फ़ोन स्विच ऑफ बता रहा था।"
आलोक ने दादी की हालत देखते ही कहा "इन्हें तुरन्त हॉस्पिटल में ले जाना होगा। इनकी स्थिति गम्भीर है।इन्हें अपने साथ लेकर चलते हैं वहाँ इनका बेहतर इलाज हो पायेगा।" और डॉक्टर आलोक ने उन्हें अपनी गोद में उठाया और कार की सीट पर लिटा कर वैभवी से कहा, "तुम फौरन लॉक लगा कर आ जाओ।"
सुमित्रा आँटी ने कहा "तुम लॉक की चिंता मत करो में लगा दूँगी।यदि रुपयों की जरूरत हो तो मैं दे देती हूँ।"
डॉक्टर आलोक ने कहा "वो सब बाद में देखना अभी देर मत करो।"
हॉस्पिटल ले जाकर डॉक्टर ने उन्हें आई .सी.यू. में एडमिट कर इलाज शुरू कर दिया। वैभवी बाहर कुर्सी पर उदास बैठी थी। डॉक्टर आलोक ने वैभवी को अपने चैंबर में बुलाया और दो कॉफी का आर्डर दे दिया।
डॉक्टर ने पूछा "कैसी हो वैभवी, क्या कर रही हो अभी? और तुम्हारे माता पिता कहाँ है?"
वैभवी की आँखें बिल्कुल नम हो गयी उसने बताया "तीन वर्ष पूर्व एक एक्सीडेंट में माता - पिता दोनों चल बसे। बिल्कुल टूट गई थी मैं ऐसा लगा मेरे जीने की वजह खत्म हो गई। उनके अंतिम संस्कार और सभी काम में सभी रिश्तेदार आये फिर तेरहवीं होते ही सारे चले गए। किसी ने मुड़कर भी नहीं देखा।"
"कई दिनों तक खुद को सम्भाल नहीं पाई पर दादी ने मुझे सम्भाला और कहा नियति को यही मंजूर था अब तुम्हें सम्हलना होगा और अपने लिए कोई नौकरी भी ढूँढनी होगी।" वैभवी नजरें झुकाए बता रही थी। "फिर एक प्राइवेट कंपनी में मुझे रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई। अभी भी वहीं काम करती हूँ।"
डॉक्टर आलोक ने उसे धीरज दिया "दादी के इलाज में कोई कमी नहीं रहेगी। अब बिल्कुल चिंता मत करो।"
वैभवी ने पूछा - "खर्च कितना आएगा?"
डॉक्टर आलोक ने कहा "वो मुझपर छोड़ दो...."
वैभवी ने कहा "मुझ अनजान के लिए इतना कर रहे हो मैं तुम्हारा अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूँगी।"
डॉक्टर आलोक ने कहा "तुम्हारे लिए मैं भले ही अनजान जो सकता हूँ पर मेरे लिए तुम अनजान नहीं, मेरी वही पुरानी दोस्त।" उसकी आवाज़ बिलकुल स्थिर थी। "अमेरिका से आने के बाद मैंने तुम्हें तलाश करने की कोशिश की पर न तुम्हारा घर का पता था न मोबाइल नम्बर। आज मिली भी तो किस स्थिति में ।मैं तो ईश्वर का शुक्रिया अदा करता हूँ कि तुम मुझे मिल गई।"
बातों - बातों में ही सुबह हो गई। मरीज से मिलने का समय हो गया तो डॉक्टर आलोक ने कहा "तुम अपनी दादी से मिल आओ फिर तुम्हें घर छोड़ देता हूँ जाकर आराम करो। मैं मैकेनिक से कह दूँगा तुम्हारी स्कूटी ठीक करवाकर घर पर छोड़ देगा।"
वैभवी दादी से मिलने गए। शायद दवा के प्रभाव से वो सो रही थीं।पर देखकर थोड़ा सुकून मिला कि वो रात की तरह कराह नहीं रही थीं। वो चुपचाप मिलकर आ गयी।
डॉक्टर ने कहा "चलें?" सर हिलाकर सहमति दे दी।
घर तक पहुँचकर वो उतरकर धन्यवाद कह जाने लगी तो डॉक्टर आलोक ने कहा "अगर एक कप कॉफ़ी तुम्हारे हाथ की मिल जाती तो धन्यवाद से बढ़कर होता।"
"हाँ हाँ क्यों नहीं?" सकुचाते हुए उसने कहा।
"आ जाओ..." सुमित्रा ऑन्टी से चाभी लेकर उसने ताला खोला और अंदर गई ....पीछे पीछे डॉक्टर आलोक....
वो कॉफ़ी बनाकर लाई उसने जैसे ही आलोक को कप पकड़ाया उसके हाथ में उसकी उँगली का स्पर्श पाकर अजीब सी सिहरन दौड़ गई।नजर झुकाकर वो भी सामने कुर्सी पर बैठ गई।
"तुम्हें इन पाँच सालों में अभी भी मेरा ख्याल नहीं आया?" डॉक्टर आलोक ने कॉफी का कप पकड़े हुए पूछा।
"नहीं, पर आप ये क्यों पूछ रहे हैं? मैं ऐसी उलझ गई थी खुद के विषय में सोचने का कभी वक़्त ही नहीं मिला। हाँ आपके जाने के बाद कुछ वक्त उन कॉलेज के दिनों की बातें याद आती थी। हम साथ में गाना गाए थे। या एक दूसरे की पढ़ाई में मदद करते थे वो तो याद आता था पर मम्मी - पापा के जाने के बाद में बिल्कुल टूट गई।" वैभवी ने साफगोई से उत्तर दिया।
"ये तो वास्तव में बहुत दुखद खबर है। पर मैं तुम्हें कभी भूल नहीं पाया।मेरी मेडिकल की पढ़ाई के दौरान भी तुम मेरे खयालों में हर पल आती रही। सोचा पढ़ाई पूरी करने के बाद आकर तुमसे मिलूँगा। आकर बहुत कोशिश की तुम्हें ढूंढने की। कल जाकर मेरी तलाश पूरी हुई।" कॉफी का कप अभी भी आलोक के हाथ में ही था।
वैभवी नजर उठा नहीं पा रही थी फिर भी हिम्मत कर कहा। "तुम्हें अब मुझे भूल जाना चाहिए। कहाँ तुम एक प्रतिष्ठित डॉक्टर और मैं प्राइवेट कंपनी में काम करती मामूली रिस्पेसनिष्ट. कहीं से भी हमारा मेल नहीं इस रिश्ते को यहीं खत्म कर दें तो अच्छा रहेगा।"
डॉक्टर आलोक ने कहा-" मैं तो तुम्हें कॉलेज के वक़्त से चाहने लगा था पर यही सोच लिया था जब कुछ बन जाऊँगा उसके बाद ही तुम्हारे मम्मी - पापा से तुम्हारा हाथ मांग लूँगा। अब तो मेरे भी मम्मी - पापा तो रहे नहीं और तुम्हारे भी पर रास्ता जरूर दिखा दिया।...एक इशारा दिया उन्होंने।"
"अच्छा ठीक है बहुत देर हो गई मैं चलता हूँ घर जाकर तैयार होकर वापस हॉस्पिटल भी पहुँचना है तुम कहो तो तुम्हें भी लेता चलूँ?" वैभवी को असहज होते देखकर आलोक ने कहा।...
"ठीक है में भी तैयार हो जाती हूँ।" वैभवी ने कहा।
दोपहर के वक़्त जब दोनों हॉस्पिटल पहुँचे तो सीधे दादी के पास पहुँचे। अब दादी की नींद खुल गयी थी और खुद को हॉस्पिटल में देख पूछने लगी कि "मैं यहाँ कैसे आ गई.... ये तो बहुत महँगा अस्पताल है...इतने पैसे वो बच्ची कहाँ से लाएगी?"...
वैभवी कुछ कहती उससे पहले डॉक्टर ने कहा -"ये सरकारी अस्पताल है। इसमें आपका कोई खर्च नहीं लगेगा और बेहतर इलाज होगा।" वैभवी मन ही मन डॉक्टर के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने लगी।
दादी के मन में इस बात की चिंता थी कि वैभवी के हाथ पीले कर उसे विदा कर दूँ फिर चैन से मर सकूँगी। अचानक उन्हें फिर से दिल का दौरा पड़ा और वो मूर्छित सी हो गयी वैभवी दौड़कर डॉक्टर के चैंबर की ओर गई और एकदम से रोती हुई बोल पड़ी "आलोक, वो दादी . . . . !!" इससे आगे कुछ कहा न गया।
डॉक्टर शीघ्रता से दादी के पास पहुँचे उन्होंने तुरंत जो उपचार देना था दिया और वैभवी से कहा- "इन्हें फिर से दिल का दौरा पड़ा है।स्थिति अब और बिगड़ गयी।"
तभी दादी की मूर्च्छा टूटी तो दादी ने डॉक्टर से कहा - "मेरे बाद मेरी पोती का ध्यान रखने वाला कोई नहीं यदि मैं मर गई तो मुझे इसकी चिंता चैन नहीं लेने देगी।"
स्थिति गम्भीर देख डॉक्टर आलोक ने दादी से हाथ जोड़कर कहा- "मैं आपसे हाथ जोड़कर आपकी पोती का हाथ माँगता हूँ और आपसे वादा करता हूँ कभी जिंदगी में इसे कोई कष्ट नहीं होने दूँगा।" दादी की आँखों से आँसू बह निकले। अपनी पोती की किस्मत पर यकीन न आया।
तभी डॉक्टर ने कहा -"मैं कुछ देर में आता हूँ।" और एक अँगूठी और सिंदूर की डिब्बी लाकर दादी के सामने वैभवी को पहना दिया और सिंदूर से माँग भर दी। बहुत ही सादगी से कुछ डॉक्टर और नर्स की मौजूदगी में वैभवी को अपना जीवन साथी बना लिया।
दादी ने दोनों हाथ उठाये आशीर्वाद की मुद्रा में और हाथ खुद नीचे गिर गए। चेहरे पर असीम शांति लिए वो इस दुनिया से जा चुकी थीं। उनका अंतिम संस्कार भी डॉक्टर आलोक ने किया। वैभवी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो खुश होए या रोये।
उस रात की बारिश ने वैभवी की जिंदगी पूरी तरह बदल दी। अब वो डॉक्टर आलोक के हॉस्पिटल में ही उनके संग जाने लगी। और उन दोनों के प्यार की दुनिया खुशी - खुशी बस गई।
