ऑटो की जादुई पेट्रोल टंकी
ऑटो की जादुई पेट्रोल टंकी


एक बहुत ही प्रसिद्ध कहानी आप लोगों को मैं सुनाना चाहता हूं जो मैंने अपनी दादी से सुनी थी। शायद आप लोगों ने भी पहले कभी सुनी हो।
एक गांव में महेश नाम का व्यक्ति रहता था। बचपन से ही उसका सपना एक बड़ा आदमी बनने का था। पढ़ाई-लिखाई व गुणों में निपुण होने के बाद भी उसकी कहीं अच्छी नौकरी ना लगी। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। महेश के पिता जी ऑटो चलाते थे और माँ घर संभालती थी। वह उनका इकलौता बेटा था।
एक और महेश के माता-पिता बूढ़े हो रहे थे और दूसरी ओर उसके सपने थे कुछ कर गुजर जाने के। परन्तु घर में बड़ा होने के नाते उसकी भी जिम्मेदारी बनती थी कि वह भी घर को संभाले। समय बीतता जा रहा था और अब मजबूरन उसे अपने पिता जी का ऑटो चलाना पड़ा।
वह दिन रात ऑटो चलाता और अपने परिवार के लिए चार पैसे कमाता। दिन गुजरते गए और महेश यूँ ही ऑटो चलाता गया। कुछ खास तो नहीं, हां लेकिन ठीक-ठाक कमाई हो जाया करती थी। ऑटो चलाते हुए बस कुछ साल ही हुए थे कि बुरे वक्त ने महेश की जिन्दगी में दस्तक दी।
महेश का बुरा वक्त
बुरा वक्त जब भी इंसान की जिंदगी में आता है सब कुछ बहा ले जाता है। वह समझ नहीं पाता कि उसके लिए क्या सही है और क्या गलत। वह बस उसके साथ चलता चले जाता है। महेश की जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही हुआ। जब भी वह सुबह ऑटो चलाने के लिए निकलता तो कोई ना कोई बाधा उसके जीवन में आ जाती। कभी सवारी उसके ऑटो में नहीं बैठती, यदि बैठती तो जल्दी उतर जाती, कभी सवारियों से झगड़ा हो जाता, कभी उसके ऑटो का टायर पंचर हो जाता, कभी कोई पैसे उधार कर ना चुकाता, कभी कबार देर देर तक इंतजार करने के बाद भी कोई सवारी नहीं मिलती, कभी घर में कोई समस्या आ जाती, कभी पेट्रोल जल्दी खत्म हो जाता। ऐसी कोई छोटी-मोटी समस्याएं उसके जीवन का हिस्सा बन गई थी। इन सारी चीजों से उबर नहीं पा रहा था।
महात्मा जी से पहचान
रविवार का दिन था। सवारी ना मिलने की वजह से महेश परेशान था। उदास बैठा हुआ महेश पीपल के पेड़ के नीचे आराम कर रहा था। सुबह से लेकर शाम हो गई थी परंतु एक भी सवारी उसके ऑटो में नहीं बैठी। उसी दौरान उसके सामने से एक महात्मा जी निकले। महात्मा जी ने महेश से पूछा, " क्या बात है भाई इतना उदास क्यों बैठे हो?" महेश ने महात्मा जी को अपनी समस्या के कारण बताया। महात्मा जी बड़े तपस्वी व ज्ञानी थे। इस बात का ज्ञान महेश को नहीं था। बातचीत करते करते दोनों की जान-पहचान हुई और पर वह थोड़ी देर में एक दूसरे से घुलमिल गए।
महात्मा जी ने महेश के दुखों का कारण सुनकर बस इतना ही कहा,"तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा। मेरी एक गुज़ारिश है, सुना है यहां शिवजी का एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है। क्या तुम मुझे वहां पर छोड़ सकते हो? महेश बहुत अच्छा आदमी था। वह अक्सर लोगों की मदद किया करता था।
उसने महात्मा जी से कहा, "मेरी गाड़ी में बस कुछ ही पेट्रोल बचा है। परन्तु आप चिंता मत कीजिए, मैं आपको शिवजी के मंदिर जरूर ले चलूंगा। महात्मा जी ने महेश से पूछा "यदि तुम मुझे मंदिर तक छोड़ोगे तो अपने घर कैसे जाओगे।" महेश ने कहा, "आप चिंता ना करें मैं संभाल लूंगा।" कुछ समय पश्चात महेश ने महात्मा जी को गांव के प्रसिद्ध शिवजी के मंदिर में छोड़ दिया। विदा लेते वक्त महात्माजी ने महेश के ऑटो की पेट्रोल टंकी पर हाथ रखकर बोला, महेश! तुम्हारे सारे काम सफल होंगे, तुम अपने जीवन में बहुत आगे बढ़ोगे। यह मेरा आशीर्वाद है। परन्तु इस बात का ध्यान रखना कि तुम इस ऑटो के पेट्रोल की टंकी को कभी खोलकर मत देखना। महेश ने उनकी आज्ञा का पालन किया।
नए जीवन की शुरुआत
अगले दिन जब महेश अपने ऑटो संग काम पर निकला, दिन के शुरुआत से ही उसे सवारी मिलने लगी। एक सवारी को छोड़ता, तो दूसरी तैयार। दिन बीतता गया और उसे लगातार सवारी मिलते गई। दिन खत्म होते-होते उसने काफी अच्छी कमाई कर ली थी। यह उसकी जिंदगी का पहला सबसे अच्छा दिन था जब उसने पैसे कमाए थे। वह उस दिन बहुत खुश था। अगले दिन की भी यही कहानी थी। ढेर सारी सवारी उसके ऑटो में बैठने के लिए तैयार थी। मानो दुनिया में केवल उसका ही एकमात्र ऑटो बचा हो।
सब अच्छा चल रहा था। बुरा समय दूर चला जा रहा था और अच्छा समय पास आ रहा था। दिन दुगनी रात चौगुनी की तरह उसकी तरक्की होते जा रही थी। अब उसके जीवन से काले बादल हट चुके थे। वह अपने जीवन में तरक्की करते जा रहा था। गाड़ी, बंगला, पैसा, घर सब कुछ उसके पास था। उसे किसी चीज की कमी नहीं थी और यह सब कुछ ऑटो के बदौलत हो रहा था। वह बहुत खुश था।
अब उसे ऑटो चलाते हुए लगभग 10 साल हो गए थे। उसने 10 साल से एक बार भी अपने ऑटो में पेट्रोल नहीं डलवाया था। वह भी नहीं जानता था कि उसके साथ क्या हो रहा है? दिन रात उसका ऑटो अपने आप चलते जा रहा था।
एक दिन महेश का परम मित्र सुरेश उसके घर पर आया। वह भी उसके संग ऑटो चलाया करता था। उसने महेश से पूछा, "मित्र मैं भी तुम्हारे साथ ऑटो चलाता हूं। जितनी तरक्की तुमने की मैं तो उसका आधा भी नहीं कर पाया। तुमने अपने जी वन में इतनी तरक्की कैसे की? सुरेश महेश का परम मित्र था। वह उसके साथ अपने सारे सुख-दुख बांटा करता था। उसने कहा, "यह बात सत्य है कि मैं भी नहीं जानता कि मैंने अपने जीवन में इतनी तरक्की कैसे हासिल की। एक दिन मुझे एक महात्मा मिले। जाने अनजाने में मैंने उनकी सहायता की और उस सहायता के बदले वह मेरी जिन्दगी बदल देंगे, यह मैंने कभी नहीं सोचा था। उन्होंने मेरे ऑटो के पेट्रोल की टंकी पर हाथ रखकर यह कहा, "कि तुम्हारे सारे काम सफल होंगे परन्तु इस ऑटो के पेट्रोल की टंकी को कभी खोलकर मत देखना। बस वह दिन और आज का दिन, दोनों में जमीन आसमाँ का फर्क है।"
महेश की बात सुनकर सुरेश को आश्चर्य हुआ। उसने महेश को सुझाव दिया, "क्यों ना हम एक बार इस पेट्रोल की टंकी को खोल कर देखें। आखिर कैसे यह ऑटो 10 साल से बिना पेट्रोल के लगातार दिन-रात चल रहा है। आखिर यह कैसी जादुई पेट्रोल टंकी है?
महेश ने सुरेश की बात मानी और दोनों ने ऑटो की जादुई पेट्रोल टंकी खोलकर देखी। जब उन्होंने पेट्रोल की टंकी खोली तो महेश को एक झटका सा लगा। देखा तो ऑटो की पेट्रोल की टंकी पूरी खाली थी। वह दोनों आश्चर्यचकित हो गए और सोच में डूब गए कि आखिर कैसे यह ऑटो बिना पेट्रोल की अब तक 10 साल तक चल रहा था?
उन्होंने कुछ भी समझ नहीं आया।
अगले दिन जब महेश ऑटो लेकर निकला तो उसके वही पुराने दिन चालू हो गए थे। देर देर तक इंतजार करने के बाद भी उसे कोई सवारी नहीं मिलती थी। वह सहम गया की महात्मा जी की आज्ञा का पालन ना करके उससे बहुत बड़ी भूल हो गई है। उसे वह पेट्रोल की टंकी खोलकर नहीं देखनी चाहिए थी। वह बहुत पछता रहा था और उन महात्मा जी के राह देख रहा था जिसने उनकी जिंदगी बदल दी थी। परंतु ऐसा बिल्कुल नहीं होने वाला था।
जिंदगी सिर्फ एक बार मौका देती है बार-बार नहीं