STORYMIRROR

नीलम गुप्ता (नजरिया)

Children Stories

4  

नीलम गुप्ता (नजरिया)

Children Stories

नन्ही कली की मासूमियत

नन्ही कली की मासूमियत

4 mins
220

हमारा घर कितना सुना सुना है,कहने को राखी का त्यौहार है,लेकिन घर में कोई रौनक नहीं। "काश! हमारी भी एक बहन होती तो कितना अच्छा होता।सुंदर सुंदर राखी लाती। माथे पर तिलक करती कलाई में बहुत सुंदर सी राखी बांधती। हमारी सलामती की दुआ करती ।और हम भी उसको सुरक्षा करने का आश्वासन देते । कितनी रौनक होती त्यौहार त्योहार सा लगता। अब देखो कैसा सब फीका फीका है ।लग ही नहीं रहा कोई त्यौहार भी है घर में। इस त्योहार पर तो मेरा मन और भी बुझ जाता है।"अरूण अपने भाई अनुज से उदास होकर कहा। यह बातें उसकी मम्मी सुन रही थी।

"चाहते तो हम भी थे। हमारे घर एक नन्ही सी कली खिले । लेकिन भगवान ने हमें दो बेटे दिए। बेटियां ही घर की रौनक होती है ।और एक बेटी मां का तो रिश्ता ही निराला होता है । मां अपनी बेटी से अपना हर सुख दुख बांट देती है इतना तो वह अपने पति और बेटों से भी नहीं कह पाती। जितना वह अपनी बेटी को सहेली बना उसके साथ तालमेल बिठाकर उसके साथ जीवन जीती है ।अपनी अच्छी बुरी सब बातें उससे शेयर कर लेती है। और इनकी तो दिली ख्वाहिश की मां की तरह वह इन पर हुकुम चलाएं और पापा की परी बने।क्योंकि बहन भी नही है कम से कम एक बेटी तो जरूर चाहिए।"

यह सोचते हुए गरिमा ने दोनों बच्चों को उदास देखकर समझाया .."चलो मामा के यहां चलते हैं मैं वहाँ मामा को राखी बांधूंगी , तब वहां पर रौनक होगी ।

इससे अच्छा तो मामा के यहां चलो, वहां त्योहार त्योहार से लगते हैं ।यहां तो सब सूना -सूना लगता है।" दोनों खुशी-खुशी तैयार होने लगे।

तभी एक छोटी सी गुड़िया की आवाज आई "आंटी आंटी ..."

गरिमा ने देखा कौन है ?तभी उनके दरवाजे पर एक लगभग 8 से 10 साल की लड़की और उसकी मम्मी खड़े हुए थे ।उन्होंने बताया अभी कुछ दिनों पहले ही यहां पर आए हैं सोचा त्यौहार है, आप से भी मिल लिया जाए ,और मुझे कुछ सामान भी लेना है। तो प्लीज मुझे यहां पर किराने की दुकान किधर है ।

गरिमा ने कहा आप अंदर आ जाइए मैं आपके लिए चाय लेकर आती हूं फिर बैठ कर बातें करेंगे।

इतने में वह छोटी गुड़िया अरुण और अनुज के साथ खेलने लगी ।उसने पूछा आप दोनों की कलाई पर राखी नहीं है क्या ?आपकी कोई बहन नहीं है ?उन्होंने उदासी से मना किया तो, उस गुड़िया ने झट राखी उठाई और दोनों को बांध दी। देखो मैं आपकी बहन बन गई। और तुम दोनों मेरे भाई, लाओ मेरा गिफ्ट लाओ । गुड़िया ने बहुत मासूमियत से कहा।

गुड़िया की मम्मी ने कहा बेटा ऐसे नहीं करते हैं। तभी गरिमा बोल पड़ी ,"नहीं तुमने बहुत अच्छा किया ।आज तो तुम इन दोनो की खुशी बनके आई हो। तुम आज से इन दोनों की बहन हो। और बताओ तुम्हें गिफ्ट में क्या चाहिए।"

बच्चे कितने नादान और मासूम होते हैं झट एक रिश्ता कायम कर लेते हैं। यह तो हम बड़े लोग ही हैं जो न जाने रिश्ता बनाते हुए भी क्या क्या सोचते हैं। अपना नफा नुकसान ही देखते रहते हैं। लेकिन यह मासूम बच्चे कितने दिल के सच्चे होते हैं ।गरिमा ने उसे से एक चॉकलेट बॉक्स दिया ।वह लेकर वह गुड़िया बहुत खुश हुई ।आज उसकी वजह से उसके घर में त्यौहार की रौनक बढ़ गई ।त्योहार त्योहार सा लगा ।अरुण और अनुज के चेहरे भी अपनी कलाई पर राखी देख देख कर मुस्कुरा रहे थे। कि चलो किसी ने तो हमारे हाथ पर राखी बांधी आज हमें हमारी बहन मिल गई।इसी अद्भुत एहसास के साथ दोनों खुशी-खुशी मामा के जाने के लिए तैयार हो रहे थे।

ऐसे ही मिलजुलकर हंसी खुशी के साथ दिन गुजरने लगी। गुड़िया का एडमिशन भी अरुण और अनुज के स्कूल में करा दिया ।जिससे वह तीनों एक ही बस में स्कूल जाते थे। वह दोनों गुड़िया का बहुत ध्यान रखते थे। कोई उसको जरा कुछ कहता तो दोनों लड़ने लग जाते थे। जैसे उसकी रक्षा की जिम्मेदारी उन्होंने अपने साथ ले ली थी। एक राखी के बदले उसे सुरक्षा का वादे को पूरी तरह से निभा रहे थे। बहुत दिनों बाद उन्हें यह खुशी मिली थी।दोनों परिवारों में खूब मेल हो गया। एक नन्ही कली की मुस्कान ने चारों तरफ खुशियां ही खुशियां बिखेर दी।

कुछ को तो भगवान चाहते हुए भी इस खुशी से अलग रखते हैं। लेकिन जिन्हे ये खुशी मिलती है। वह ऐसे कुछ बदनसीब ऐसे होते है जो इस अमूल्य मुस्कान की अहमियत समझ नही पाते।और अपने जीवन की इस खुशी से सरोकार नही करते है।


இந்த உள்ளடக்கத்தை மதிப்பிடவும்
உள்நுழை