नीयत और बरकक्त
नीयत और बरकक्त
किसी गाँव में तीन भाई थे। वे जाति से कुम्हार थे। उनका पिता सीधा-साधा, ईमानदार, परिश्रमी और विवेकी था। समय से पिता ने अपनी सूझ-बूझ से तीनों के कारोबार और परिवार का अलग-अलग निर्वाह करने का आदेश दे दिया। पिता को पसंद नहीं था कि कारोबार को लेकर तीनों भाइयों में और घर में घर-गृहस्थी के कामों को लेकर बहुओं में कलह मचे। पिता के इस निर्णय के विरुद्ध कुछ कहने की क्षमता किसी में न थी। साथ ही साथ पिता ने सबसे छोटे बेटे के साथ रहने का फैसला भी सुनाया।
तीनों भाइयों में गजब की एकता थी। हर काम एक-दूसरे से सलाह मशवरा करने के उपरांत ही करते थे। बाजार-हाट से की जाने वाली खरीदारी से लेकर खदान से मिट्टी लाने तक का सभी कार्य एक साथ करते थे। सम्पूर्ण परिवार खुशी-खुशी अपना जीवन निर्वाह कर रहे थे।
एक दिन तीनों भाई तड़के ही खदान से मिट्टी लाने के लिए निकले। खदान गाँव से काफी दूर था। तीनों ने अपने-अपने गधों को भी साथ ले लिया। तीनों भाई बात-चीत करते-कराते खदान पहुँचे। खदान पहुँचकर पहले कुछ देर आराम कर तीनों ने अपने-अपने गधों पर मिट्टी लदवा ली। खदान का मालिक भी उन्हें देख बहुत खुश होता।
तीनों भाई खदान से अपने गधों के साथ निकल ही रहे थे। तभी खदान के मालिक ने उन्हें रोक पूछा, “ एक बात पूछूँ क्या?”
हाँ-हाँ ! क्यों नहीं ?(बड़ा भाई कहता है।)
सेठ जी आपका और हमारा तो वर्षों का नाता है। आपको पूछने का पूरा हक है। (दूसरा भाई कहता है। )
सेठ जी आप हमारे पिता जी के बहुत अच्छे मित्र हैं। इसलिए आप हमारे पिता तुल्य ही हैं। हमारे बड़े होने के नाते आप पूरे हक से हमसे कुछ भी पूछ सकते हैं। (बड़े ही नम्र स्वर में तीसरा भाई बोला। )
सेठ तीनों की बातें सुन फूला न समाया। कुछ नहीं, मैं बस ऐसे ही ...।
सेठ जी यदि दिल में कोई बात आई है तो आप पूछ लीजिए। बड़े भाई ने कहा।
बेटा तुम तीनों भाई एक ही काम करते हो। तीनों अपने चाक के लिए मिट्टी मुझसे ही लेते हो। तुम तीनों ने बर्तन बनने की कला भी एक इंसान अर्थात अपने पिता से सीखी है मगर फिर भी तुम तीनों में सबसे छोटे भाई की आमदनी भी अच्छी है और पूरे गाँव में उसके हाथ के बने बर्तनों की माँग भी बहुत है। मिट्टी वही, सिखाने वाला भी वही फिर ...?
सेठ जी वैसे हमने कभी इस विषय में सोचा ही नहीं और इस बात का हमें कोई अंदाजा भी नहीं है। अपना-अपना भाग्य है। और कुछ नहीं।
तीनों भाई खदान से घर की ओर चल दिए। रास्ते में तीनों ने बात तो की कि मगर दिमाग में सेठ जी का ही प्रश्न कौंध रहा था।
तीनों घर पहुँचे। पिता ने उनके चेहरों से भाँप लिया कुछ तो जरूर हुआ है। खाना खाने के पश्चात पिता ने तीनों बेटों को बुलाया।
पिता ने तीनों से पूछा, “क्या बात है ? आज तुम तीनों के चेहरों का रंग क्यों उड़ा हुआ है ? रास्ते में किसी ने कुछ कह दिया क्या ?”
नहीं पिता जी कुछ खास नहीं। (बड़े बेटे ने कहा। )
खास नहीं होता तो तुम्हारे चेहरों की हवाइयाँ न उड़ी होती। तुम बोलो छोटे। क्या बात है ?
पिता के पूछने पर छोटे बेटे ने खदान वाली पूरी घटना सुना दी।
बस इतनी-सी बात। (पिता कहता है। )
पिता जी आपको इतनी-सी बात लग रही है। (मझला बेटा कहता है।)
तुम्हारी परेशानी का हल मेरे पास है। लेकिन जो कुछ भी मैं कहूँ उसका सही जवाब देना। सबसे पहले बड़े बेटे से, “ चाक पर काम करते समय तुम्हारी भावनाएँ क्या होती है ?”
आपका प्रश्न तो बड़ा ही सरल सा है। इसमें भावनाओं का क्या ? यह तो हमारा पुश्तैनी काम है। इसके अलावा दूसरा कोई काम भी तो नहीं आता। यहाँ भावनाओं की जरूरत ही नहीं।
फिर दूसरे बेटे से ?
चाक पर मिट्टी रखते समय यही ख्याल होता है कि गुजर बसर हो जाए और बीबी-बच्चों की ख्वाहिश पूरी कर सकूँ।
अंत में तीसरे बेटे से ?
तीसरा बेटा कहता है कि मैं तो यही सोचता हूँ कि गुरु के रूप में आपने जो कुछ सिखाया है वह कभी व्यर्थ न जाए। पारंपरिक कला का सम्मान सदैव हृदय में रहे तथा मेरे बनाए बर्तन जिस कार्य के लिए खरीदा जाए वह खरीदने वाले की उम्मीद पर खरा उतरे। कुल्हड़ का पानी पानी पीने वाले की प्यास बुझा सके और सकोरा व्यंजन के स्वाद से तृप्त करा सके तथा दीपक की रोशनी हर घर के अँधियारे को दूर कर सके।
छोटे बेटे के विचार सुन पिता की आँखें द्रवित हो आई। छोटे भाई की नीयत और बरकक्त का राज दोनों बड़े भाई भी समझ गए।
खदान – मिट्टी की खान
पुश्तैनी- जो कई पीढ़ी से चला आ रहा हो
कुल्हड़ – मिट्टी का गिलासनुमा पात्र जिसे चाय या पानी पीने के लिए प्रयोग किया जाता है
सकोरा – मिट्टी की एक प्रकार की छोटी कटोरी
बरकक्त- बरकत, कमी न पड़ना
