Amit Radha Krishna Nigam

Others

3  

Amit Radha Krishna Nigam

Others

मंथरा

मंथरा

3 mins
161


मैं मंथरा हूं

मैं जानती हूं कि मेरे अपयश की गाथा युगों-युगों तक गाई जाएगीमुझे यह संपूर्ण विश्व कुटिलता का पर्याय समझेगामैं जानती हूं की दुनिया की हर मां मुझ से यह सोच कर घृणा करेगी कि श्री राम जैसे माता-पिता भक्त पुत्र को, जिसकी जगह सदैव हृदय में होनी चाहिए, सिर्फ अपने निजी पुत्र मोह के कारण, राजमहल और देश से निष्कासित कर, वनवास की पीड़ा भोगने क्यों भेज दिया।

जो भाई श्री राम पर अपने प्राण न्योछावर करते थे, उनको उनके देव तुल्य भाई से इतने वर्षों के लिए अलग किया।

देवी जैसी पुत्रवधू सीता को भी उस कष्टदायक वन-अग्नि को सौंपा

मैंने क्षण के लिए भी यह नहीं सोचा कि श्रीराम के वन जाते ही अयोध्या की प्रजा दुख के घोर अंधकार में डूब जाएगी।

यहां तक की रघुकुल वंश के धर्मराज महाराज दशरथ और अपने पति के प्राणों की चिंता किए बिना, उनके द्वारा मुझको स्नेह वश दिए गए वचनों का मान भंग करके, बड़े ही कपट और चालाकी से, उन वचनों को उन्हीं के खिलाफ प्रयोग कर, महाराज को उनके कलेजे के टुकड़े श्री राम से दूर कर, मैं जिस अधर्म और पाप की जननी बनी, वास्तव में उसी अधर्म और पाप ने इस सृष्टि को श्री राम से मिलाया।

प्रभु श्रीराम इस सृष्टि और तीनों लोगों के एकल स्वामी है। वह संपूर्ण त्रिगुणातीत भगवान है इसलिए उनकी इच्छा के बिना इस संसार में कुछ भी होना संभव नहीं।

इसलिए यह मेरे प्रभु की मुझ पर कृपा थी कि उनके वन गमन के पीछे सबसे बड़ा हाथ मेरा था।

यानी कि प्रभु की हर लीला जैसे – वन में जाकर दैत्यों का संहार करना, हनुमान, शबरी और सुग्रीव जैसे अपने अनन्य भक्तों से भेंट करके उनका जीवन सफल करना, सालों से श्री राम की तपस्या और इंतजार में बैठे हजारों ऋषि-मुनियों के आश्रम जाकर उनको अनुग्रहित करना, खर दूषण जैसे हजारों दैत्यों का उनकी सेना समेत संहार करके धर्म की रक्षा करना, रावण जैसे त्रिलोक विजय असुर के पापों से पृथ्वी और देव लोगों को मुक्त करना अथवा मर्यादा, मानवता, मित्रता, वचन परायणता, कर्मठता, सत्य और बलिदान जैसे जीवन के मूल्यों की परिभाषा और पराकाष्ठा स्थापित करना – इन सब का थोड़ा श्रेय मुझे भी मिलना चाहिए।

मैं मंथरा हूं और जब जब इस सृष्टि को एक आदर्श पुत्र, एक परम प्रतापी राजा, एक आदर्श पति, अधर्म का संपूर्ण नाश करने की शक्ति रखने वाले एक आदर्श क्षत्रिय, एक आदर्श मित्र व भाई, और संपूर्ण मानव समाज को नैतिकता, नीतिपरायणता, धर्म और सत्य के सूत्र से, एक सेतु की तरह जोड़ने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की आवश्यकता होगी

तब तक मैं मंथरा, अपने अपयश और अपकीर्ति का भान होने के बावजूद, दशरथ पुत्र को वन जाने के लिए विवश करती करूंगी।

जय श्री राम


Rate this content
Log in

More hindi story from Amit Radha Krishna Nigam