Premlata Yadu

Others

5.0  

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महंगाई और ज़ायका

महंगाई और ज़ायका

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श्रीमती जी के द्वारा खाना परोसते ही बेटा पप्पू जो वैसे तो पूरी तरह से पप्पू ही है,ले किन यहाँ अपनी दिमाग दौड़ा गया,और बड़ी ही चालाकी से यह कहते हुए खिसक गया कि-" मम्मी मैनें अपने दोस्त के घर पर खाना खा लिया हैं। मैं नहीं खाऊगा।" फंस गए बेचारे श्रीमान जी जिनके लिए वहाँ से भागना आसान ना था और खाना खाना किसी युद्ध से कम भी ना था। बेचारे क्या करते चुपचाप बैठ गए। कैसे कहते बिना प्याज के सलाद और सब्जी बेस्वाद लगती है।ऊपर से सब्जी भी कौन सी, टिन्ड़े और लौकी की,और फिर बनाया किस ने है ? whattsup, facebook व google विश्वविद्यालय की नियमित छात्रा एवं पाक कला में माहिर श्रीमती जी ने। 

किसी जमाने में जिन सब्जियों के भाव फर्श पर हुआ करते थे आज अर्श पर है। इस मंदी के दौर में हम जैसे साधारण घरों में लौकी, टिन्ड़े के अलावा कुछ और सब्जियों की कल्पना करना भी बेमानी है। अपने आप को सांत्वना देते हुए एवं स्वयं को सभी ओर से घिरा पा अचानक श्रीमान जी के मस्तिष्क के चक्षु खुले और उन्होंने अचार मांगने का निर्णय लिया, किन्तु जैसे ही उन्हें श्रीमती जी की तिरछी नज़रों का ख्याल आया श्रीमान जी ने अचार मांगने का प्लान स्थगित कर दिया। उन्हें सूझ ही नहीं रहा वे क्या करे? अगर वे कहते हैं " खाना खा कर आए है या खाना नहीं खाएगे" तो ढेरों सवालों की झड़ी लग जाएगी, जिसका जवाब देना उनके लिए उतना ही मुश्किल होगा जितना प्याज के बढ़ते भाव और महँगाई को रोकना। सरकार भले ही बढ़ते महँगाई के साथ देश चला सकती हैं परन्तु एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार के लिए इस बढ़ती महँगाई के साथ घर और बीवी चलाना एक विकट समस्या है।

खाने की टेबल पर श्रीमती जी के चहरे पर मुस्कान देख श्रीमान जी असमंजस में पड़ गए। कहीं मैडम जी की छोटी सी मुस्कान बड़ी महंगी ना पड़ जाए। इस मुद्रास्फीति के दिनों में यदि श्रीमती जी जान मांग ले तो देना सस्ता पड़ेगा, लेकिन यदि भूले से भी 1 किलो प्याज मांग ले तो क्या होगा....? प्याज के भाव अभी 80 रूपए से 120 रुपए किलो है। नहीं....नहीं....ऐसा नहीं हो सकता। यह सब सोच श्रीमान जी के पसीने छूटने लगे। वस्तुस्थिति को देखते हुए श्रीमान जी को राजकपूर साहब पर फिल्माया गाना याद आने लगा "दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई काहे को दुनिया बनाई" वे सोचने लगे यदि आज के दौर में यह गाना लिखा जाता तो जरूर कुछ इस प्रकार होता - " प्याज बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई काहे को प्याज बनाई... उस पर बढ़ती हुई ये महँगाई..."

श्रीमान जी खाना निगलते हुए अपनी ही कल्पनाओं में खोए हुए थे कि श्रीमती जी ने पूछा - " खाना कैसा बना हैं? बिना प्याज के टेस्टी सब्जी बनाने की रेसेपी मैंने U-Tube channel पर देख कर बनाई है। यह सुन श्रीमान जी पुनः विचाराधीन हो गए। आज जहाँ नेट, डेटा पैक का ग्राफ लोगों में बढ़ता जा रहा है, वहीं ना जाने कैसे MTNL और BSNL का लेखचित्र गिरता जा रहा है। जो समझ से परे है।

प्रश्न का जवाब ना पा श्रीमती जी दोबारा 4G की स्पीड पर गुर्राती हुए बोली-"सब्जी कैसी बनी है ?"श्रीमान जी जो moved out of coverage area थे, तुरंत signal पकड़ते हुए बोले-" खाना ज़ायकेदार बना है।" मुंह और हाथ की जंग समाप्त होते ही बिलासपुर वाली मौसी जी का फोन आ गया, मामा जी नागपुर जा रहे हैं और उनके लिए खाना रेलवे स्टेशन पहुँचाना है। 

‎इस महँगाई के जमाने में रिश्तेदारी निभाना भी एक कठिन प्रक्रिया है, बिल्कुल वैसा ही जैसे पांच रुपए के समोसे को जबरदस्ती five star hotel में पचास रुपए में खाना और उस पर नहीं चाहते हुए भी tip देना। पूरे मान सम्मान के साथ मामा जी के लिए खाना पहुंचाना है यह जान श्रीमान जी के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई, क्योंकि मामा जी ठहरे खाने के शौकीन उनके लिए विशेष मसालेदार खाना बनाना होगा और स्टेशन भी जाना होगा जिसमें पेट्रोल भी जलेगा कुल मिला कर श्रीमान जी के जेब पर कैंची का चलना निश्चित है। यह सब जान श्रीमती जी के चेहरे पर भी थोड़ी सी सिकन आ गई। आखिर महँगाई जो इतनी बढ़ी हुई है। परन्तु तुरंत ही श्रीमती जी अपने आप को सामान्य करती हुई अपना काम निपटा पूर्ण रूप से श्रध्दापूर्वक कुशल गृहिणी की तरह ऐसे अतिथि के आदर सत्कार की तैयारी में जुट गई जो घर आये वगैरह ही घर का बजट बिगाड़ने वाले है। पूरे तामझाम और आवभगत के साथ खाना पहुंचा जब श्रीमान जी घर लौटे तो उन्होनें क्या देखा...? श्रीमती जी बचा हुआ खाना बड़े सलीके से सहेज कर रख रही हैं।

श्रीमान जी यह ‎सोच कर प्रसन्न हो गए कि चलो मामा जी की कृपा और श्रीमती जी की मितव्ययिता की वजह से कल बचा हुआ बासी खाना ही सही लेकिन मसालेदार और लजीज खाना तो खाने मिलेगा। वरना इस महँगाई ने तो मुँह का जा़यका ही बिगाड़ रखा है।


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