मेरे बाबूजी को बचा लो
मेरे बाबूजी को बचा लो
बाम्बे जैसी महनगरी में पला बढ़ा आकाश , अपने मां-बाबूजी की इकलौती संतान था। आकाश के मां बाबूजी ने उसे हर एक सुविधा दी थी उसे कोई कमी कभी ना होने दी। जिसके चलते आकाश कभी मेहनत नाम की चीज को समझ ही न सका, आकाश के बाबूजी मुंबई के जाने-माने बिल्डरों में से एक थे, आए दिन नई नई बिल्डिंग बनाने के कारण उसके बाबूजी अक्सर कर्जा लेते रहते थे, आकाश के बाबूजी की एक ही बुरी आदत थी वह कभी भी झुकना नहीं सीखे थे चाहे कोई भी हो उसे मुंहतोड़ जवाब देते थे उम्र का लिहाज करते थे बस पैसों के गुरुर में जिए जा रहे थे। आकाश के बाबूजी ने अपनी ही बहन को बहुत सारा कर्जा दे रखा था, एक बार आकाश अपने बाबूजी के साथ कार में कहीं घूमने जा रहा था और कार में अपने बाबूजी के साथ बुआ को दिए हुए हर एक कर्जे की बात कर रहा था और साथ ही लिए गए कर्जों का हिसाब किताब कर रहा था कार में दोनों बाप बेटे आपस में बतिया रहे थे, आकाश कार में ही अपने पिताजी को समझा रहा था कि पिताजी इतना सारा कर्जा कैसे उतरेगा क्या होगा तभी अचानक आकाश के बाबूजी को अचानक चिंताओं के बादल ने घेर लिया जिसके चलते आकाश के पिता को उसी समय कार में हृदयाघात हो गया आकाश जल्दी अपने बाबूजी को लेकर अस्पताल पहुंचे और डॉक्टर से मिन्नत करने लगा कि मेरे बाबूजी को बचा लो। परंतु आकाश के दिल में एक ही बात चल रही थी कि यदि बाबूजी को कुछ हो गया तो इतना सारा कर्जा कौन उतारेगा मेरे ऊपर तो दुखों के बादल टूट पड़ेंगे जो कर्जा मैंने नहीं लिया उस कर्ज के दलदल में मैं तो फंस जाऊंगा। आकाश के मन में सिर्फ बाबूजी को बचाने की उम्मीद इसलिए थी कि वह सही सलामत होकर अपना कर्जा उतार दें। परंतु डॉक्टर अपनी कोशिश के आगे हार गए और आकाश के बाबूजी परलोक सिधार गए आकाश के ऊपर तो जैसे बहुत बड़ा एक कर्ज का पहाड़ टूट पड़ा। कर्ज़ों के तले आकाश आज भी कुंवारा ही रह गया आज भी वह अपनी मां के साथ अकेले जिंदगी व्यतीत कर रहा है कर्जा तो पूरा उतर गया परंतु आज भी आकाश वही आकाश रह गया जिसे किसी के आगे झुकना नहीं आता और मेहनत उसके शरीर में नहीं है आकाश के बाबूजी बाबूजी तो चले गए परंतु यही बुरी आदतें अपने बेटे आकाश को दे गए। आज भी आकाश अपने बाबूजी को कोसता है और यही कहता है कि उनके कारण ही कर्ज़ों के तले मैं तो दब गया और आज मैं कुंवारा ही रह गया मेरी जिंदगी बर्बाद करने वाले मेरे बाबूजी हैं।
