" लालसा "
" लालसा "
" पापा गर्मा गर्म जलेबियाँ खा लो।" विनोद मुस्कराता हुआ राजाराम जी के पास आया। पत्नी को आवाज देते हुए बोला - " राधा बाबूजी के लिए एक गिलास दूध भी लेते आना।"
पत्नी ने सारा इंतजाम किया , राजाराम जी ने लुत्फ उठाते हुए जी भर कलेवा किया और बेटे विनोद पर मुस्कराते हुए आशीषों की वर्षा कर दी। बेटा प्रफुल्लित हो उठा।
ठीक दस दिन बाद , आज राजाराम जी की लालसा चरम पर थी , बेटा विनोद ऑफिस काम से प्रवास पर कहीं बाहर गया हुआ था , उन्हें अपना नाश्ता आजकल इन दिनों समय पर मिल नहीं रहा था।
बहु को आवाज दी कहा - " बेटी राधा प्रमोद से कहकर आज जलेबी का नाश्ता तो करवा दो।"
बहु व्यग्रता से बोली " बाबूजी प्रमोद को कहाँ समय है , आपका नाश्ता लाने का। अपनी पढ़ाई , ट्यूशन और स्कूल से उसे फुर्सत कहाँ है। दो दिन बाद आपके चहेते बेटे विनोद आने वाले हैं , उनसे कहिएगा।"
राजाराम जी मन मसोस कर रह गए , इच्छा पर तुषारापात जो हो गया था।
मन की उद्विग्नता ने उन्हें खुद पर संयम बरतने की हिदायत दे डाली !
दो दिन बाद , विनोद आज अलसुबह फिर गर्म जलेबी ले आया था , बाबूजी को आवाज दी , परन्तु प्रत्युत्तर में बाबूजी ने यह कह कर टाल दिया " कि उन्हें आज नाश्ते की इच्छा कतई नहीं है।"
बेटा विनोद कुछ समझ नहीं पाया परन्तु राजाराम जी अब अपनी लालसा को काबू करना सीख गए थे।
बहु अभी अभी सामने से विजय भरी मुस्कान लिये निकली थी , लेकिन बाबूजी स्थिर थे , शांत थे।
