क्योंकि , फिर सुबह होंगी !
क्योंकि , फिर सुबह होंगी !
कमला सुमेरपुर नामक गाँव के आखिरी छोर में रहती थी ।देखने में दुबली-पतली तथा रंग सावला होने के बावजूद उसके नैन नख्श मोहक थे । कमला की उम्र महज़ 30 साल थी । वैसे तो कमला का परिचय यह था कि वह गरीबी की मारी पर स्वाभिमान से भरी औरत थी ।
कमला का पति दो साल पहले लंबी बीमारी के कारण मौत के मुंह मे चला गया था। परिवार के नाम पर ढाई साल का बेटा था, जिसमें उसकी दुनिया समाहित थी। थोड़ी बहुत जमीन थी जिसे जमीदारों ने हड़प ली थी, बस वो मजदूरी करके अपना औऱ अपने मुन्ने का पेट भरती थी। किसी दिन काम मिलता तो किसी दिन किसी से मांग कर काम चलता था, पर कमला हर हाल में खुश रहती थी। कुछ घरो में काम कर आती जिससे खाने पीने को मिल जाता था , और मुन्ना भी इतना बोधिल कि सुखी रोटी - नमक को भी खा लेता परन्तु कभी ज़िद नही करता था । शायद वो अपनी मां की आंखों में परिस्थिति को महसूस करता था और यही वजह है कि लोग कहते हैं कि बच्चों में ईश्वर का वास होता है ।
आज सुबह से ही मौसम खराब था। हवाएं अपने रौद्र रूप में चल रही थीं, बादलो कि गड़गड़ाहट, बिजली की चमक का जो मिश्रण था,बहुत ही भयावह था। इसलिए कमला उस दिन काम पर ना जा सकी थी। इस बारिश में मुन्ने को लेकर बेचारी जाती भी तो कहा जाती। घर जो सिर्फ नाम का था, जिसमें दीवारें ज्यादा थीं पर छत कहीं नहीं। एक छोटा सा कमरा जैसा था जिसके ऊपर बरसाती लगाकर खपरैल छाया हुआ था। उसी में माँ बेटा रहते थे। बाहर मिट्टी का चूल्हा था जिसमें पानी बह रहा था, कुछ डिब्बे थे जिसमें थोड़ा बहुत राशन रखा हुआ था,ईंधन की लकड़िया भी भीग चुकी थी पूरी तरह, अब कुछ बना भी नहीं सकती थी।
दोपहर में माँ बेटे ने बासी रोटी खा ली थीं, पर जैसे-2 दिन ढल रहा था मुन्ने की भूख बढ़ती जा रही थी। कमला करती तो करती भी क्या, ना कहीं जा सकती थी ना ही कुछ घर में बना सकती थी। खान-पान सही ना होने के कारण कमला का दूध निकलना भी बंद हो गया था, जिससे वो मुन्ने की भूख शांत कर पाती। खैर भूख की जलन तो कमला के पेट में भी थी, पर मुन्ने की फ़िक्र में उसे महसूस नहीं हो रही थी।
कमला कभी मुन्ने को चुप कराती तो कभी भरे हुए पानी को बाहर फेंकती। उस छोटी सी जगह में लबालब पानी भरा हुआ था, कुछ बौछार से अंदर आ रहा था, कुछ ऊपर फटी बरसाती से बह रहा था। उसके पास बैठने की जगह ना थी, एक चारपाई थी जिसमे मुन्ने को लेकर कमला बैठी थी। कभी पल्लू से उसको ढकती तो कभी फटे चद्दर से, और ख़ुद लगभग गीली हो चुकी थी ।
मुन्ने का रोना बढ़ता जा रहा था, उसका रो-रोकर बुरा हाल था, आँखे सूज गयी थी, कमला का मन उसको देख कर फटा जा रहा था। सोच रही थी कि क्या मिल जाये कि उसे खिला दे। भूख के मारे ना बच्चा सो पा रहा था, न ही उसकी आंखों में नींद थी। कमला ने सोचा पास मे ही जो दुकान है उसका दरवाजा खटखटाये क्या? पर ना मुन्ने को ले जा सकती थी ना ही अकेले छोड़कर जा सकती थी। आज कैसी मुसीबत आ पड़ी थी की उसे अंधेरे के अलावा कुछ नजर ही नही आ रहा था।
इधर मुन्ना रोते-2 पस्त हो गया था अब उससे रोया नहीं जा रहा था, बस अब सिसकियाँ ले रहा था। कमला अन्दर ही अन्दर रो रही थी,और घबरा भी रही थी। खैर उसने हिम्मत की और मुन्ने को प्यार से चारपाई पर लिटाया, फटे चद्दर से उसे उढ़ाया और माथे पर प्यार से हाथ फेरते हुए माथे को चूम लिया,मन ही मन सोचती जा रही थी कि कैसी अभागिन माँ है जो अपने बच्चे का पेट भी नहीं भर सकती। कमला ने बोरी को सिर पर ढका तथा मुन्ने को फिर से निहारा औऱ फिर तेज कदमो से निकल पड़ी।
उस पर पड़ रही बूंदों का कोई असर नहीं हो रहा था, वह जल्द ही दूकान के दरवाजे तक पहुँचना चाह रही थी।आखिरकार कुछ मिनटों में वह छोटे काका की दुकान पर पहुंच गई।दरवाजा बंद था तो उसने जल्दी-जल्दी सांकल खटखटाया। उसने आवाज भी लगाई-छोटे काका दरवाजा खोलिये। छोटे काका कमला के पिता की उम्र के थे,उनकी छोटी सी दुकान थी। स्वभाव से दयालु थे,जिस कारण कमला जरू
रत पड़ने पर उन्ही के पास आई थी। आखिरकार काका ने दरवाजा खोला तो कमला को देखकर चौक गये। काका बोले इतनी रात गए तुम यहाँ, सब ठीक तो है, मुन्ना कहा है? कमला ने कहा, काका अभी कुछ मत पूछिए, बस कुछ खाने को दे दीजिए, मुन्ने का भूख से बुरा हाल है, उसे अकेले छोड़कर आपके पास आयी हूँ। इतना कहते कहते कमला ने एक आँचल से गीली नोट काका को थमा दिया था।
काका अंदर गए और दो बिस्कुट के पैकेट और अपने पास रखा दूध एक छोटी सी बोतल में भरकर देते हुए नोट भी हाथ मे रख दिया, और कहा जल्दी जाओ मुन्ना अकेला हैं।
कमला को मानो खजाना मिल गया था। उसे आज काका में देवता नजर आ रहे थे। उसने कहा काका आपका यह एहसान मै जिंदगी भर नही भूलूंगी और कहते कहते अपने घर के तरफ निकल पड़ी। उसे लग रहा था वो कितनी जल्दी मुन्ने के पास पहुँचे।बारिश की रफ़्तार के साथ साथ उसके कदमों की रफ़्तार भी बढ़ रही थी। कमला आखिकार घर पहुँची, दरवाजा खोला तो सन्नाटा था, उसे लगा मुन्ना सो गया होगा। वह उसके पास पहुँची और बोली मुन्ना ओ मुन्ना देख अम्मा तेरे लिए क्या लायीं है। उसने बिस्कुट का पैकेट खोला और दूध को कटोरी में ड़ालते हुए चारपाई पर बैठ गई।
मुन्ने का चद्दर हटाया जो अब तक बौछार से गिला हो चुका था। उसने मुन्ने को उठाया तो उसे महसूस हुआ कि मुन्ना का शरीर एकदम ठंडा पड़ चुका था, कमला घबरा गई
उसने मुन्ना को पुचकारा, कहा मुन्ना उठ ,देख अम्मा तेरे लिए दूध लायी है। मुन्ना, ऐ मुन्ना मेरा राजा बेटा उठ जा। पर मुन्ना निढाल सा उसकी गोद मे पड़ा था। कमला का दिल तेजी से धड़कने लगा था अब, वह मुन्ने को जोर जोर से हिलाने लगी बार उसे पुचकारती, उसका मुंह चूमती पर मुन्ना अब एकदम शान्त था। ना उसकी सिसकिया थी ना ही उसकी साँसे।
कमला समझ गयी थी पर माँ की ममता यह स्वीकारने को तैयार नही थी कि उसकी आँखों का तारा बुझ गया था। अब वह जोरों से चिल्ला रही थी पर उसे सुनने वाला कोई नही था, उसके आँसू लगातार बह रहे थे। बाहर का तूफान फीका पड़ गया था उसके अंदर उठ रहे तूफान के आगे। काफी देर बाद कमला ना जाने क्यों जिगर के टुकड़े को आँचल में लपेट कर दरवाजे से निकल पड़ी। अब उस पर बारिस का कोई असर नही था, उसके आंसुओ को बारिश की बूंदें खुद से मिला रही थी।
उसके कदम गांव के किनारे बह रही यमुना की तरफ जा रहे थे, जिस पर तूफान का असर गहरा था। कमला किनारे में एक टीले पर खड़ी थी, और यमुना की लहरें भी उसके सामने आकर झुक जा रही थी। कमला आज जिंदगी के दिये दर्द को हराने जा रही थी। उसने अपने आँचल से मुन्ने को निकाल कर उसको जी भर कर देखा फिर उसके मासूम से चेहरे को चूम लिया, फिर एक पल मे मुन्ने को यमुना की गोद मे समर्पित कर दिया। वो आज अपना सबकुछ खो चुकी थीं , उसके हृदय में धड़कन तो थीं पर उसका शरीर निर्जीव हो चुका था। ना जाने उसे कौन सी शक्ति ने अपने लाडले के साथ जाने से रोक लिया था, वो भी उन्हीं लहरों में समा जाना चाहती थीं। उस दिन प्रकृति ने भी उसके दर्द में आंसू जरूर बहाए थे
एक बार कमला ने लहरो को देखा और फिर मुड़ गयी थी। अब तक बारिश का तूफ़ान भी थम चुका था, और कमला के मन क द्वंद्व भी हार चुका था। उसके कदमों में वो रफ़्तार ना थी, पर वो रुके भी ना थे। कमला का सब कुछ छिन गया था, चाहती तो वो भी छलांग लगा सकती थी, पर वो कायर नहीं थी। उसके साहस के आगे आज तूफान भी नतमस्तक हो गया था। आज उसका स्वरूप किसी दैवीय शक्ति से कम ना था। काल ने उसके जिगर के दुकड़े को भले हीं निगल लिया था परन्तु मृत्यु का भय उसके मुख पर बिल्कुल नहीं था। उसके स्वाभिमान ने उसे हारने नही दिया था। कमला को पता था कल फिर सुबह होगी और उसके साथ भूख की आग भी होगी। उसके कदमो में हौसले की छाप थी, और आंखो में जीवन का उद्देश्य था। उसे अपने उसी घर जाना था और वहाँ भरे हुए सैलाब को साफ करना था।