Abhishek Tiwari

Children Stories

4.5  

Abhishek Tiwari

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कछुआ और खरगोश 2.0

कछुआ और खरगोश 2.0

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प्रिय पाठकों,

प्रायः सभी ने पंचतंत्र में निहित कछुआ और खरगोश की कथा सुनी ही होगी कि किस तरह से कछुआ और खरगोश की दौड़ होती है और खरगोश आलस्य के कारण हार जाता है वहीं कछुआ सतत परिश्रम और धैर्य धारण करने से विजयी होता है। 

कछुआ और खरगोश 2.0 यह कथा पंचतंत्र की पूर्वोक्त कथा का नवीनतम रूप है जिसको पढ़कर आप मनोरंजन के साथ नैतिक शिक्षा भी गृहीत करेंगे।

कथा

बात 21वीं सदी की ही है। नन्दनवन में सभी पशु-पक्षी खुशहाली से जीवन-यापन कर रहे थे। आपसी भाई-चारा इतना था कि मानो राम-राज्य ही आ गया हो। वन-विद्यालय में सभी पशु-पक्षी अपने बच्चों को पढ़ाते थे ताकि वे शिक्षित होकर जंगल के अच्छे नागरिक बन सकें। वहीं कुछ बच्चे विद्यालय जाना और पढ़ना-लिखना बिल्कुल पसंद नहीं करते थे। उनमें से एक था खरगोश । एक बार की बात है कछुआ अपने कुछ नटखट दोस्तों के साथ पंचतंत्र की कहानी सुनाकर खरगोश की टाँग खींचते हुए हँसी उड़ाने लगा। दुःखी खरगोश सोचने लगा “ कि उसके पूर्वज इस तरह कछुए से क्यूँ हार गए... आखिर वे कितने आलसी थे”। लेकिन मैं आलसी नहीं हूँ । मैं तो फिर से दौड़ लगाऊँगा और कछुए को हराऊँगा।

ये बात जंगल में आग की तरह फैल गई कि सदियों बाद खरगोश और कछुए की फिर से दौड़ प्रतिस्पर्धा होगी और इस बार खरगोश आलस्य तो बिल्कुल भी नहीं करेगा ।

चूँकि 21वीं सदी में सभी के पास प्रायः दोपहिया वाहन तो हैं ही, तो दौड़ प्रतिस्पर्धा भी इस बार पैदल न थी अपितु दोपहिया दौड़ स्पर्धा (BIKE RACING) आयोजित की गई।

खरगोश मन ही मन बहुत खुश था कि मुझे BIKE चलानी अच्छे से आती है और कछुआ पढ़ाकू बच्चा है अतः उतना परिपक्व तो है ही नहीं, इसलिए जीत तो मेरी निश्चित ही है।

दौड़ प्रतिस्पर्धा का दिन – 

सब कुछ तैयार था। रास्ते पर सफेद चूने से निशान लगा दिये गये और नियमानुसार जंगल का पूरा एक चक्कर लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। जंगल के सारे जानवर आकर बैठ गये । शेरखान को निर्णायक बनाया गया।

कछुआ और खरगोश दोनों अपनी अपनी BIKE पर बैठ गये। और जैसे ही मियाँ मुट्ठू ने सीटी बजायी और RACE START.....

कभी खरगोश आगे तो कभी कछुआ... कुछ दूर तक ही चल पाया ये सिलसिला.... और 5 मिनट के बाद जैसे ही खरगोश ने पीछे मुड़कर देखा तो कोई नहीं। वह समझ गया जीत उसकी पक्की है। लगा थोड़ा आराम कर लिया जाए लेकिन उसे अपने पूर्वजों का ध्यान हो आया और उसने अपनी रफ्तार और अधिक बड़ा ली। लगभग 25-30 मिनट BIKE भगाने के बाद जैसे ही वह अपने गंतव्य में पहुँचा , मन ही मन बड़ा प्रसन्न कि इस बार सदियों पुराना RECORD टूटेगा और मैं यानि खरगोश जीतेगा। लेकिन जैसे ही वह ENGING POINT पर पहुँचा, देख कर हक्का-बक्का रह गया। वहाँ तो कछुआ पहले से ही बैठा था और सब तालियाँ बजा कर खुश थे कि कछुआ इस बार फिर जीत गया । आखिर समझ नहीं आया ये सब हुआ कैसे? इस बार तो उसने आराम भी नहीं किया। लेकिन क्या करें अंततः दोनों को साथ में खड़ा करके शेरखान ने कछुए को विजयी घोषित कर दिया।

खरगोश का मुँह लटक गया था वहीं शेरखान ने विजेता कछुए को दो शब्द बोलने को कहा । कछुआ बोला – “आप सभी का बहुत धन्यवाद ! सदियों पहले जो RECORD  हमारे पूर्वजों ने बनाया था मैंने उसे कायम रखा। इसका श्रेय मैं वन-विद्यालय को देना चाहूँगा। क्योंकि इसमें मेरा कोई योगदान नहीं, सारा योगदान शिक्षकों-गुरुजनों का है जिन्होंने मुझे पढ़ाया-लिखाया”। 

जंगल में खुसर-पुसर शुरु हो गई। इतने में खरगोश ने बोला लेकिन पढ़ाई और दौड़ में क्या तालमेल? कछुआ बोला- हाँ यह सही है, मैं पढ़ाई के कारण ही जीता और खरगोश अनपढ़ होने के कारण हार गया।

शेरखान – वो कैसे?

कछुआ – क्योंकि मैंने दौड़ में एक समान दो BIKE का प्रयोग किया, एक को STARTING POINT पर रखा तो दूसरी को ENGING POINT से कुछ दूरी पर। और जैसे ही मैं खरगोश से पीछे हो गया तो अपनी बाईक से उतर कर जंगल से SHORTCUT लेकर ENGING POINT से कुछ दूर रखी बाईक तक चला गया और रेस जीत गया। अब यदि खरगोश पढ़ा-लिखा होता तो मेरी बाईक का नंबर पढ़कर तुरंत पहचान जाता कि ये दूसरी बाईक है। लेकिन अनपढ़ खरगोश मेरी चतुराई समझ ही नहीं पाया और आज खरगोश अशिक्षित होने के कारण फिर हार गया।  

इसलिए शिक्षा का जीवन में बहुत महत्त्व होता है क्योंकि अशिक्षित व्यक्ति प्रतिस्पर्धा में खरगोश के समान सदैव लज्जित होते हैं।


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