ज़िंदगी लॉकडाउन है
ज़िंदगी लॉकडाउन है


एक पत्र दोस्तों के नाम
ओ साथी रेे!
सुनो सालों, जब आखिरी बार मिली थी तुम सबसे, तब सोचा नहीं था कि ये जो तुम्हें कसकर गले लगाया है, किसी दुख में हाथ पकड़कर सहलाया है, गालों को चूमकर अपना प्यार जताया है......सब के लिए मैं इतना तरस जाऊंगी अब। मानो जैसे तपते रेगिस्तान में बादल तो हैं पर बारिश एक बूंद नहीं। जैसे तुम सब मेरे साथ तो हो पर मेरे पास नहीं। हां हां... तुम सोचोगे की इतनी इमोशनल क्यों हो रही हूं? वीडियो कॉल के जरिए बात होती तो है...और एक दूसरे को मुस्कान भी बांट देते हैं मोबाइल स्क्रीन से ही।
पर मुझे तुम लोगों संग बैठकर घंटो तक गप्पे मारने हैं...जब मुझे अपनी उलझनों की कोई सुध नहीं होती। और इतना हंसती हूं कि अपनी सुधबुध भी कहीं खो देती। और वो सब पल...जब हम एक ही पिज़्ज़ा स्लाइस के लिए लड़कर मर जाते.....पर मजाल जिसके घर इकठ्ठे हुए हैं, उसका एक पैसा खर्च कराते। लेकिन दारू ना मंगाने के लिए साले को दो कंटाप जड़ कर आते।
मानो वो हम सबकी सेल्फियां मुझे चिढा रही हैं, अब ज़रा बाहर निकल के दिखा, ऐसे मेरा मज़ाक उड़ा रही है
पर मैंने भी उनको चेता दिया है
इस कोरोना ने हमसे गलत पंगा लिया है,
डरते नहीं है, पर घर में ही रहेंगे
जुदाई थोड़ी लम्बी ही सही, मिलकर सहेंगे
और तब तक एक दूसरे की खैर खबर
फोन पर ही सही....पर लेते रहेंगे।
मिस यू सालों..... रौनक किसी भी जगह से नहीं, रौनक तो तुम सबसे है।
इसी ख़त के साथ एक जादू की झप्पी भी भेज रही हूं... याद से निकाल लेना।
और हां... घर में ही रहना।
तुम्हारी एक नंबर की रोतू
~ईशा