गुटखा
गुटखा
मेरी मां ने आज फिर मुझे मारा।
कौन चुगली कर रहा है मेरी? मुझे अच्छा लगता है गुटखा खाना। इसलिए मैं खाता हूं। मैं कोई शराब तौ नहीं पीता। ना चोरी करता हूं बस गुटखा खाता हूं उस पर भी मेरी मां मेरे को पिटती है। दूसरों की मां कितना प्यार करती है लड़कों को। बड़ी मौसी के तो पांच लड़कियों है वो तो तरह रही है लड़के के लिए। मन्नत तक मांग रही है। मेरी मां लगता है मुझसे प्यार नहीं करती। वरना सिर्फ गुटखा खाने पर वो मुझे नहीं मारती।
समय पंख लगा कर उड़ता गया। मैं कौलेज की पढ़ाई के लिए शहर आ गया। मगर गुटखा खाना नहीं छोड़ा। रोज गुटखा खाता। फिर एक दिन मां ने खबर की तेरे लिए लड़की देखी है, अच्छी लग रही है तू आ कर देख जा। मैं गांव पहुंचा। मुंह में गुटखा चबाता हुआ। मां बोली तू छोटा था मैं तुझे गुटखा खाने पर पिटती थी अब तू बड़ा हो गया है। मैं तुझे
पिट तो सकती नहीं, मगर तू अपनी अक्ल से सोच , गुटखा खाना स्वास्थ्य के लिए बता हानिकारक नहीं होता? अरे मां तू मुझे इरीटेट मत कर। अब मेरी आदत पड़ गई है। चार दिन के लिए आया हूं। अच्छा छोड़ । बता कब चलना है लड़की देखने। फोटो मैं तो अच्छी लग रही है।
फिर शादी हो गई। मैं रोजी रोटी की तलाश में शहर आ गया। मां जब गांव से शहर आती तो सांस बहू में किट किट होती। मां कहती बचत करो। फिजूलखर्ची मत करो। आये दिन झगड़े होते। ओफिस से आता तो घर में महाभारत चल रही होती।
मैं मन ही मन सोचता मां शहर ना आती तो अच्छा होता । बहुत कंजूस है मेरी मां। मां बिना बोले ही समझ गई , मुझे उनका आना अब रास नहीं आता। वो गांव में अकेली रहने लगी। पिताजी की मौत के बाद भी वह मेरे साथ नहीं रही। मैंने कहा भी अब अकेली कैसे रहोगी? वो नहीं मानी। फिर एक दिन गांव से किसी ने सूचना दी कि मां की तबीयत बिगड़ी गई है। मैं भागा भागा गांव पहुंचा। वो अस्पताल में भर्ती थी, मैं उनकी हालत देख समझ गया था कि वो अब थोड़े दिन की मेहमान है। मैं दुखी हुआ। मां के को खून चढ़ाया जा रहा था। उन्होंने मेरे सर पर हाथ रखा प्यार से मेरी ओर देखा और बोली जा तू १३ नंम्बर वार्ड में हो आ। मैं पूछना चाहता था काहे को फिर ये सोच कर उनकी तबीयत बिगड़ी हुई है । मैं चुपचाप १३ नंम्बर वार्ड में चला गया। वो वार्ड कैंसर के मरीजों का था। सारे मरिज दर्द से बेहाल। मरीजों के परिजन पैसे से परेशान। किसी मरीज का मूंह सिला हुआ था किसी का कुछ। एक मरीज कह रहा था मेरे को पता होता कि गुटखा खाने से कैंसर होता है तो मैं कभी गुटखा नहीं खाता डाक्टर। किसी ने मुझे रोका भी नहीं। मुझे जहर दे दो। सारे के सारे पैसे मेरे इलाज में लग जायेंगे। फिर बाद मेरे बीबी बच्चे क्या होगा?
बीबी पढ़ी लिखी भी नहीं है। कोई कह रहा था दर्द कम करो। सहन नहीं होता। मेरी मां मौत से लड़ रही हैं मगर उसे अपनी चिंता नहीं है वो इस चिंता में है कैसे में अपने बच्चे को बुरी आदत से बचा लूं। कभी मेरी औलाद को कैंसर ना हो जाये इस चिंता में डुबी है। वो अस्पताल मैं कुछ दिनों से भर्ती हैं उसे सब पता है कौन सा वार्ड कहाँ है। कुछ देर मैं उलझन में रहा फिर समझ गया कि मेरी मां मुझे गुटखा नहीं खाने का संदेश दे रही है। मैं वापस मां के वार्ड में पहुँचा तब तक मां दुनिया छोड़ चुकी थी। मैंने जेब से गुटखा निकाला और हमेशा हमेशा के लिए फेंक दिया। मैं बहुत देर तक औरत की तरह रोया। फिर अपने आप से कहा मेरी मां दुनिया की सबसे अच्छी मां थी कभी कभी मैं सोचता हूं बस यूं ही
मां के सामने गुटखा छोड़ दिया हो या तो अच्छा होता। कौन जाने वह भगवान के घर में चिंता करती होगी । मेरा बेटा गुटखा खाता है।
जब कभी बरसी आती हैं मां की में लोगों को शपथ दिलाता हूं कोई भी नशा नहीं करें लोग मानते हैं जब मैं उन्हें अपनी सत्य कथा सुनाता हूं । मेरी मां को यही सच्ची श्रद्धांजलि है।
