घर का बंटवारा
घर का बंटवारा
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शाम का समय सूरज ढल रहा था, घर के दरवाजे पर बैठे गजाधर बाबू और उनकी पत्नी लखपत्ति अपने दोनों बेटों राहुल व् राजेश का इंतजार कर रहे थे। जो सुबह सुबह आपस में झगड़ा कर के निकले और यह निश्चय किया, कि अब घर में तब तक चूल्हा नही जलेगा जब तक कि दोनों के हिस्से का बंटवारा नहीं हो जाता। गजाधर बाबू लखपत्ति से बोले कि मेरे जीते जी मैं बटवारा नहीं करूँगा, जिसको जहाँ जाना है जाये अपने सम्पति का एक इंच भी मैं किसी को नहीं दूंगा। पता है कितने दुखो को झेलकर पता नहीं कितनी खुशियों को न्यौछावर कर हमने इनके हर अरमानो को पूरा किया और जब हमें इनकी जरुरत है जब हमें इनका सहारा चाहिए तो ये बटवारा करेंगे अरे यही तो हमारे बुढ़ापे के लाठी थे और इन्ही के सहारे तो हमने अपना सब कुछ त्याग दिया। ......
