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Biswabaibhaba Mohanty

Children Stories

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Biswabaibhaba Mohanty

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घोंसला

घोंसला

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एक छोटी सी चिडिय़ा ने एक पेड़ पर एक घोंसला बनाया था।एक शिकारी आके उसको पकडना चाहा पर चिडिय़ा फुर्र से उड गई और शिकारी को बहुत गुस्सा आया,उसने सोचा कि अगर चिडिया मेरी पकड़ में नहीं आई तो फिर मैं उसका घोंसला तोड़ दूंगा ।एसा सोच कर उसने घोंसला तोड़ दिया।जब शाम को चिडिय़ा लौटी अपना घोंसला न देख कर वो हैरान हो गई ।जब उसकी नजर टूटे हुए घोंसला पर पडी तो रोने लगी।और मन ही मन उस शिकारी को श्राप दे दिया की उस शिकारी की घोंसला भी टुट जाए ।कुछ दिन बाद जब प्रलय हुआ तब सबके मकान टूट गया।और उस शिकारी की मकान भी उजड गया।वो बहुत गरीब हो गया दो वक़्त की खाना भी नसीब न हुआ।इधर उधर घूमने के बाद वो जा पहुंचा एक साधु के पास. सारा किस्सा साधु को सुनाया सब सुनने के बाद साधु बोले इनसान चाहे कुछ भी करले उसके पाप तब तक नहीं घटता जब तक उसको प्रायश्चित भावना की एहसास न हो।आज तक तुमने जितना पाप किए थे उसकी सजा मिल रहा थी कभी रोग के माध्यम से तो कभी और किसी माध्यम से और तो और एक चिड़िया की घोंसला बडी बेरहम से तुमने तोडा था ,उसकी अंडे को भी तोडा था,और उस चिडिया ने मन ही मन तुम्हे श्राप दिया था और उसकी श्राप तुम्हे लग या।शिकारी ने पुछा इसका उपाय, साधु ने कहा सौ चिडियों केलिए पेड़ पर हूबहु घौसला बनाना पडेगा।वो आदमी अपना प्रायश्चित किया और अपना भुल को सुधार दिया।

सच मे अगर हम किसी को दुख देगें तो चाहे कितना भी जनम ले ले हमारे पाप चार गुणा हो कर लौट आता है.


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