फ़ोन की घंटी
फ़ोन की घंटी
काली अमावस्या की अँधेरी रात, जिसमें हाथ को हाथ नहीं सूझता, उस रात राहुल सोफे से उठा और अपनी छोटी से बालकोनी के तरफ बढ़ा-पच्चीस मंज़िली इमारत से नीचे झाँका, नीचे जगमगाती रौशनी और शिकागो की तेज़ रफ़्तार जिंदगी। भागती हुई गाड़ियाँ ऐसे लग रहे थे जैसे रंग में नहाये हुई जुगनू इधर से उधर कर रहे हो और किसी ख़ास जुगनू को देखकर रुक रही हो।
अचानक उसे अपने गाँव के याद आने लगी।
दूर कहीं धुँधली सी तस्वीर उसकी गाँव की, उसका बचपन और खेतों में खेलते उसके दोस्त इन सभी रंगीन शिकागो से ज्यादा प्यारा और सुखद लग रहा था। जैसे लग रहा था की वो वहीं खेल रहा हो- अपने आप चेहरे पे मुस्कान आ गयी। उसे लगा जैसे उसकी माँ आवाज़ दे रही हो। राहुल खाने के ले आजा। राहूऊऊऊल। राहूऊऊऊल।
साथ में फ़ोन की घंटी की भी आवाज़ आ रही थी। राहुल अचानक तन्द्रा से जगा और फ़ोन के तरफ बढ़ा। फ़ोन पे दूर से ही बीवी की तस्वीर दिख रही थी।वो मुस्कराते हुए फ़ोन उठाया शायद वीसा हो गया।
राहुल ने जैसे ही मोना को हेलो बोला, मोना बोल उठी--माँ की तबियत थोड़ी ख़राब चल रही है। चिंता की बात नहीं है। रिपोर्ट आने के बाद सब बताउंगी।तुम चिंता न करो, राहुल कुछ कुछ समझ रहा था। उससे अनुमान हो रहा था की तबियत ज्यादा खराब है! कुछ पूछता उसे पहले मोना बोल उठी--अभी तो गए हो, आने के बारे में न सोचो, तुम्हें बता दिया, मेरा वीसा भी लगभग आ ही जायेगा, शायद मोना अपने सपने के बारे में भी सोच रही थी। मैं तुम्हें बताते रहूँगी, अब सो जाओ, उधर काफी रात हो गयी होगी! गुड नाईट। फ़ोन कूट चुकी थी।
राहुल रात भर बेचैन सा रहा, प्रोजेक्ट की कॉम्पेल्क्सिटीज़ और माँ के तबियत कुछ समझ नहीं आ रहा था, माँ तो फिर माँ होती है, उसके आँचल में संसार होती है। ऐसे वही तो कहा करता था बचपन में, अब क्यूँ एक शहर उसके आँचल से बड़ा लगने लगा, राहुल ने निश्चय किया, मेल लिखा और निकल पड़ा, पहले पड़ाव दिल्ली था।
मोना काफी अच्चभित थी देखकर, ऐसा लग रहा था जैसे वो बिलकुल प्रैक्टिकल न हो ,प्रश्नों की झड़ी लगा दी, अपने सपनों को चकनाचूर होते भी देख रही थी। फेसबुक और इंस्टाग्राम के कई पेज रंगीन होने से छूट रहे थे। उसने बोला--सब ठीक है--वापस जाओ, बड़ी मुश्किल से ये मिला था,अ गर कुछ देर हुआ तो सब गड़बड़, कर्जे भी सर पर है।
राहुल खामोश सा सुनता रहा ,और कहा, मैं अब मिल कर आता हूँ, वो गाँव की तरफ निकल पड़ा, चिंता भी थी और ख़ुशी भी कई सालों के बाद माँ से मिलेगा, इसी सोच में वो गाँव पहुँच गया और अभी अपने मैन गेट पे पहुंचा ही था की उसकी माँ दौड़ी चली आ रही थी।
पता नहीं माँ को कैसे अहसास हो गया था की राहुल आने वाला है, कैसी तबियत है राहुल ने पूछा, माँ ने कहा- पहले हाथ मुँह धो ले और कुछ खा
मैं बिलकुल ठीक हूँ, पर आया तो अच्छा ही है, क्यूँ इतनी दूर काम करता है, इधर ही कुछ कर ले न।
माँ की चेहरे पे एक ग़जब का नूर सा आ गया था। वो काफी खुश लग रही थी, जैसे दुनिया की सबसे स्वस्थ वो ही हो, राहुल ने खाना खाया और फिर माँ का रिपोर्ट देखा, वो स्तब्ध था, उसकी १ किडनी थी ही नहीं और दूसरी खराब हो चुकी थी।
उसने मोना से पूछा--उसने कहा वो बताने ही वाली थी। कंपनी से कोई आया था संडे की टिकट दे गया है, राहुल ने ठीक कह के फ़ोन काटा।
शाम से उधेड़ बुन में राहुल था, माँ बगल में सो गयी थी, उसने सोचा सुबह डॉक्टर से सलाह लूँगा और सारे रिपोर्ट पढ़ना चाहा, वो उठा और रिपोर्ट लिया, रिपोर्ट से सटी १ डायरी थी वो नीचे गिरी—उसपे राहुल लिखा था, वो खुश हुआ--माँ और वो, कितने सारे बातें मिलेंगी।
राहुल के जन्म और हरेक चैप्टर पे नया सब्जेक्ट, राहुल पढ़ता चला जा रहा था, माँ के प्यार को समेट न पा रहा था, उसके बिना हरेक पल माँ ने कैसे काटी वो अनुमान भी न लगा पा रहा था, माँ के सारी लिखी बातें एक तस्वीर के तरह आगे से गुजर रही थी।
अचानक पढ़ा--राहुल की किडनी ख़राब है।
ओह भगवान, उसे तो पता ही नहीं था, पढ़ता गया वो अचंभित था, उसकी १ किडनी माँ ने दी थी और वो आजतक बताई ही नहीं, राहुल के आँखों से अविरल आँसू छलक पड़े, अचानक माँ दर्द से कराह उठी और बेटे के आँखों में आँसू देख उठ बैठी और बोली।
क्या हुआ मेरे लाल को। उसने माँ को गले लगाया--और बोला कल तू दिल्ली जा रही है।
मोना को फ़ोन लगाया और बोला कल हम दिल्ली आ रहे तुम डॉ शिखा से बात कर लो, माँ की किडनी बदलेंगे
किडनी--कहाँ से लाओगे
मैं दूँगा--राहुल ने कहा, उसकी आवाज़ में एक ग़जब की शांति थी और वो खुश महसूस कर रहा था।
माँ बस उसे निहार रही थी, माँ के आँखों में आँसू के गंगा उमड़ पड़ी थी, माँ ने कहा--न रे बेटा, इसकी कोई जरुरत नहीं।
और उसने राहुल को सीने से लगाया और काफी देर तक गले लगाए रखा, जैसे उसे सारी दुनिया मिल गयी हो। दोनों रोते रहे और अजीब से ख़ुशी महसूस करते रहे, राहुल ने कहा चलो माँ को डायरी के बारे में बताते हैं, उसने माँ को सीने से अलग किया।
ये क्या --माँ के आँसू थम चुके थे। बदन ठंडा सा पर चुका था और साँसे थम चुकी थी, सिर्फ होठों पे एक मुस्कान थी, जैसे उसने पूरी दुनिया पा ली हो।
राहुल बेजान सा बैठा था। जाते जाते १ और किडनी बचा गयी वो राहुल की।
फ़ोन की घंटी बज रही थी।
