एक शाम की चाय
एक शाम की चाय
शाम को मैं दफ़्तर (ऑफ़िस ) से निकल कर घर जा रहा था, जाते हुए रास्ते में अचानक से बारिश शुरू हो गयी, इस साल की पहली बारिश। पहली बारिश का लुफ्त तो उठाना चाहिए, इसलिए मैंने अपनी कार साइड में लगा दी और पानी से बचने के लिए पास में लगे एक चाय की दुकान के नीचे खड़ा हो गया।कुछ देर तो मैं वही खड़ा रहा। पहली बारिश कितनी मोहक होती है, उसकी एक एक बूँद इस तपती हुई ज़मीन को शांत कर रही थी और उससे निकलने वाली वो मिट्टी की खुशबू, वाह्ह्हह्ह
"बाबुजी, चाय पिओगे" पीछे से आवाज़ आयी, मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो वो चायवाले की आवाज़ थी।
मैंने उसे हां कह दिया।
मेरी नजर उसके पास वाले मेज़(टेबल ) पर जा गिरी, उसपर एक पुराना रेडियो रखा था, जो बंद था, धूल खाता हुआ।
"ये रेडियो तुम्हारा है" मैंने पूछा
"हां, बाबूजी" उस चायवाले ने कहा,
"फिर ये बंद क्यूँ है, चलाओ इसे" मैंने कहा,
और वो मेरी तरफ हैरानी से देखने लगा।
"क्या हुआ कुछ गलत कह दिया क्या??" मैंने उसके चेहरे को देखते हुए कहा,
"नहीं बाबूजी, वो बस थोड़ा हैरान हूँ के आज किसी ने रेडियो चलाने को कहा, वरना आज के ज़माने में कौन सुनाता है रेडियो , हर कोई अपने मोबाइल में व्यस्त है और कोई कोई तो इस रेडियो को देखकर हँसता भी है" उसने कहा।
"सही कह रहे हो आप, टेक्नोलॉजी ने इंसान को तो आगे कर दिया है मगर ख़ुशियों को भी आधा कर दिया है, चलाओ इसे" मैंने कहा,
उसने रेडियो चलाया और आवाज़ बढ़ा दी, और आके मेरे हाथ में एक चाय थमा दी।
रेडियो पर भी गाना शुरू हो गया था,
"पहला नशा पहला खुमार नया प्यार है नया इंतज़ार"
ये रेडियो वाले भी लाज़वाब है, इन्हे भी पता होता है कौन से मौसम में कौन सा गाना(सोंग) बजाना चाहिए, मुझे और क्या चाहिए था, हाथ में एक चाय, पहली बारिश, और बजता हुआ रोमांटिक सोंग(गाना)। ये ख़ुशी मुझे कहा मिल सकती थी, वो भी इतने काम दामों में।
"बाबूजी एक बात पूछूँ " उस चायवाले ने फिर से कहा,
"हां पूछो" मैंने कहा
"आप बड़े आदमी लगते हो, आप के पास मनोरंजन के लिए तो मोबाइल होगा ही और भी चीज़े होंगी, आप अपने ही चीज़ो मैं व्यस्त हो सकते थे, लेकिन मैं हैरान हूँ के आपने मुझे रेडियो ही चलाने को क्यूँ कहा" उसने पूछा
मैंने उसे सुना और सामने वाले मेज़ (टेबल ) पर जा बैठा।
"रेडियो , ये रेडियो मेरे लिए एंटरटेनमेंट नहीं है, ये मेरे लिए इमोशन है, ये मुझे मेरे पिताजी की याद दिलाता है" मैंने कहा
"पिताजी की याद, मैं कुछ समझा नहीं बाबूजी" उसने कहा।
"हाँ, पिताजी की याद, मैं जब छोटा था तो ऐसे ही बारिश के मौसम में पापा एक दिन रेडियो लाये थे, बड़ा रेडियो , उसकी आवाज़ पूरे घर में सुनाई देती थी, उस वक़्त ये भी नया नया ही निकला था, इसे देखकर तो मैं काफी खुश हुआ था और उसे दिन भर सुनता था। पिताजी भी इसे हमेशा सुनते थे, इसलिए वो मेरे दिल के करीब था, क्योंकि उसने एक बेटे और पिताजी को अपने आवाज़ से जोड़ा था। वो आज भी है मेरे पास लेकिन अब वो चलता नहीं, ख़राब हो गया है, लेकिन मुझे आज भी वो प्यारा लगता है, मैं जब भी रेडियो को देखता हूँ तो मुझे पापा की याद आती है, उनकी आख़िरी निशानी के तौर पर अब वही बचा है मेरे पास" मैंने कहा।
" माफ़ करना बाबूजी, मुझे नहीं पता था के आपके पिताजी" उसे बीच में ही रोकते हुए मैंने कहा
" कोई बात नहीं, चाचाजी"
मेरी चाय ख़त्म हो गयी थी और बारिश भी काम हो गयी थी, मैंने उसे पैसे दिए और जाने लगा।
"बाबूजी" उस चायवाले ने पीछे से आवाज़ लगायी, मैंने उसकी तरफ मुड़कर देखा।
"आप वो रेडियो रिपेयर कर लीजियेगा, आपके पापा हमेशा आपके साथ रहेंगे" उस चायवाले ने कहा। मैंने मुस्कुराकर हां में सर हिलाया।
कितनी आसान सी बात थी ये जो उस चायवाले ने की, उसने सारा बोझ हलका कर दिया, आज ही उसे रिपेयर कर लूंगा मैंने मन ही मन सोच लिया था।ज़िन्दगी की कुछ कहानियाँ तब ज्यादा हसीन लगती है जब उसे आपने पहले से प्लान न किया हो, जो आपके दिमाग में ही ना हो और वो होने के बाद आपको लगे प्रेशियस, यही तो खूबसूरती है इस ज़िन्दगी की वो चुपके से कुछ ख़ुशियों के पल ले आती है और कहती है, "सरप्राइज "
मैं अपनी कार में बैठा और वहां से चला गया।
