एक पीड़ा ऐसी भी
एक पीड़ा ऐसी भी
जब हम अपने किसी खास शख्स की तरफ देखते हैं, तो अक्सर ही ये ख्याल आता है कि अगर ये हमारी ज़िन्दगी में नहीं रहें तो हम जीते जी मर जायेंगे, और उन्हें खोने के ख्याल मात्र से ही रूह कांप उठती है....
पर क्या सच में उनके चले जाने के बाद हम इतने दुःख में होते हैं कि हम उनके बिना मर जाते हैं... नहीं...
संयोगवश अगर सच में हमारा वो खास शख्स हमें हमेशा -हमेशा के लिए छोड़ कर चला जाता है, उसके जाने की तकलीफ हमें पूरी तरह से तोड़कर रख देती है |
ये दुनिया वीरान सी लगने लगती है, चारों तरफ बस मायूसी ही मायूसी नज़र आती है, ऐसा लगता है मानो जीवन में अब शेष कुछ बचा ही ना हो, चाहे कोई कितना भी कोशिश कर ले हमें समझाने की, हंसाने की, उस जख्म से बाहर निकालने की ये सारी चीजें व्यर्थ हो जाती हैं हमारे लिए |
हम लोगों को दिखाने के लिए ऊपर से हँसते तो हैं परन्तु अंदर ही अंदर उस ज़ख्म की ऐसी भयानक पीड़ा से गुज़र रहें होते हैं की छोड़कर चले जाने वाले शख्स का नाम सुनने मात्र से ही हमारी आत्मा चिल्ला चिल्ला के रोने लग जाती है उस शख्स से जुड़ी तमाम स्मृतियाँ, यादें हमारे दिलों, दिमाग़ में छायाचित्र प्रदर्शित करने लगती हैं जो कि और अधिक कष्ट भरी होती हैं |
पर जैसे जैसे समय गुज़रता चला जाता है, धीरे- धीरे हम उस शख्स की यादें हम धुंधली कर देना चाहते हैं और अपने मन को इतना कठोर कर देना चाहते हैं, केवल इसलिए कि हम उस असहनीय पीड़ा से किसी तरह बाहर आ जायें
जिस प्रकार वो इंसान हमसे हमेशा -हमेशा के लिए दूरियां बना चूका होता है, उसी प्रकार हम भी उस इंसान की यादों से दूरियां बना लेना चाहते हैं, केवल इसलिए क्यूंकि हिम्मत नहीं होती, फिर से खुद को तकलीफ देने की फिर से उस कभी ना वापस आने वाले इंसान के वापस आ जाने की असंभव उम्मीद करने की....
