एक बूंद बारिश की
एक बूंद बारिश की

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थी सोच चली
आसमान से
गिर किसी कुमारी के
मुख पर
यौवन उसका सजाऊँ
या फिर
मिल अथाह सागर में
अस्तित्व अपना
विराट बनाऊँ
नाच उठूँ
किसी पत्ते पर
या हवा में यूँ ही
बह जाऊं
ठहर किसी पुष्प के
अंक
बूंद ओस की बन जाऊँ
तभी वो
जा गिरी मिट्टी पर
हाय!
उसका तो जीवन ही मिट गया
विधाता की करनी
बड़ी अज़ब
उसी मिट्टी में था
एक बीज दबा
हुआ अंकुरित, बना वो पौधा
बूंद वो बारिश की
फिर कलियों में खिल आई।