Vijay Kumar

Others

4.6  

Vijay Kumar

Others

"एक औरत को कितना जानते हैं आप"

"एक औरत को कितना जानते हैं आप"

3 mins
315


(चूंकि हर औरत और पुरुष के दो पहलू होते है एक सकारात्मक और एक नकारात्मक लेखक ने केवल औरत के एक पहलू के कुछ बिंदुओं पर अपना नजरिया प्रस्तुत किया है इसका ये मतलब नहीं कि उसने दूसरे पहलू का समर्थन किया है या पुरुष के पहलुओं को नकारा है, ये लेखक के निजी विचार है कृपया इसे अन्यथा ना ले। ) 


इंसान बचपन से लेकर विवाह पूर्व तक जब तक अकेले होता है, तो वह बेफिक्री से अपना जीवन अपने हिसाब से जीने की कोशिश करता है, और अपनी मनमानी पूरी करा सकता है, चाहे वो दोस्तों से गुस्सा होकर, परिवार से लड़कर, रिश्तेदारों से खफा होकर और समाज की प्रवाह न करके। तब न वह कल की ज्यादा चिंता करता है और न ही शायद किसी की ज्यादा प्रवाह, एक तरहा से वह कम जिम्मेदारी के साथ एक तनावमुक्त अल्हड़ जीवन जीने की कल्पना और कोशिश करता है। हर तरफ से किसी न किसी से घिरा होने के बावजूद वह जीवन अपने तरीके से जीने में ज्यादा यकीन करता है। लेकिन जब उसके साथ किसी का साथ जुड़ जाता है तो उसकी ज़िम्मेदारी, सोच, भावना और नजरिए में परिवर्तन आ जाता है। इसलिए उस साथ को अर्धांगिनी कहा जाता है। जहां उसके हर सुख-दुःख में और हर कदम पे उसके साथ एक साझेदार जुड़ जाता है, और उसके जान में एक और जान बस जाती है। 

पति-पत्नी अक्सर यही कहते है कि मैं सब जनता हूं कि तुम कैसे हो, तो क्या सही मायनों मे आप एक-दूसरे को उसकी भावनाओं, जज़्बातों, ज़िम्मेदारियों, इच्छाओं और सपने को जानते हो या बस एक सफल हमसफर बनने की कोशिश में दिखावा भर करते हो। शादी के बाद आरम्भिक दिनों मे जब वो किसी से ज्यादा परिचित न हो तब उसकी सबसे ज्यादा उम्मीदें सिर्फ आपसे होती है कि आप उसके हर कदम में साथ दे और उसका हौसला बढ़ाएं। कई बातों में पुरुष अपनी पसंद नापसंद या अपनी इच्छा और भावना प्रकट कर देता है लेकिन कई स्त्री अंतर्मुखी स्वभाव की होती है वो भले ही कुछ जाहिर न करे लेकिन मन में उसकी हर इच्छा होती है। जिसे आपको समझना पड़ता है, कभी - कभी आपके द्वारा बोले गए मीठे दो बोल या भावनात्मक रूप से आपका साथ ही उसके निराश मन एवं उदास चेहरे पर रौनक ला सकता है और उसके अंदर एक हौसला भर देता है। 

 एक औरत को तो जानते है सब लेकिन क्या सच में पहचानते है सब, क्या चाहती है वो 

क्या सोचती है वो, दिन भर क्या सहती है वो 

क्या-क्या करना चाहती है वो. सवाल तो इतने है कि 

सभी पूछ भी न पाएगी वो और शायद सुन भी न पाओगे कभी तुम भी उसे पूरी तरहा। 

वो चाहती है स्नेह वो चाहती है समय वो चाहती है एक ऐसा साथी जो सिर्फ उसको समझे जो उसको जानने की कोशिश करे l

वो प्यार करना चाहती है एक ऎसे इंसान से जो उसकी चुप्पी को भी समझ ले वो होना चाहती है उसकी जो बिन कुछ पूछे उसका हो जाए, वो क्या कहना चाहती है ये समझ ले जो। 

वो बना लेती है फिर अपना छोटा सा संसार उसी के साथ

जब उससे कुछ भी कहते हुए उसको ज्यादा न सोचना पड़े, वो बता सके उसको खुलकर अपनी महावरी तक की पीड़ा. वो बता सके उसको कि उसे क्या अच्छा लगता है और क्या नहीं।

उसके साथ रहकर भी कभी बिखरे सामानों और बिखरे जज्बातों को ज्यादा न सम्भालना पड़े उसको। 

उसके साथ होने पर चिंता छोड़ दे सारे जहां की उसके कंधे पर अपना सर बेझिझक रखकर सारी बात कह दे एक ही सांस में बहुत ही कम होती है उसकी मांग सब उसको गहनों से ढकना चाहते हैं पाबंदियों की बेड़ी में जकड़ना चाहते हैं, लेकिन वो तो बस प्यार की चादर ओढ़ना चाहती है वो खुले आकाश में उड़ना चाहती है। 

औरत तो बस प्यार चाहती है.. बस प्यार..।



Rate this content
Log in