डर (लघुकथा)
डर (लघुकथा)
नितिका बचपन से ही बहादुर लड़की थी। उसे किसी चीज़ का ख़ौफ़ नहीं था। बस एक कुत्ते को छोड़कर ,उसे कुत्ते से बहुत डर लगता, रास्ते में उसे कुत्ता दिख जाए तो वो तब तक आगे नहीं बढ़ती थी जब तक कुत्ता चला नहीं जाए। उसकी माँ ने उसे उसके इस डर को हटाने की बहुत कोशिश की पर नाकाम रही। नितिका अब बड़ी हो गयी है पर उसका डर अभी तक नहीं गया ,वो अभी एक प्राइवेट जॉब करती है। सुबह 9 से शाम 6 बजे तक ,वो यह नॉकरी पिछले 1 साल से कर रही है। कभी कभी उसे घर आने में थोड़ी देर हो जाती तो उसकी माँ हमेशा कहती "नितिका अभी दिन दुनिया बहुत खराब है समय पर घर आ जाया करो" और नितिका हमेशा की तरह हंसते कहती " मैं इतनी कमजोर नहीं हूँ जो किसी से डर जाऊं ,सिर्फ कुत्ते को छोड़कर।"
एक दिन आफिस में बहुत ज्यादा काम होने के कारण देर हो गई।वो अपना सारा काम पूरा कर 10 बजे रात में ऑफिस से घर आ रही थी । ज्यादा रात होने के कारण उसे आधी दूर तो ऑटो मिला फिर आधी दूरी वो पैदल चल कर आ रही थी । ठंड का समय था और सड़क पर सन्नाटा और सिर्फ कुत्ते के भौंकने की आवाज आ रही थी ,कुत्ते की आवाज सुन वो बहुत घबरा गई ,वो डरते हुए आगे बढ़ती रही क्योंकि रात ज्यादा हो गयी थी।कुछ दूरी पर कुछ मनचले लड़के शराब पीकर सड़क पर घूम रहे थे । उन लड़कों की नजर नितिका पर पड़ गयी और वो उसे छेड़ने लगे ,नितिका उनलोगों से बख़्श देने की गुहार लगा रही थी पर मनचले उसे पूरी तरह परेशान कर रहे थे। नितिका जोर जोर से चिल्ला रही थी "कोई बचाओ ,मुझे बचाओ" ,उसकी आवाज सुन कुत्तों का झुंड वहां आ गया और मनचलों को को काटने लगा ,मनचले अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग गए ,नितिका अब अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रही थी।
रास्ते भर यही सोचते हुए आ रही थी "मैं बचपन से जिन कुत्तों से डरती रही थी उन्हीं कुत्तों ने आज मेरी इज्जत और जान बचाई ,मैं बेवजह इससे डर रही थी ,इस दुनिया मे तो इंसान ही जानवर बन गए हैं। " अब नितिका कुत्तों से नहीं डरती पर अब उसे इंसानो से डर लगने लगा है। .
